TNP DESK- बसपा सांसद कुंवर दानिश अली ने संसद में भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी के द्वारा अपने खिलाफ आंतकवादी, मुल्ला और कटुवा शब्द का प्रयोग किये जाने के बाद पहली बार अपनी पीड़ा का सार्वजनिक इजहार करते हुए लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के संकेत दिये हैं. उन्होंने कहा है कि हमने इस संबंध में लोकसभा अध्यक्ष से शिकायत की है, और हमें इसका विश्वास है कि भाजपा अपने सांसद के खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत जुटायेगी. बावजूद इसके यदि लोकसभा अध्यक्ष इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो आखिरकार मुझे लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ेगा, आखिर हम उस संसद का हिस्सा क्यों बने रहें, जहां संसदीय मर्यादा की सारी सीमाएं लांघी जा रही हो. लोकतंत्र का प्रहसन बनाया जा रहा हो.
भारतीय लोकतंत्र की कौन सी छवि सामने आ रही है
जहां एक निर्वाचित प्रतिनिधि को कटुआ, मुल्ला, आंतकवादी और बड़ा जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता हो, और इस निम्नस्तरीय बयान पर भाजपा के वरीय नेताओं के द्वारा मंद-मंद मुस्कान बिखेरी जाती हो. आखिर हम दुनिया में भारतीय लोकतंत्र की कौन सी छवि पेश कर रहे हैं, जिस संसद को हमारे पीएम लोकतंत्र का मंदिर बताते नहीं अघाते हो, हिन्दुस्तान को मदर ऑफ डेमोक्रेसी होने का दावा करते हैं, उस मंदिर की यह दुर्दशा किसने की? और एक अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले सांसद को भरी संसद में कटुआ और मुल्ला कह कर संबोधित करने का महापाप कर हम लोकतंत्र कौन सी सीख दे रहे हैं?
अमृत काल का महाविष
दानिश अली ने अपने दर्द को बयां करते हुए कहा कि दावा तो अमृत काल का किया जाता है, लेकिन इसी अमृत काल में एक समुदाय विशेष के खिलाफ विष फैलाया जा रहा है. यह अमृत काल का विष सिर्फ इस देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है, भाजपा का यही नजरिया देश के दलित,पिछड़े और आदिवासी समाज के प्रति भी है, अब तो सवाल आरएसएस की सीख पर भी खड़ा हो रहा है, क्या आरएसएस इसी प्रकार की सीख अपनी शाखाओं में देती है, क्या इसी प्रकार का जहर वह शाखाओं में फैलाती है, क्या वह आने वाले भारत की यही तस्वीर बनाना चाहती है, क्या यह सच नहीं है कि भाजपा सांसद के इस बयान के बाद पूरी दुनिया में भारत की इज्जत दांव पर लग चुकी है.ट
इस घटना के बाद बाबा साहेब की आत्मा भी रो रही होगी
इस बीच बसपा सुप्रीमो बहन मायावती ने भाजपा से उसके सांसद रमेश बिधूड़ी से इस्तीफे की मांग करते हुए भाजपा को लताड़ लगायी है. बसपा ने सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि आखिर हम किसके सपनों का भारत का निर्माण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, यह बाबा साहेब अम्बेडकर के सपनों का भारत है या हेडगवार के सपनों का. गांधी के सपनों का भारत है या सावरकर के सपनों का , यह लौह पुरुष पटेल के सपनों का भारत है या नाथूराम गोड्से के सपनों का भारत. निश्चित रुप से बसपा का यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि भाजपा सांसद के इस बयान के बाद बाबा साहेब की आत्मा जहां भी होगी रो रही होगी. इस बात पर विलाप कर रहा होगा कि आखिर हम और हमारे समकालीनों ने किन हाथों में भारत की तकदीर सौंप दी?
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