Ranchi-इस बार के लोकसभा चुनाव में धनबाद लोकसभा की सीट इंडिया गठबंधन और एनडीए दोनों के लिए ही हॉट सीट बनता दिख रहा है. जहां भाजपा के अंदर ढुल्लू महतो की उम्मीदवारी का विरोध की खबर है, अब तक भाजपा का कोर वोटर माने जाते रहे राजपूत जाति के बीच इस बात नाराजगी है कि ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बना कर भाजपा ने झारखंड से राजपूत जाति का पत्ता ही साफ कर दिया, हार जीत तो अपनी जगह, यहां तो उन्हे अखाड़े से ही बाहर कर दिया गया. उनकी सबसे ज्यादा उम्मीद इसी धनबाद सीट से थी, राजपूत जाति के मतदाताओं में यह विश्वास था कि यदि पीएन सिंह का पत्ता काटता है, तो उस हालत में किसी राजपूत जाति को ही उम्मीदवार बनाया जायेगा, लेकिन भाजपा ने बेहद अप्रत्याशित फैसला करते हुए ढुल्लू महतो को अपना उम्मीदवार बनाने का फैसला किया, और इसके साथ ही चतरा से निर्वतमान सांसद सुनील सिंह के स्थान पर भूमिहार जाति से आने वाले कालीचरण सिंह की उम्मीदवारी का एलान कर दिया.
ढुल्लू महतो का विरोध और समर्थन की सियासत
जैसे ही यह खबर सामने आयी विरोध और समर्थन की राजनीति शुरु हो गई, जहां राजपूत के सामाजिक संगठनों के द्वारा ढुल्लू महतो की उम्मीदवारी का विरोध करते तत्काल प्रत्याशी बदलने की मांग की गयी, वहीं काफी अर्से से धनबाद में इंट्री का सियासी चाहत पाले सरयू राय ढुल्लू महतो से जुड़े आपराधिक मामलों की एक लम्बी सूची के साथ सामने आये, और इस कथित दागदार छवि में अपना सियासी भविष्य संवारने की जुगत लगाते भी दिखें.लेकिन जैसे ही सरयू राय ने ढुल्लू महतो के कथित आपराधिक अतीत सामने रखने की कोशिश की, एक-एक वारदात और उस मामले में कोर्ट के फैसले को सामने रखा, इस सियासी संग्राम में डॉन प्रिंस खान की इंट्री हो गयी, कथित रुप से प्रिंस खान के एक ऑडियो वायरल होने लगा, जिसमें इस बात का दावा किया कि ढुल्लू महतो को निशाना सिर्फ इसलिए बनाया जा रहा है, क्योंकि वह एक पिछड़ी जाति से आते हैं. और ढुल्लू महतो की यह कथित आपराधिक छवि नहीं, बल्कि पिछड़ी जाति से आना ही असली गुनाह है. और यही से इस बात के संकेत मिलने लगे कि प्रिंस खान इस बार भाजपा के घोषित उम्मीदवार ढुल्लू महतो के पक्ष में बैटिंग करते नजर आ सकते हैं. हालांकि बाद में प्रिंस खान ने यह सफाई देने की भी कोशिश भी कि उसका ढुल्लू महतो से कोई वास्ता नहीं है. इस सियासी संग्राम में उसकी कोई भूमिका नहीं होने वाली है, लेकिन तब तक प्रिंस खान का बात लोगों तक पहुंच चुकी थी, और प्रिंस खान की इस सफाई को भी ढुल्लू महतो का एक बचाव की कोशिश मानी गयी.
क्या अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच प्रभाव डालने की स्थिति में हैं प्रिंस खान
प्रिंस खान की इस बैंटिंग के बाद यह सवाल खड़ा होने लगा कि क्या प्रिंस खान का अल्पसंख्यक समाज के बीच इतनी सामाजिक और सियासी पकड़ है कि वह धनबाद से दूर रहकर भी अल्पसंख्यक मतदाताओं का रुख ढुल्लू महतो की ओर मोड़ सकता हैं. क्या धनबाद का अल्पसंख्यक समाज एक डॉन के इशारे पर अपना वोटिंग पैटर्न में बदलाव करेगा, जब पूरे देश में मुस्लिम मतदाताओं के बारे में यह धारणा है कि वह भाजपा को रोकने वाले उम्मीदवार पर ही अपना दांव लगायेगा, प्रिंस खान हवा के इस रुख को मोड़ सकने की हैसियत रखते हैं. और यदि नहीं तो फिर प्रिंस खान ने यह बैटिंग क्यों की? क्यों ढुल्लू महतो की ओर से बैंटिग करते हुए पिछड़ी जातियों के बीच एक सियासी संदेश देने की कोशिश करते नजर आयें?
सियासत के अखाड़े में गैंगस्टर की भूमिक नयी नहीं
यहां याद रहे कि सियासी अखाड़े में गैंगस्टर, बाहुबलि और डॉनों की यह कोई पहली भूमिका नहीं है, सियासात के अखाड़े में धनबल के साथ बाहुबल की मजबूत दखल रही है, और मतदाताओं के बीच उसका असर भी होता है, आज भी कई सामाजिक समूहों का रहनुमाई का दावा करने वाले डॉन और गैंगस्टर चुनावी अखाड़े की शोभा बढ़ा रहे हैं, और यदि उनकी जीत होती है, तो वह एक सफेदपोश के रुप में हमारे संसद की शोभा भी बढ़ायेंगे, इस पृष्ठभूमि में यदि प्रिंस खान भी यही कोशिश करते नजर आते हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, सवाल सिर्फ उस सियासी कुब्बत का है, जिसके सहारे मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा को अपने साथ खड़ा किया जाय, धनबाद की सियासत पर नजर रखने वाले कई जानकारों का दावा है कि फिलहाल प्रिंस खान की वह हैसियत नजर नहीं आती, प्रिंस खान इसकी कोशिश जरुर कर सकते हैं, लेकिन मुस्लिम समुदाय ढुल्लू महतो के पक्ष में मतदान करेगा, इसकी संभावना दूर -दूर तक नजर नहीं आती.
प्रिंस खान की इंट्री पर गैंगस्टर फहीम खान की क्या भूमिका होगी?
और इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा होता है कि यदि चुनाव के पहले प्रिंस खान इसकी कोशिश करते नजर भी आते हैं तो उस हालत में कोयलांचल के गैंगवार का पुराना किरदार और प्रिंस खान का मामा फहीम खान की क्या भूमिका होगी? क्योंकि प्रिंस खान और फहीम खान की अदावत नयी नहीं है. क्योंकि कोयलांचल के गैंगवार में दोनों के दूसरे से टकराते नजर आते हैं, इनके बीच खून-खराबे का एक लम्बा इतिहास भी रहा है, इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि क्या फहीम खान प्रिंस खान के इस सियासी प्रयोग को सहज स्वीकार कर प्रिंस खान का चेहरा चमकने का मौका देगा या फिर उसका भी कोई घोषित स्टैंड होगा, और यदि होगा तो क्या फहीम खान ढुल्लू महतो के विरोधी खेमें के साथ खड़ा होगा.
प्रिंस खान की इंट्री के बाद सिमटता नजर आता है फहीद खान का खौफ
वैसे कोयलांचल की सियासत और गैंगवार पर नजर रखने वालों का दावा है कि अपराध की दुनिया में प्रिंस खान की इंट्री के बाद फहीम खान का दायरा हर गुजरते दिन के साथ सिमटता जा रहा है, एक तो उनकी उम्र ज्यादा हो गई है, दूसरे वह खुद जेल में बंद है. लेकिन इससे जुड़ा दूसरा सवाल है कि यही तो वह समय होता है कि जब गैंगस्टरों का सियासी जीवन में औपाचरिक इंट्री होती है, यानि जब एक गैंगस्टर के रुप में जब कुछ ज्यादा करने को नहीं होता, उसके बाद ही सियासत में अवसर की तलाश होती है, हालांकि इस बीच यह भी देखना होगा कि फहीम खान के उपर दर्ज मुकदमों की स्थिति अभी क्या है? और क्या निकट भविष्य में जेल से मुक्ति की संभावना कितनी है? और सवाल यह भी है कि क्या फहीम खान अपने किसी सियासी जुगत से इस संभावना की राह को आसान बनाने की कोशिश में हैं? क्योंकि यह तो सियासत है, यहां हमेशा से अपराधियों, बाहुबलियों और डॉनों को पूरा सम्मान मिलता रहा है. बहुत ज्यादा हुआ तो हमारा डॉन और तुम्हारा डॉन तक ही बहस-विमर्श को सीमित करने की कोशिश होती है, एक पार्टी की सरकार में एक चेहरा डॉन का होता है तो सरकार बदलते ही वही चेहरा एक बाहुबलि भर बन जाता है. बाहुबलि और गैंगस्टर के बीच सियासत की एक महीन रेखा भर होती है, लेकिन फिलहाल फहीम खान इस रेखा को पार करते नजर नहीं आते, वैसे अभी तो इस जंग की शुरुआत भर हुई है, देखना होगा कि आने वाले दिनों में प्रिंस खान की क्या भूमिका होती है? इंडिया गठबंधन की ओर से किस चेहरे पर दांव लगाया जाता है, उसके बाद ही फहीम खान की भूमिका पर विस्तार से विचार किया जा सकता है.
4+