पटना(PATNA) विपक्षी दलों के दावों के अनुसार पटना में आयोजित बैठक पूरी तरह से सफल रही. हालांकि हर दल के अपने-अपने सुझाव और कई आशंकाएं भी थी, लेकिन बहुत ही खूबसूरती से इस सभी मतभेदों को सुलझा लिया गया है, विपक्षी दलों के दावों पर विश्वास करें तो उनके बीच चुनाव की रणनीति पर सहमति बन चुकी है, अब शिमला की बैठक में आगे की कार्ययोजना को विस्तार दिया जायेगा.
जबकि कई सूत्रों का दावा है कि शिमला बैठक में इस बात का फैसला भी जायेगा कि कौन सा दल किस राज्य में कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगा और उसका उम्मीवार कौन होगा. हालांकि उम्मीदवार के नाम के मामले में अभी पेच फंस सकता है, इसके साथ ही एक और दावा भी किया जा रहा है कि विपक्षी दलों की इस गठबंधन का नाम पीडीए (पेट्रियॉटिक डेमोक्रेटिक एलायंस) होगा और इसके संयोजक होंगे सीएम नीतीश कुमार.
छुपे रुस्तम अपना खेल खेल रहे हैं नीतीश
अब इस दावों पर विचार करें तो साफ है कि नीतीश जिस दिशा में बढ़ना चाह रहे थें, और उनके अन्दर जिस राजनीतिक महात्वाकांक्षा का उबाल हो रहा था, जिसके लिए वह पिछले कई महीनों से प्रयासरत थें, उनका वह अव्यक्त सपना अब महज कुछ चंद कदम दूर खड़ा है, यदि दावों के अनुसार शिमला बैठक में पेट्रियॉटिक डेमोक्रेटिक एलायंस के पहले कन्वेनर के रुप में उनके नाम पर मुहर लग जाती है तो यह माना जायेगा कि वह पीएम फेस के उम्मीदवार के रुप में विपक्षी दलों की पहली पसंद है.
सीएम नीतीश पर कायम है राहुल गांधी का विश्वास
हालांकि सच यह भी है कि आज भी नीतीश कुमार इस पेट्रियॉटिक डेमोक्रेटिक एलायंस के अधोषित संयोजक के रुप में काम कर ही रहे हैं. और राहुल गांधी का उन पर विश्वास कायम है. वैसे भी मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी अपनी सदस्यता गंवा चुके हैं, उन पर छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने पर रोक है. हालांकि मामला कोर्ट में चल रहा है, और बहुत संभव है कि यह मामला अभी लम्बा खींचे. लेकिन फिलवक्त सीएम नीतीश की राह में कोई बड़ी बाधा नजर नहीं आ रही है. हालांकि कुछ लोग कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे की ओर से भी इशारा कर रहे हैं, और खास कर तब जब मल्लिकार्जून खड़गे एक दलित समुदाय से आते हैं, एक बड़ा वोट बैंक उनके साथ खड़ा हो सकता है.
यूपीए से भिन्न है पीडीए का चरित्र
लेकिन यहां यह भी याद रहे कि यह विपक्षी दलों का गठबंधन है, इसका चरित्र यूपीए से भिन्न है, जहां यूपीए में कांग्रेस का प्रभुत्व था, वहीं पेट्रियॉटिक डेमोक्रेटिक एलायंस में कई क्षेत्रीय दलों की भूमिका कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण है, और साफ है कि इन दलों की अब तक की पसंद सीएम नीतीश ही है, हालांकि राजनीति में कल क्या हो, कुछ कहा नहीं जा सकता, और खास कर जब इसका हिस्सा शरद पवार जैसा मजा राजनेता हो, जिसके अगले सियासी चाल का अंदाज लगाना एक नामुमकिन टास्क है. बावजूद इसके सीएम नीतीश को हल्के में लेना एक भारी भूल होगी, बिहार से चला सियासी तूफान देश में कहर मचाने को निकल पड़ा है, देखना होगा कि इस आंधी में कौन बहता है, और किसे मुंह की खानी पड़ती है, लेकिन इतना तो साफ है कि विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी भाजपा को इस आंधी के सामने बड़ा नुकसान उठाना होगा, वह नुकसान कितना बड़ा होगा इसका आकलन भविष्य तय करेगा
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