Ranchi- राजनीति नैरेटिव का खेल है. सियासी अखाड़े में अलग-अलग किस्म के नैरेटिव हर दिन गढ़े जाते हैं. कुछ ऐसी ही नैरेटिव सीएम हेमंत के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में गढ़ी गयी थी. तब सीएम हेमंत ने सरना धर्म कोड का मुद्दा उछाल कर राज्य की विशाल जनजातीय आबादी की दुखती रग पर अपना हाथ रखते हुए इस बात को विशेष रुप से रेखांकित किया था कि आजादी के बाद आदिवासी समाज की जनसंख्या लगातार घट रही है. कभी 38 फीसदी आबादी वाले जनजातीय समाज की कुल आबादी आज महज 26 फीसदी में सिमट चुकी है.
आदिवासी समाज पर मंडराता यह सांस्कृतिक संकट
कई जनजातियां आज विलुप्त होने के कगार है, आदिवासी समाज की पहचान पर संकट खड़ा हो चुका है. उनकी भाषा, सभ्यता संस्कृति, रहन सहन, खान-पान पर एक तरह का विजातीय दवाब काम कर रहा है. इसका एक मात्र समाधान सरना धर्म कोड है. जैसे ही आदिवासी समाज को हिन्दूओं से अलग कर सरना धर्म कोड के रुप में अपनी स्वतंत्र पहचान दी जायेगी. आदिवासी समाज पर मंडराता यह सांस्कृतिक संकट का समाधान निकलता नजर आयेगा.
साफ है कि सीएम हेमंत इस नैरेटिव के बहाने झारखंड की सियासी पिच पर अपनी पकड़ को विस्तार देने की रणनीति पर काम रहे थें, उनकी कोशिश थी कि सरना धर्म कोड के मुद्दे को इस प्रकार उछाला जाय कि भाजपा बैक फुट पर बैंटिंग को मजबूर हो जाए. पेसा कानून, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति और स्थानीय नीति की पहल से सीएम हेमंत ने राज्य की विशाल आदिवासी मूलवासी समुदाय को यह संकेत देने की कोशिश कि है कि भाजपा के उलट वह झारखंडी मुद्दों की पार्टी है. उसकी नीतियों के केन्द्र में दलित पिछड़ा और आदिवासी समाज का कल्याण है. जबकि भाजपा आज भी झारखंड में जमीनी मुद्दों से कट कर भावनात्मक मुद्दों के सहारे राजनीतिक वनवास के निकले की जुगत बिठा रही है. जबकि उसकी पूरी सोच और समझ गैरझारखंडी है और भाजपा की इसी राजनीतिक समझ का नतीजा है कि उसे झारखंड में चुनाव लड़ने के लिए बाहरी चेहरों को उम्मीदवार बनाना पड़ता है.
पूर्व सीएम रघुवर ने गढ़ा काउंटर नैरेटिव
लेकिन जैसे ही पूर्व सीएम रघुवर दास को पीएम मोदी को लिखे इस चिट्ठी की भनक लगी. भाजपा के अंदर उसके काउंटर नैरेटिव की खोज शुरु हो गई. जिसके बाद महज 24 घंटों के अंदर-अंदर रघुवर दास ने लेटर बम फोड़ कर सीएम हेमंत की राजनीतिक विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया.
दरअसल अपने पत्र में रघुवर दास ने अन्य बातों के साथ ही हेमंत सरकार पर आदिवासी समाज के हाथों से मांदर छीन कर गिटार पकड़ाने का आरोप लगा दिया. उन्होंने लिखा कि आपकी पूरी सरकार की सोच किसी भी तरीके से आदिवासी समाज के हाथ से मांदर को छीन कर गिटार पकड़ाने की है.
केरल राज्य बनाम चन्द्रमोहनन मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसले का हवाला
इसके साथ ही रघुवर दास ने एसटी प्रमाण पत्र जारी करने के पहले केरल राज्य बनाम चन्द्रमोहनन मामले का हवाला देते हुए केरला हाईकोर्ट के दिशा निर्देशों को पालन करने की मांग कर दी. दरअसल उक्त फैसले में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि एसटी का प्रमाण पत्र निर्गत करने के लिए आवेदक के माता एवं पिता दोनों का ही अनुसूचित जनजाति का सदस्य होना जरुरी है. इसके साथ ही आवेदक के साथ ही उसके माता-पिता को विवाह में जनजाति समाज की रूढ़ियों एवं परंपराओं का पालन होना अनिवार्य शर्त है. इसके साथ ही आवेदक और उसके माता-पिता के द्वारा जातिगत रूढ़ियों, परंपराओं एवं अनुष्ठान का किया जा रहा है या नहीं, जनजाति प्रमाण पत्र जारी करने के पहले इसकी जांच जरुरी है.
अब रघुवर दास केरल हाईकोर्ट के इसी फैसले को आधार मान्य कर अनुसूचित जनजातियों को प्रमाण पत्र निर्गत करने की मांग कर रहे हैं. रघुवर दास ने कहा है कि जिस व्यक्ति के द्वारा भी इस पैमाने का पालन नहीं किया जा रहा हो. उनको किसी भी कीमत पर जनजाति प्रमाण पर निर्गत नहीं किया जाय.
क्या है रघुवर दास की चिट्ठी के राजनीतिक मायने
साफ है कि केरल राज्य बनाम चन्द्रमोहनन के फैसला का हवाला देकर रघुवर दास झारखंड की क्रिश्चियन आबादी को अपने निशाने पर लेने के कोशिश कर रहे हैं. उनकी कोशिश सरना और क्रिश्चियन आदिवासी सामाजिक समूहों के बीच दीवार खड़ी करने की है. ताकि सरना आदिवासी और क्रिश्चियन आदिवासी के इस विवाद में भाजपा सरना धर्मलंबियों के पक्ष में खड़ा दिखे. उनकी रणनीति साफ तौर पर सरना बनाम क्रिश्चियन आदिवासी को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की है. इसी रणनीति के तहत मांदर के बदले गिटार थमाने का आरोप लगाया जा रहा है. दरअसल केरला हाईकोर्ट के जिस फैसले का हवाला रघुवर दास दे रहे हैं. उस पैमाने पर झारखंड की एक बड़ी आबादी को आदिवासी का प्रमाण पत्र निर्गत नहीं हो सकता. क्योंकि झारखंड की एक बड़ी आदिवासी आबादी के द्वारा क्रिश्चियन धर्म को अंगीकार कर लिया गया है. और यह आबादी शुरु से भाजपा के निशाने पर रही है. हालांकि सरना धर्मलंबियों के पक्ष में बैंटिंग करते वक्त भी रघुवर दास सरना धर्म कोड पर अपनी चुप्पी साध जाते हैं. क्या सिर्फ क्रिश्चियन आबादी के आधार पर सरना धर्मलंबियो को सरना धर्म कोड से इंकार किया जा सकता है, इसका कोई जवाब रघुवर दास नहीं देते.
धर्म बदलने से नस्ल नहीं बदलता
हालांकि क्रिश्चियन आदिवासी समाज से जुड़े लोगों का दावा है कि धर्म बदलने से उनकी आदिवासीयत की पहचान खत्म नहीं होती. उन्होंने धर्म बदला है, लेकिन उनकी नस्ल को आदिवासी है, और आदिवासी एक नस्ल है, और धर्म बदलता रहता है, लेकिन धर्म बदलने उसका नस्ल नहीं बदलता. खुद क्रिश्चियन आदिवासी भी सरना धर्मलंबियों के लिए सरना धर्म कोड की मांग करते हुए नजर आते हैं. उनका कहना है कि ठीक है कि क्रिश्चियन आदिवासी सरना धर्म कोड के अन्दर नहीं आयेंगे, लेकिन सरना धर्मलंबियों की अपनी स्वतंत्र पहचान तो स्थापित हो जायेगी. क्रिश्चियन आदिवासियों को छोड़ सरकार सरना आदिवासियों की मांग में रोड़ा क्यों लगा रही है.
4+