टीएनपी डेस्क ( Tnp desk):- भुईहरी जमीन के बारे में बहुत लोग नहीं जानते थे, कईयों ने तो इसका नाम भी नहीं सुना होगा . अचानक झारखंड में जमीन घोटेले की खबर फिंजा में तेरी और ईडी ने जब इसकी पड़ताल में तेजी की, और जब नाम तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का आया. तब ही बरियातू की भुईहरी जमीन के बारे में लोग जाने . सवाल मन में कईयों के पैदा हुआ कि आखिर ये कैसी जमीन होती है, आखिर इसकी क्या प्रकृति हैं और आखिर क्या इसका इतिहास रहा है.
हेमंत सोरेन पर ईसी भूईहरी जमीन के घोटाले की तोहमत लगी है. जिसके चलते मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और अभी जेल में ईडी उनसे सवाल-जवाब कर रही है. हेमंत अपने ऊपर लगे इल्जाम पाक साफ होने के लिए, रोज अपनी बेगुनहाई के लिए लड़ रहे हैं. इस भूईहरी जमीन के चलते ही कई नाम अभी भी जांच एजेंसी की जद में हैं. जिनसे भी पूछताछ और सवाल-जवाब किया जा रहा है. और कई तो सलाखों के पीछे चले भी गये हैं.
भुईहरी जमीन किसे कहते हैं
झारखंड मे जमीन की कई प्रकार हैं, उनमे से एक भुईहरी जमीन भी है. दरअसल, उरांव जनजातियों की जमीन को भुईहरी जमीन कहा जाता है. यह जमीन झारखंड के दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के 2482 मौजा में स्थित है. भुईहरी जमीन के मालिक वे परिवार हैं, जिनके पूर्वजों ने जंगल साफ कर जमीन को आबाद किया और खेती लायक बनाया . इसके साथ ही गांव भी बसाया. जब अंग्रेजों इन इलाकों में आए तो तब यहां की सभी जमीन को जमींदारों की जमीन समझने में गलती की. इसके खिलाफ भुईहरी गांवों में संघर्ष और विद्रोह तेज हो गया. यह संघर्ष जमींदारों, अंग्रेजों और भुईहरी परिवारों के बीच चला .
जमीन की खरीद-बिक्री पर रोक
संघर्ष लगातार चलने लगा तो फिर अंग्रेजों ने सन 1869 में एक कानून बनाया, जिसे छोटनागपुर टेन्योर एक्ट के रुप में जाना जाता है. यह कानून 1869 में 2482 भुईहरी मोजा के लिए लागू किया गया. छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट 1908 में भी भुईहरी अधिकार को बनाए रखा और इस जमीन की खरीद बिक्री पर रोक लगायी गयी. इस जमीन पर भुईहरी परिवार सिर्फ अपने संगे संबंधियों को बसा सकते थे, उनका भी एक समिति अधिकार ही था.
भूमि सुधार कानून 1954 लागू करने के समय भी इलाके में विद्रोह की स्थिति बनी. इसके बाद भुईहरी जमीन को भूमि सुधार कानून से अलग रखा गया. यह जमीन सरकार में निहित नहीं है. सरकार इस जमीन को दाखिल-खारिज नहीं कर सकती और न ही रसीद काट सकती है.
भुईहरी जमीन का हस्तांतरण आदिवासियों के बीच भी नहीं हो सकता , न ही इसे लेकर कोई नियमावली ही बनीं है. सीएनटी एक्ट की धारा 48 में भुईहरी जमीन की बिक्री पर रोक लगी हुई है.
विशेष प्रयोजन पर उपयोग
भुईहरी जमीन का विशेष प्रयोजन पर उपयोग होता रहा है. उपायुक्त की इजाजत से स्कूल, कॉलेज, अस्पताल , उद्योग जैसे सार्वजनीक काम के लिए अनुमति मिलती रही है. लेकिन, इसमे उपायुक्त की रजामंदी के साथ ही जमीन पट्टा जो तैयार किया जाता रहा है. उसमे टर्म और कडिशंस भी इंगित रहता है.
इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि अगर किसी ने भुईहरी जमीन पर उपायुक्त के परिमशन औऱ नियम-शर्तों को मानते हुए कॉलेज बनाया और अगर बाद में यह बंद हो गया. तो जिस व्यक्ति को यह जमीन मिली है. वह कोई दूसरा काम इस जमीन में शुरु नहीं कर सकता है. और न ही इस भुईहरी जमीन को बेच सकता है. इस हालत में यह जमीन स्वत: मूल भूस्वामी को वापस हो जाएगी. हेमंत सोरेन तो अभी ईडी को इसी जमीन के बारे में सफाई द रहे हैं . लेकिन, जांच एजेंसी उन पर शिकंजा लगातार कस रही है. हालांकि, इसी जमीन को लेकर हेमंत ने विधानसभा में हुंकार भी भरी की , अगर उन पर जो अरोप लगे हैं अगर साबित हो गये, तो फिर राजनीति से संन्यास ले लेंगे और झारखंड से भी बाहर चले जायेंगे.
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