खूंटी:अब तक समाज के विभिन्न हिस्से के साथ संवाद स्थापित करते रहे पीएम मोदी ने इस बार विलुप्त प्राय आदिम जनजाति बिरहोर से संवाद स्थापित करने का फैसला किया है. इस खबर को सामने आते ही अड़की प्रखंड के तेलंगाडीह गांव स्थित बिरहोर कॉलनी में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है, बिरहोर जनजाति से आने वाले युवा इस बात को लेकर बेहद रोमांचित नजर आते हैं कि कैसे उसका प्रधानमंत्री से संवाद होगा. और उस संवाद के दौरान प्रधानमंत्री मोदी कैसे उनके जीवन की दुश्वारियों को समझने की कोशिश करेंगे. उनके अंदर यह आशा बलवती होती नजर आ रही है कि प्रधानमंत्री के साथ इस संवाद के बाद उनकी जिंदगी में खुशियों का आगवन होगा. जिन बुनियादी सुविधाओं के लिए उन्हे अब तक भागम भाग करना पड़ता है, वह सारी सुविधाएं एक बारगी उनके पास होगी.
पेयजल से लेकर खून की कमी से जुझ रहे हैं बिरहोर
यदि हम तेलंगाडीह गांव स्थित बिरहोर कॉलनी को ही लें तो झारखंड गठन के दो दशक गजुरने के बावजूद आज भी उनकी सड़के कच्ची है, गांव में आज भी पेय जल की कोई व्यवस्था नहीं है, स्वास्थ्य सुविधा नदारद है. रोजगार के मोर्चे पर तो और भी बूरी खबर है, कई बिरहोर सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है. उनके अंदर खून की कमी एक आम समस्या है. हालांकि प्रधानमंत्री से इस संवाद के पहले स्वास्थ्य जांच की प्रक्रिया शुरु कर दी गयी है, और इसके साथ ही उनका उपचार भी शुरु कर दिया गया है, लेकिन मूल समस्या तो स्थायी समधान का है, क्योंकि जब उनके अंदर की भूखमरी और गरीबी का समाधान नहीं किया जाता, तमाम दवाइयां अपना असर नहीं दिखा सकती.
बदलती रही सरकारें, लेकिन नहीं बदली बिरहोरों की जिंदगी
वैसे इस त्रासदी के बीच अपने जीवन का गुजारा करते बिरहोर प्रधाममंत्री से संवाद के साथ अपने जीवन में एक बड़े बदलाव की उम्मीद पाल रहे हैं, उन्हे इस बात का विश्वास है कि देर से सही देश को उनकी फिक्र हुई है, अब उनके भी हालचाल लिये जा रहे हैं, नहीं तो भला कौन उनकी जिंदगी की ओर देखने वाला था, और यह हालत किसी एक सरकार की नहीं है, सरकारें आती रही, जाती रही, लेकिन बिरहोरों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया.
ध्यान रहे कि बिरहोर एक आदिम जनजाति है, जो झारखंड के साथ ही मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, और बिहार में भी निवास करती है. इसकी मुख्य रुप दो प्रजातियां हैं. एक उथलु और जधीश, उथलु प्रजाति के बिरहोर घुमंतू होते हैं, उनका कोई एक बसेरा नहीं आता है, वह आज यहां कल किसी दूसरे स्थान पर होते हैं, इस कारण भी उनके पास तक कल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाना मुश्किल होता है, जबकि जधीश जो कुड़िया बना कर निवास करते हैं. इस जनजाति में युवा गृह की परंपरा है, युवा गृह को एक प्रकार यौन शिक्षा का केन्द्र भी बोला जा सकता है, साफ है कि आर्थिक रुप से पिछड़े बिरहोर की संस्कृति काफी उच्च है, जिस यौन शिक्षा को आधूनिक सोच कहा जाता है, वही यौन शिक्षा इन बिरहोरों में पीढ़ियों से चली आ रही है, अब देखना होगा कि प्रधानमंत्री के साथ इस संवाद के बाद उनकी जिंदगी में कितना बदलाव आता है.
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