Ranchi-15 नवम्बर को भगवान बिरसा का जन्म स्थल सुदूरवर्ती खूंटी जिले के उलिहातू से पीएम मोदी विकसित भारत संकल्प यात्रा की शुरुआत करने वाले हैं. पीएम मोदी के द्वारा हरि झंडी दिखलाते ही झारखंड के कोने-कोने के लिए सैकड़ों प्रचार वाहनों के काफिले को एक साथ रवाना कर दिया जायेगा. इन प्रचार वाहनों पर किसान क्रेडिट कार्ड योजना, ग्रामीण आवास योजना, उज्जवला योजना सहित तमाम सरकारी योजनाओं की बड़ी बड़ी झांकियां होगी, इन झांकियों के माध्यम से झारखंडवासियों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की जायेगी कि केन्द्र सरकार हर सुख दुख में गरीबों वंचितों के साथ खड़ी है.
2024 की लड़ाई की शुरुआत
कहा जा सकता है कि इस प्रचार को पूरा फोकस 2024 की लड़ाई है, इसके साथ ही अधोषित रुप से लोकसभा चुनाव प्रचार का बिगुल फुंक दिया जायेगा. आचार संहिता लगने से पहले ही भाजपा की कोशिश विकसित भारत संकल्प यात्रा के सहारे अपनी राजनीतिक जमीन को तैयार करने की है. हालांकि इस संकल्प यात्रा पर चुनाव आयोग की भी दृष्टि लगी हुई है, और उसने फिलहाल पांच चुनावी राज्यों में इस पर बैन लगा दिया है. देखना होगा कि आने वाले दिनों में इसको लेकर चुनाव आयोग और कौन सा फैसला करता है.
लेकिन इस बीच सवाल यहां यह खड़ा होना लाजमी है कि जिस भगवान बिरसा के जन्म स्थल को इस प्रचार-प्रसार के लिए चुना गया, जिस जमीन से पूरे राज्य और देश को खुशहाली की तस्वीर दिखालने की तैयारी की जा रही है, उस जमीन पर आज के दिन बिरसा के वंशजों की हालत क्या है? यह सवाल भी उठना लाजमी है कि आजादी के इन 75 वर्षों में बिरसा के सपनों का क्या हुआ? देसी साहूकारों और जमींदारों के खिलाफ बिरसा के संघर्ष की अंतिम परिणति क्या हुई? जिस विजातीय वर्चस्व के खिलाफ बिरसा ने विद्रोह का बिगूल फुंका था, क्या उनके वंशज और जनजातीय समाज उस वर्चस्व से मुक्त हो गया? क्या बिरसा के सपनों का देस और झारखंड का निर्माण हो गया, और यदि नहीं हुआ तो उनके सपनों के सामने दीवार बन कर कौन खड़ा है. आज भी उनके वंशज किन चुनौतियों और दुश्वारियों का सामना करने को अभिशप्त है.
चार माह से बीमार सुखराम को आज भी केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा से मदद की आस
यह जानना बेहद दुखद है कि एक तरफ पीएम मोदी के द्वारा बदलते हिन्दुस्तान की तस्वीर दिखलायी जा रही है, यह बतलाने की कोशिश की जा रही है कि इन दस सालों में देश ने विकास की लम्बी छलांग लगायी है, पूरे देश में खुशहाली और समृद्धि की तेज आंधी बह रही है, उसी उलिहातू में आज के दिन भगवान बिरसा के वंशज सुखराम चार महीनों से बीमार पड़े हैं. उनके हिस्से पेरासिटामोल की चार गोलियां भी मय्यसर नहीं हुई है.
जबकि इसके इसके लिए सुखराम के द्वारा राज्य सरकार के मंत्रियों से लेकर केन्द्रीय मंत्रियों को प्रतिनिधियों से गुहार लगायी गयी है, खुद जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने उनका हालचाल कर मदद का वादा किया था, लेकिन तमाम वादे और आश्वासन महज वादे बन कर रह गयें.
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आंखों में सूजन से परेशान है सुखराम
अपनी बेचारगी को सामने रखते हुए सुखराम कहते हैं कि उनकी आंखों के सामने सूजन आने के बाद वह तमाड़ के एक वैध से अपना इलाज करवाते रहें, क्योंकि उनके पास शहर के अस्पताल तक पहुंचने के लिए पैसा नहीं था, आखिरकार वैध जी से निराश होने और बीमारी और भी गंभीर होता देख कर किसी तरह आसपास से मदद की मांग कर वह शहर पहुंचे. जहां उन्हे ढेर सारी दवाईया लिख दी गयी, अब उन दवाईयों की व्यवस्था भी एक चुनौती है.
विकास मुंडा को भी नहीं आयी सुखराम की याद
सुखराम की बेटी जावनी कुमारी और पुत्र जंगल मुंडा बताते हैं कि अपने पिता की हालत देख कर उन लोगों ने तमाड़ विधायक विकास मुंडा से भी फरियाद लगायी थी, जिसके बाद उनका एक प्रतिनिधि देखने आया , लेकिन उसके बाद सब कुछ आया गया हो गया, और सियासी व्यस्तता में विकास मुंडा के दिमाग से सुखराम की पीड़ा कहीं गूम हो गयी. यही हाल स्थानीय प्रशासन का रहा. कहीं से भी मदद का कोई हाथ नहीं उठा.
बहुत ही छोटी है सुखराम की सुख की चाहत
हालांकि सुखराम के सुख की चाहत भी बहुत ही छोटी सी है, बस एक छोटा सा घर हो, नून-तेल और लकड़ी की व्यवस्था हो, बीमारी की स्थिति में पेरासिटामोल की गोलियाँ और दूसरे दर्द की दवाईयां हो, बकरी और गाय के लिए चारा हो, लेकिन, हाय रे आजादी! आजादी के इस जश्न और विकास के इस शोर में सुखराम के हिस्से ना तो क्रेडिट कार्ड आती है, और ना ही ग्रामीण आवास योजना के तहत निर्मित आवास. उज्जवला की बात पर सुख राम अपनी बंद होती आंखों पर दवाब बनाते हुए कहते हैं कि वह तो जंगल- झाड़ के आदमी है. खरपतवार भी चुन कर खाना बनाने में कोई परेशानी थोड़े ही हैं, लेकिन घर में अनाज का दो दाना तो हो. शायद विकसित भारत संकल्प यात्रा की एक दूसरी तस्वीर यह भी है. जहां बुलेट ट्रेन और भारत का दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बनने का दावा, इजरायल हमास युद्ध और रुस युक्रेन युद्ध को रोकने की हमारे प्रधानमंत्री की कथित शक्ति का कोई अर्थ नहीं रह जाता.
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