Ranchi- मीडियाकर्मियों के साथ गुफ्तगू के दौरान सीएम हेमंत का एक बयान काफी चर्चा में है. जैसे ही मीडियाकर्मियों के द्वारा कैबिनेट की बैठक को लेकर यह सवाल दागा गया कि 2024 की इस पहली कैबिनेट की बैठक में क्या झारखंड को कोई बड़ा सौगात मिलने जा रहा है? सीएम हेमंत ने बड़े ही रोचक अंदाज में कहा कि 2024 ही क्यों? हमारी यह सौगात उसके कहीं लम्बी होगी? आप लोग खबर चलाते जाइये, खबरें आपको मिलती रहेगी, खबरों का टोटा नहीं होगा. लेकिन यह कोई 2024 की सौगात नहीं है, इसको इस सीमा में रखने की भूल नहीं करें. यह सौगात उससे कहीं लम्बी होने वाली है.
क्या होगा वह सौगात?
तो क्या वास्तव में झारखंड सरकार कोई ऐसा फैसला लेने जा रही है, जो आने वाले कई सालों तक झारखंड की सियासत को हिलाती डुलाती रहेगी, क्या कोई बड़ा भूचाल आने वाला हैं, क्या सीएम हेमंत कोई ऐसा धमाका करने वाले है? जिसके बाद वर्षों तक उनकी सत्ता अनवरत बनी रहेगी? क्या उनके तरकश से एक और तीर निकलने वाला है, और यदि वह तीर निकलने वाला है, तो वह क्या हो सकता है. क्योंकि 1932 का खतियान से लेकर सरना धर्म कोड, पिछड़ा आरक्षण विस्तार से लेकर स्थानीय कंपनियों में स्थानीय नौजवानों के लिए 75 फीसदी का आरक्षण या फिर आदिवासी दलितों के लिए पेंशन की उम्र को 60 से 50 करने का धमाका, तो फिर कौन सा तीर अभी भी तरकश का शोभा बढ़ा रहा है, या फिर इस बजट में कुछ ऐसा होना वाला है, जिसकी अनुगूंज लम्बे वक्त तक सुनाई पड़ने वाली है.
मीडिया पर तंज या दिमाग में पक रही है कोई खिचड़ी
और यदि यह सब कुछ भी नहीं होने वाला है तो क्या सीएम हेमंत ने अपने इस बयान से मीडिया की उन सुर्खियों पर तंज कसा है, जिसमें गांडेय विधान सभा से कल्पना सोरेन का सियासी इंट्री करवायी जा रही है, राज्य में सीएम का चेहरा बदला जा रहा है, झारखंड की सरकार को अस्थिर बताने की कोशिश की जा रही है, इस बात का दावा किया जा रहा है कि जैसे ही सीएम हेमंत की गिरफ्तारी होती है, यह सरकार गिर जायेगी, सीएम हेमंत के बाद झामुमो में ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जिस चेहरे को सामने रख कर झामुमो विधान सभा में अपना बहुमत साबित कर दे.
जातिगत गणना के लिए बजट में आवंटन को नहीं
सीएम हेमंत के अब तक के रुख से ऐसा नहीं लगता कि वह मीडिया कर्मियों पर तंज कस रहे होंगे, इस बात की संभावना जरुर है कि झारखंड सरकार बहुत जल्द ही कोई बड़ा फैसला लेने वाली है. या इस बार का बजट अब तक के तमाम बजटों से अलग राह पर चलने वाला है, एक ऐसा बजट जिसके केन्द्र में गांव होगा, युवा होंगे, महिलाएं होगी, जल जंगल और जमीन के संरक्षण पर जोर होगा, या फिर जिस तरीके से वृद्धा पेंशन के लिए आदिवासी दलितों की उम्र सीमा में कटौती की गयी है, उसी राह पर एक और धमाका होगा. या फिर जिस जातीय जनगणना के दावे अब तक किये जा रहे थें, उसके लिए इस बार के बजट में आवंटन होने वाला है. क्योंकि जातीय जनगणना का दांव अभी भी पूरी तरह से खेला नहीं गया है, झारखंड सरकार सिर्फ इसका वादा करती रही है, लेकिन यह भी तय नहीं कर पायी है, कि इसका नोडल विभाग कौन होगा, किस विभाग के जरिय जातिगत जनगणना को पूरा किया जायेगा. क्योंकि हेमंत सरकार ने जिस तरीके से पिछड़ी जातियों के आरक्षण सीमा में विस्तार दिया है, उसके बाद आरक्षण का दायरा 76 फीसदी तक पहुंच गया है, और राज्यपाल के मुहर लगाने के बावजूद इसे कोर्ट में चुनौती पेश की जा सकती है, इस परिस्थिति में यदि सरकार के पास एक तर्कसंगत आंकड़ा होता है, तो वह इसकी सार्थकता को कोर्ट में पेश कर सकती है, क्योंकि वर्तमान हालत में केन्द्र सरकार किसी भी हालत में इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं करने जा रही, ताकि इसे न्यायिक परीक्षण से संरक्षण प्राप्त हो सके. और यदि ऐसा होता है तो निश्चित रुप से यह झारखंड की सियासत पर दूरगामी प्रभाव डालेगा. बहुत संभव है कि सीएम हेमंत का इशारा इसी ओर हो.
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