Patna-एक तरफ जहां रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के सहारे भाजपा हिन्दू मतों का धुर्वीकरण की सियासी मंशा पर आगे बढ़ती हुई नजर आ रही है, वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के घटक दलों के बीच इसकी काट खोजने की होड़ भी शुरु हो चुकी है. और यह होड़ आज अचानक से शुरु नहीं हुई है, विपक्षी दलों को इस बात का भली भांति अंदाजा था कि इस प्राण प्रतिष्ठा को भाजपा 2024 के महासंग्राम में अपने चुनावी मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करेगी. हिन्दूओं के बीच उभान लेती इस आस्था की गंगा में डूबकी लगा कर वह 2024 में एक बार फिर से अपने लिए दिल्ली का सुरक्षित रास्ता खोजेगी. और यही कारण है कि इस बार राजद से लेकर जदयू के बीच भी कर्पूरी ठाकुर के इस जन्म शताब्दी समारोह को बेहद भव्य बनाने की तैयारी है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह होड़ सिर्फ जदयू राजद के बीच है, उपेन्द्र कुशवाहा जो खुद भी अपने आप को अतिपिछड़ी जातियों का सबसे बड़ा हिमायती बताते हैं, उनके द्वारा भी इस बार भव्य कार्यक्रम करने की तैयारी है.
अति पिछड़ी जातियों के बीच आज भी उफान पर है कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता
दरअसल जातीय जनगणना में इस बात का खुलासा हो चुका है कि बिहार की कुल आबादी में अति पिछड़ी जातियों की भागीदारी करीबन 36 फीसदी है, यदि इसमें पिछड़ी जातियों की संख्या को भी जोड़ दें तो यह संख्या करीबन 63 फीसदी तक पहुंच जाती है. कर्पूरी ठाकुर इन जातियों के बीच उनके सियासी-सामाजिक प्रतिनिधित्व का सिंबल रहे हैं, हर अति पिछड़ी जाति को लगता है कि जब कर्पूरी ठाकुर सत्ता के शीर्ष शिखर तक पहुंच सकते हैं, तो बिहार की सत्ता का दरवाजा उनके लिए भी बंद नहीं है, बल्कि इसके विपरीत बिहार की सत्ता की वास्तविक चाभी तो उन्ही के हाथों में कैद है, जहां ये अति पिछड़ी जातियां ढली सत्ता उसी के पास होगी, और यही कारण है कि मुकेश सहनी को हो दूसरी पिछड़ी जातियो से आने वाले नेता आज कर्पूरी सबकी जुबान पर है.
नीतीश से लेकर लालू तक कर्पूरी पाठशाला से निकले छात्र
बिहार की सियासत का एक सत्य यह भी है कि खुद नीतीश से लेकर लालू तक उसी कर्पूरी स्कूल से निकले विद्यार्थी है. और दूसरा सत्य यह भी है नीतीश कुमार के नेतृत्व में जिस जातीय जनगणना को करवाया गया है, उसकी रिपोर्ट ही बतलाती है, सबसे ज्यादा गरीबी और फटेहाली इसी अति पिछड़ी जातियों की है. आज भी इन जातियों को उनकी आबादी के हिसाब के राजनीतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हुआ है, इस बीच नीतीश कुमार ने करीबन 94 लाख परिवारों को रोजगार के लिए दो दो लाख रुपये देना का भी एलान कर एक बड़ी सियासी लकीर खींच दी है. क्योंकि दलितों के बाद इसका सबसे बड़ा लाभ इन्ही अति पिछड़ी जातियों को मिलना है. इस प्रकार साफ है कि कर्पूरी ठाकुर की जन्म शताब्दी को भव्य बनाने की जो होड़ लगी है, वह अकारण नहीं है, इसके पीछे एक सियासी गणित भी काम कर रहा है, और यदि यह गणित काम कर जाता है, तो निश्चित रुप से महागठबंधन को इसका सबसे ज्यादा लाभ होगा. हालांकि कोशिश भाजपा की ओर से भी होगी, लेकिन उसकी मजबूरी यह है कि उसके पास आज कोई भी कर्पूरी की तरफ समाजवादी पृष्ठभूमि का नेता मौजूद नहीं है, इसके विपरीत वह धर्म की सियासत और महज धार्मिक भावनाओं को सहलाकर अति पिछड़ी जातियों को अपने खेमें में रखने की कोशिश करती दिखती है, जबकि आज अति पिछड़ी जातियों की महत्वाकांक्षा बदल चुकी है, अब वहां सवाल सामाजिक सियासी हिस्सेदारी का खड़ा हो गया है, और इस मामले में महागठबंधन उसे ज्यादा प्रतिनिधित्व देता नजर आता है, खासकर जिस प्रकार भाजपा के कुछ नेताओं के द्वारा जातीय जनगणना की राह में रोड़ा डालने की कोशिश की गयी, या फिर से विशाल हिन्दू समूदाय को विभाजित करने के रुप में प्रस्तूत किया गया, निश्चित रुप से यह अति पिछड़ी जातियों नागवार गुजरी है.
कल सीएम नीतीश अति पिछड़ी जातियों के लिए कर सकते हैं कोई बड़ी घोषणा
दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना के साथ ही जिस प्रकार अति पिछड़ी जातियों के आरक्षण में विस्तार दिया है, उसके बाद उनका झूकाव काफी हद कर महागठबंधन की बढ़ता दिखलायी पड़ने लगा है, हालांकि राजनीति में कुछ भी अंतिम नहीं होता, और इन अति पिछड़ी जातियों का एक बड़ा खेमा किसी भी वक्त मंदिर पॉलिटिक्स का शिकार हो सकती है. लेकिन जिस प्रकार नीतीश कुमार एक बाद एक फैसले कर रहे हैं, उसके चलते भाजपा में बेचैनी जरुर पसरती नजर आ रही है, और यही कारण है कि अब तो यह लड़ाई उस मैदान को लेकर भी छिड़ गयी है, जिस मैदान पर जदयू इस कार्यक्रम को आयोजन करने वाली है, भाजपा का दावा है कि मिलर मैदान उसके द्वारा काफी पहले ही बुंकिंग करवाया था, लेकिन चूंकि जदयू नहीं चाहती कि भाजपा भी कर्पूरी जयंती मनाये इसलिए वह जबरन इसी मैदान पर अपना आयोजन करने का दावा कर रही है. हालांकि अंतिम सूचना आने तक जदयू अब इस कार्यक्रम का आयोजन वेटनरी कॉलेज ग्राउंड में करने जा रही है. साफ है कि कल का दिन पटना में काफी हलचलों से भरा होगा, और बहुत संभव है कि कल सीएम नीतीश के द्वारा अति पिछड़ी जातियों को इंगित करते हुए कोई बड़ा सियासी घोषणा भी हो.
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