Ranchi-एक तरफ झारखंड की कुल 14 में 11 लोकसभा सीटों पर भाजपा अपने प्रत्याशियों का एलान कर इस बात का इंतजार कर रही है कि उसके सामने विपक्ष का चेहरा कौन होगा? जिस इंडिया गठबंधन और महागठबंधन का इतना शोर है, उस महागठबंधन का महाबलि कौन होगा? इस बार किसके हाथों में मोदी रथ को रोकने की कमान होगी? दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन अभी भी चेहरों के उधेड़बुन में फंसा नजर आता है. हालांकि कई लोकसभा में तस्वीर कुछ साफ होती नजर आने लगी है, लेकिन कोडरमा का उलझन सुलझता नजर नहीं आता और इसका कारण कि इंडिया गठबंधन के अंदर कोडरमा सीट को लेकर जारी खींचतान है. इसी दुविधा में एक तरफ माले से राजकुमार यादव मैदान में उतरने का ताल ठोक रहे हैं, तो राजद समर्थकों को अभी भी सुभाष यादव का मैदान में उतरने की आशा बनी हुई है. और इस सबसे अलग भाजपा छोड़ झामुमो का कमान थामने वाले जयप्रकाश वर्मा अपने सामने पसरते सियासी भविष्य की उलझनों से दो चार हैं. इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि आखिर इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन होगा? साथ ही यह सवाल भी खड़ा होता है कि अन्नपूर्णा की राह को मुश्किल या आसान बनाने का समीकरण क्या हो सकता है. किस चेहरे से कोडरमा के अखाड़े में अन्नपूर्णा की उलझने बढ़ सकती है और किस समीकरण के आसरे मुश्किलें आसान हो सकती है.
कोडरमा की सियासत में दो सामाजिक समूहों के बीच गोलबंदी का पुराना इतिहास
ध्यान रहे कि कोडरमा में मुख्य सियासी भिड़त दो सामाजिक समूहों के बीच ही होती रही है. एक तरफ कोयरी-कुशवाहा और कुर्मी-महतो की सियासी युगलबंदी, वहीं दूसरी ओर यादव जाति की सियासत. इन दोनों ही जातियों का कोडरमा की सियासत में बड़ा दखल है. फिलहाल कोडरमा संसदीय क्षेत्र में आने वाले कोडरमा विधान सभा से भाजपा की नीरा यादव, बरकठ्टा विधान सभा से निर्दलीय अमित यादव, धनवार विधान सभा से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल, बगोदर से माले के विनोद कुमार सिंह, जमुआ सुरक्षित सीट से भाजपा के केदार हाजरा और गांडेय विधान सभा से झामुमो के सरफराज अहमद (इस्तीफा के बाद राज्य सभा) है. यानि विधान सभा के हिसाब से इस समय यादव जाति के दो विधायक और मौजूदा सांसद अन्नपूर्णा देवी हैं. इस प्रकार वर्तमान सत्ता समीकरण में कोयरी-कुर्मी जातियों की सियासी हनक की झलक देखने को नहीं मिलती. लेकिन सामाजिक हकीकत की तस्वीर ऐसी नहीं है. स्थानीय जानकारों के अनुसार इस संसदीय सीट पर यादव जाति के आसपास ही कोयरी-कुशवाहा-कुर्मी की आबादी भी है. हालांकि उसका कोई प्रमाणित डाटा उपलब्ध नहीं है. लेकिन इसी सामाजिक ताकत के बूते कभी रीतलाल वर्मा और तिलकधारी सिंह की सियासत गढ़ी गयी थी. हालांकि बाबूलाल मरांडी और रविन्द्र राय की इंट्री के बाद कोयरी-कुशवाहा जाति के इस सियासी वर्चस्व पर एक प्रकार से विराम लग गया.
क्या है जातीय और सामाजिक समीकरण
यदि हम कोडरमा ससंदीय सीट का सम्पूर्ण सामाजिक समीकरण को समझन की कोशिश करें तो अनुसूचित जाति की आबादी 14 फीसदी, आदिवासी मतदाता 6 फीसदी और अल्पसंख्यक आबादी करीबन 20 फीसदी है. उसके बाद करीबन पचास फीसदी की आबादी तमाम पिछड़ी जातियों की है. वहीं एक दूसरे दावे के अनुसार कोडरमा में यादव करीबन तीन लाख, मुस्लिम ढाई लाख की है, कुल मिलाकर यादव मुस्लिम के साथ ही दूसरी पिछड़ी जातियों की भी एक बड़ी आबादी है. इस बीच कोडरमा की सियासत पर नजदीकी नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि कोडरमा में यादव जाति की उसी चेहरे के साथ खड़ा होती है. जिसकी जीत की संभावना उसे प्रबल नजर आती है. यदि इस तर्क को स्वीकार कर ले तो अन्नपूर्णा की राह में मनोज यादव और राजकुमार यादव कोई बड़ी चुनौती पेश करते नजर नहीं आते. यानि एक साथ तीन लाख यादव जाति के मतदाताओं का अन्नपूर्णा के साथ खड़ा होना लगभग तय माना जा रहा है.राजकुमार यादव का माले का कोर मतदाता तो साथ खड़ा रहेगा, लेकिन वह यादव जाति में कोई बड़ी सेंधमारी की स्थिति में नहीं होगे.
इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन?
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि आखिर इंडिया गठबंधन किस चेहरे को सामने लाकर अन्नपूर्णा की राह को मुश्किल बनाया जा सकता है. दो नाम सबसे पहले सामने आता है. पहला नाम है कोडरमा से तीन-तीन बार के सांसद रहे तिलकधारी सिंह के पुत्र और गांडेय विधान सभा से वर्ष 2014 में विधायक रहे पूर्व विधायक जयप्रकाश वर्मा का है. भाजपा की सवारी कर झामुमो का दामन थामने वाले जयप्रकाश वर्मा के बारे में दावा किया जाता है कि पूर्व सीएम हेमंत ने उन्हे कोडरमा संसदीय सीट पर चुनाव लड़ने के आश्वासन के साथ ही झामुमो में इंट्री करवायी थी. उनकी रणनीति जयप्रकाश वर्मा के चेहरे को आगे कर बीस फीसदी अल्पसंख्यक, कुशवाहा-कुर्मी के साथ ही गैर यादव पिछडी जातियों को एक पाले में खड़ा करने की थी और दूसरा चेहरा माले से बगोदर विधायक और झारखंड की सियासत का चर्चित चेहरा महेन्द्र सिहं के बेटे विनोद कुमार सिंह का है. विनोद कुमार सिंह अपर कास्ट जातियों में कितनी सेंधामारी करने की स्थिति में होंगे? वह तो एक जूदा सवाल है, लेकिन इतना तय कि तब एक तरफ विनोद सिंह की जमीनी सियासत की हनक होगी तो दूसरी ओर सुविधावादी राजनीति का चेहरा. जिसके लिए विचारधारा बस सत्ता की सीढ़ी होती है. इस हालत में देखना होगा कि इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन होगा? क्योंकि यह तो सियासत है. यहां कई बार पाशे सामने वाले की सुविधा के अनुसार भी फेंका जाता है. शायद गठबंधन के अंदर कुछ यही स्थिति हो.
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