TNP DESK-जिस जातीय जनगणना को हिन्दुओं को बांटने का महापाप बता कर पीएम मोदी और भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व राहुल गांधी पर निशाना साध रहा था, अब जैसे ही उसे पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों का सामना करना पड़ रहा है. उसके पसीने छूट्टते नजर आ रहे हैं. राजस्थान हो या मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ हो या तेलांगना राज्य दर राज्य एक ही सवाल उभर रहा है, वह है पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी और भागीदारी का सवाल. और पिछड़ों की इसी हिस्सेदारी और भागीदारी में भाजपा का हिन्दूत्व का हांफता नजर आने लगा है, हालत यह हो गयी कि जिस तेलांगना में आज के दिन भाजपा तीसरे स्थान के लिए छोटी छोटी पार्टियों से संघर्ष करती नजर आ रही है. उस तेलांगना में अमित शाह अब हिन्दूत्व के रथ से उतर कर ओबीसी के रथ पर सवार होते नजर आने लगे हैं.
तेलांगना में तीसरे स्थान के लिए संघर्ष कर रही है भाजपा
दरअसल जानकारों का दावा है कि भाजपा तेलांगना में आज के दिन कोई चुनौती नहीं है, हालत यह है कि भाजपा वहां स्थानीय दलों के साथ तीसरे स्थान के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है, और यही भाजपा की मुसीबत का कारण है, सत्ता के लिए हिन्दूत्व का सफल टोटका आजमाती रही भाजपा के स्थानीय रणनीतिकारों का मानना है कि यदि तेलांगना में भाजपा को सम्मानजनक स्थिति में पहुंचना है तो उसे हिन्दूत्व की सवारी से उतर पर ओबीसी रुपी ताजा टोटका का सहारा लेना होगा. दावा किया जाता है कि जैसे ही स्थानीय नेताओं के द्वारा इस नये टोटको की जानकारी दी गयी, अमित शाह ने बिना देरी किये इस बात का एलान कर दिया कि यदि तेलांगना में भाजपा की सरकार बनती है, तो सीएम किसी पिछड़ी जाति का होगा.
चन्द्रशेखर राव ने भी किया था दलित सीएम बनाने का वादा
यहां बता दें कि कभी चन्द्रशेखर राव ने भी वादा किया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वह किसी दलित को यहां का सीएम बनायेंगे, लेकिन सत्ता मिलते ही वह वादा जमींदोज कर दिया गया और चन्द्रशेखर आज के दिन दूसरी बार सीएम की कुर्सी पर विराजमान हैं. और उनकी इसी वादाखिलाफी का असर है कि यूपी से सैंकड़ों किलोमीटर दूर तेलांगना में आज के दिन बसपा काफी मजबूत नजर आने लगा है. पूर्व आईएस प्रवीण कुमार दिन रात एक कर बसपा को स्थापित करने में जुटे हैं. दावा किया जा रहा है कि वह राज्य की तीसरी सबसे मजबूत पार्टी बन कर सामने आ सकती है और इस हालत में भाजपा के लिए तीसरे स्थान का संघर्ष भी बेहद कठीन होता नजर आने लगा है.
राज्य में ओबीसी आबादी करीबन 55 फीसदी
इसी राजनीतिक जमीन पर भाजपा अब ओबीसी को सीएम बनाने का दावा कर रही है, उसका मानना है कि यदि ओबीसी जिसकी आबादी राज्य में करीबन 55 फीसदी है, का एक हिस्सा भी उसके साथ आ खड़ा होता है, तो कम से कम वह सम्मानजनक स्थिति में आ कर खड़ा हो ही जायेगा.
ध्यान रहे कि अभी करीबन छह राज्यों में भाजपा की सरकार है. लेकिन आज के दिन मध्यप्रदेश को छोड़कर कहीं भी उसका कोई पिछड़ा सीएम नहीं है, जबकि चार राज्यों वाली कांग्रेस की सरकार में तीन पिछड़े चेहरे हैं, इस हालत में भापजा का ट्रैक रिकॉर्ड इस बात की इजाजत नहीं देता कि पिछड़ी जाति के मतदाता उस पर विश्वास करें और खास कर तब जब वह तीसरे स्थान के लिए संघर्ष करती नजर आ रही हो.
कांग्रेस की तुलना में मोदी सरकार में पिछड़े चेहरों की संख्या अधिक
हालांकि एक सत्य यह भी है कि केन्द्र की पूर्ववर्ती सरकार की तुलना में आज के दिन भाजपा के पास कहीं अधिक पिछड़े चेहरे हैं. और पांच राज्यों के टिकट वितरण में भी पिछड़ों को सम्मानजनक भागीदारी देने की कोशिश की गयी है, इसके विपरीत हिस्सेदारी और भागीदारी की बात करने वाले राहुल गांधी के द्वारा पिछड़ी जातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी नहीं दी गयी, और खास कर मध्यप्रदेश में तो चुन-चुन कर पिछड़ों का टिकट काटा गया है. दावा किया जा रहा है कि मध्य प्रदेश में टिकट वितरण में राहुल गांधी से ज्यादा दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की चली है, देखना होगा कि केन्द्रीय नेतृत्व से इतर अपनी स्थानीय नीति तय करने वाले दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का हश्र क्या होता है.
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