रांची(RANCHI)- हेमंत सरकार में शामिल विभिन्न दलों की कोशिश आखिरकार रंग लायी. काफी जद्दोजहद के बाद आखिरकार पूर्व सीएम शिबू सोरेन की अध्यक्षता में समन्वय समिती की पहली बैठक सम्पन्न हो गयी. हालांकि इस बैठक में कांग्रेस-राजद की किन-किन मांगों पर चर्चा हुई और सरकार से उनकी नाराजगी कितनी दूर हुई, उनके समस्याओं के समाधान की दिशा में क्या निर्णय लिए गयें? अभी इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गयी है, लेकिन खबरों के अनुसार इस बैठक में सरना धर्म कोड, पिछड़ों का आरक्षण को आगे कर 2024 में मोदी रथ को रोकने का सर्वसम्मत निर्णय लिया गया है.
जातीय जनगणना की दिशा में आगे बढ़ सकती है हेमंत सरकार
गठबंधन में शामिल सभी दलों में इस मुद्दे पर सहमति थी कि यदि 2024 में भाजपा को झारखंड से दूर रखना है तो सरना धर्म कोड और पिछड़ों के आरक्षण को राजनीति के केन्द्र बिन्दू में लाना होगा. क्योंकि सरना धर्म कोड और पिछड़ों का आरक्षण ही वह मुद्दा है, जिसको आगे कर गठबंधन भाजपा की प्रमुख सहयोगी आजसू की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर सकती है, चर्चा यह है कि है कि हेमंत सरकार भी बिहार सरकार की तरह ही जातीय जनगणना की दिशा में आगे बढ़ सकती है.
सरना धर्म कोड के मुद्दे पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से हस्तक्षेप की मांग
इसी रणनीति के तहत ही समन्वय समिती की पहली ही बैठक में राजद कांग्रेस ने अपनी-अपनी समस्याओं पर जोर देने के बजाय, सत्ता में अपनी-अपनी भागीदारी बढ़ाने के बजाय महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात कर सरना धर्म कोड के मुद्दे पर उनसे हस्तक्षेप की गुहार लगाने का निर्णय लिया है.
राजभवन के द्वारा वापस किये गये सभी विधेयकों को एक बार फिर से राजभवन के पाले में डालने की रणनीति
इसके साथ ही हेमंत सरकार के जिन-जिन विधेयकों को राजभवन के द्वारा त्रुटियों का हवाला देते हुए वापस किया गया है, अब हेमंत सरकार उसकी त्रुटियों को दूर कर एक बार फिर से गेंद राजभवन के पाले में डालेगी, ताकि यह मामला राजनीति की सुर्खियों में बना रहे और साफ है कि उसकी रणनीति सरना धर्म कोड, पिछड़ों का आरक्षण, 1932 का खतियान, मॉब लिंचिंग विधेयक, स्थानीय नीति आदि जनभावनाओं से जुड़े मुद्दों को आगे कर भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की है.
कर्नाटक चुनाव में पीएम मोदी का चेहरा और धार्मिक धुर्वीकरण का भाजपा को नहीं मिला था लाभ
ध्यान रहे कि कर्नाटक चुनाव में भाजपा को न तो मोदी का चेहरा बचा सका और न ही धार्मिक धुर्वीकरण की उसकी पुरानी रणनीति, माना जाता है कि कर्नाटक चुनाव से सबक लेते हुए भाजपा ने अब अपनी रणनीति में बदलाव किया है, वह पीएम मोदी के चेहरे को पीछे कर अब आने वाला चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ना चाहती है.
स्थानीय मुद्दों को प्रखरता के सामने लाने की रणनीति पर बनी सहमति
भाजपा की इस बदली भाजपा की रणनीति को भांप कर हेमंत सोरेन ने पहले ही अपना ट्रंप कार्ड खेल दिया. वह सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, ओबीसी आरक्षण, 1932 का खतियान, स्थानीय नीति और नियोजन नीति को आगे कर, इस बात को प्रचारित-प्रसारित करना चाहती है कि वह तो अपनी पूरी शिद्दत के साथ इन मुद्दों के साथ खड़ी है, यह तो भाजपा है जो राजभवन को आगे कर इन सभी विधेयकों को रोकने का काम कर रही है.
हिन्दुत्व के पिच से बाहर जाकर खेलने भाजपा के लिए चुनौती
जबकि भाजपा के लिए हिन्दुत्व के पिच से बाहर जाकर खेलना बेहद मुश्किल है, और खास कर तब जब सामने सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, ओबीसी आरक्षण, 1932 का खतियान, स्थानीय नीति और नियोजन नीति की पिच हो. सरना धर्म कोड तो उसके लिए गले की वह फांस है, जिसका समर्थन करते ही उसका हिन्दुत्व का चेहरा पूरी तरह से बिखऱ जायेगा, साथ ही जातीय जनगणना का समर्थन करने का मतलब है अपने सवर्ण वोट बैंक से हाथ धोना. भाजपा की इसी कमजोर नस पर सीएम हेमंत की नजर है.
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