पटना(PATNA)-सीएम नीतीश कुमार की सदारत में पटना में आयोजित होने वाली विपक्षी दलों की प्रस्तावित बैठक तीसरी बार टाल दी गयी. प्रस्तावित बैठक को स्थगित होने की जानकारी देते हुए सीएम नीतीश कुमार ने कहा है कि चूंकि राहुल गांधी अभी विदेशी के दौरे पर हैं, उनके आने के बाद ही इस पर फैसला लिया जायेगा. लेकिन अन्दर खाने चर्चा इस बात की है कि कांग्रेस को सीएम नीतीश के नेतृत्व में चलाई जा रही विपक्षी एकता की कवायद रास नहीं आ रही है. उसकी कोशिश है कि विपक्षी एकता की इस मुहिम को अपने बैनर तले ही अपने अंजाम तक पहुंचाने की है.
कर्नाटक चुनाव के बाद बदलती नजर आ रही है कांग्रेस की चाल
हालांकि कर्नाटक चुनाव के पहले तक कांग्रेस विपक्षी एकता की इस महिम का अपना समर्थन देती नजर आ रही थी, लेकिन कर्नाटक के अप्रत्याशित नतीजों ने कांग्रेस के हौसले को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है, उसका मानना है कि मध्य प्रदेश, तेलांगना, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नतीजे आने बाद ही 2024 के सियासी समीकरण की सही तस्वीर पेश सामने आ पायेगी. कांग्रेस के आंतरिक सर्वे का आकलन यह है कि वह छत्तीसगढ़ में शानदार वापसी करने जा रही है, साथ ही वह मध्यप्रदेश को लेकर भी काफी आश्वस्त है, हालांकि राजस्थान को लेकर कुछ ऊहापोह की स्थिति तो जरुर है, लेकिन हालिया सर्वेक्षणों में अशोक गहलोत की वापसी के संकेत मिलने लगे है. सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई से परे वह यह आकलन करने में जुटी है कि यदि सचिन पायलट बगावत का सुर अलापते भी हैं तो अन्तोगतवा इसका लाभ कांग्रेस को ही होगा, क्योंकि गहलोत सरकार से नाराज मतदाताओं के सामने दो दो विकल्प होगा, सत्ता विरोधी यह लहर भाजपा और सचिन पायलट के बीच बंटकर रह जायेगी और इस बीच कांग्रेस बाजी मार ले जायेगी. इसके साथ ही वह तेलांगना में काफी उत्सासित नजर आ रही है, उसका आकलन है कि तेलांगना में उसकी वापसी नहीं तो कमसे कम सीटों की संख्या में बड़ा इजाफा देखने को मिलेगा.
बिहार में नीतीश कुमार का घेराबंदी कर सकती है कांग्रेस
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अब नीतीश कुमार का क्या होगा? एनडीए से उनकी दूरी पहले ही काफी बढ़ गयी है, और यदि वह एक बार फिर से इसकी कोशिश करते भी है तो उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पूरी तरह मटियामेट हो जायेगा. जबकि कांग्रेस बिहार में भी नीतीश कुमार का घेराबंदी करने की रणनीति तैयार कर सकती है, वह यह समझ चुकी है कि एनडीए के दरवाजे अब नीतीश कुमार के लिए बंद हो चुके हैं, इस हालत में वह राजद के साथ गठबंधन का ऐलान कर सीएम नीतीश को हाशिये पर ढकेलने की रणनीति पर काम कर सकती है.
यदि अपने आकलन के अनुरुप इन राज्यों में कांग्रेस अपना प्रदर्शन नहीं कर पाती है तब क्या होगा
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यदि तेलांगना, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपने आकलनों के अनुरुप प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो तब उस हालत में उसके सामने विकल्प क्या होगा? चन्द्रशेखर, ममता बनर्जी और अरबिंद केजरीवाल से उसकी नाराजगी जगजाहिर है, शेष बचते हैं हेमंत सोरेन, शरद पवार, उद्भव ठाकरे, महबूबा मुफ्ती,फारुख अब्दूला, स्टालिन, क्या यह संभव है कि इनके बुते कांग्रेस सत्ता के शीर्ष शिखर पर पहुंच सकती है, ठीक यहीं से एक बार फिर से नीतीश की राजनीति अपनी धार पकड़ सकती है, क्योंकि तमाम विपक्षी दलों से संवाद की कला तो सिर्फ नीतीश के पास ही है.
आज भी अपने सामंती चिंतन से बाहर नहीं निकल पा रही है कांग्रेस
वैसे भी जानकारों का मानना है कि भले ही कांग्रेस का सारा साम्राज्य बिखर चुका हो, लेकिन आज भी उसके चिंतन में यह रचा बसा है कि सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही एकलौती अखिल भारतीय पार्टी है, वह किसी भी हालत में क्षेत्रीय दलों को एक सीमा से ज्यादा भाव देने के मुड में नहीं है. कांग्रेस का यही सामंती सोच-चिंतन उसके पुनरुत्थान और पुनरुद्धार में बड़ी बाधा है.
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