Ranchi-राज्य के 11वें मुख्यमंत्री के रुप में ताजपोशी के साथ ही पूर्व सीएम हेमंत ने बुके नहीं बुक का आह्वान कर एक नयी राजनीतिक- सामाजिक संस्कृति की शुरुआत की थी. तब हेमंत सोरेन ने कहा था कि सामाजिक- राजनीतिक कार्यक्रमों में सम्मान के तौर पर उन्हे बुके नहीं बुक प्राप्त करना ज्यादा रुचिकर लगता है. इससे ना सिर्फ उन्हे आत्म संतुष्टी मिलती है, बल्कि पढ़ने-लिखने की संस्कृति का प्रचार प्रसार भी होता है, दावा किया जाता है कि इस आह्वान के अब तक हजारों किताबें मिल चुकी है. अपनी व्यस्त दिनचर्चा के बावजूद भी पूर्व सीएम हेमंत ने सैकड़ों पुस्तकें पढ़ी डाली. बाकी आज भी उनके शयन कक्ष में अपनी पारी का इंतजार कर रही है. जहां वह फुर्सत के पल में इन किताबों में डूबकी लगाते हैं और आदिवासी-मूलवासी समाज के इतिहास को लेकर अपनी समझ को और भी बेहतर करने की कोशिश करते हैं. पूर्व सीएम हेमंत का पुस्तक प्रेम को इससे भी समझा जा सकता है कि आज जब वह कोलकोठरी की उंची -उंची दीवारों कैद हैं. लेकिन यह उंची दीवार उनके पढ़ने लिखने की तड़प को तोड़ नहीं पायी. और वह इस समय को झारखंड का इतिहास और उसके जनसंघर्षों को समझने में लगा रहे हैं. इसी कड़ी में उनके द्वारा कुछ और पुस्तकों की मांग की गयी है.
आज किताब लेकर बिरसा मुंडा कारा जायेंगी कल्पना सोरेन
इसकी जानकारी देते हुए कल्पना सोरेन ने अपने उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा है कि “ हेमन्त जी ने पढ़ने के लिए किताबें मांगी हैं। कल उन्हें यह किताबें देने जाऊंगी। इससे पहले भी हेमन्त जी ने झारखण्ड आंदोलन, मुण्डारी, हो और कुड़ुख भाषा, आदि से जुड़ी किताबें पढ़ने के लिए मंगायी थी। हेमन्त जी को किताबें पढ़ने का हमेशा से शौक रहा है। वह घर में अपनी किताबों को बहुत प्रेम से संजों कर रखते हैं। अन्य किताबों के साथ-साथ झारखण्ड और झारखण्ड आंदोलन से जुड़ी किताबें वह हमेशा विशेष रुचि ले कर पढ़ते रहे हैं। राज्य की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने उनसे मिलने वाले सभी लोगों से ‘बुके नहीं बुक’ देने की अपील की थी। जिसके परिणामस्वरूप पिछले 4 वर्षों में उन्हें हजारों किताबें मिली। राज्य, शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़े, यही हेमन्त जी का सपना रहा है। राज्य के हर पंचायत में आमजन के लिए लाइब्रेरी खोलने की उनकी इच्छा आज हमें कई जगह देखने को मिलती है। सरकारी स्कूलों में उत्कृष्ट पढ़ाई हो, बच्चों की छात्रवृत्ति में वृद्धि हो, गरीब परिवार की बेटियों को आर्थिक मदद मिले- उनकी पढ़ाई न छूटे, वंचित समाज के युवा भी अपने सपनों को साकार करते हुए विदेश में शिक्षा ले सकें - हेमन्त जी का यही संकल्प रहा है।भाजपा अपने कुचक्रों से उन्हें कुछ तो देर तो परेशान कर सकती है - पर एक झारखण्डी योद्धा की सोच और संकल्प को वह कैसे दबा पायेगी? राज्य में शिक्षा की जो क्रांति हेमन्त जी ने शुरू की है वह निरंतर आगे बढ़ रही है। झारखण्ड ने झुकना नहीं, सिर्फ आगे बढ़ना सीखा है.
कौन सी तीन किताब की मांग की हैं पूर्व सीएम हेमंत ने
तो यहां बता दें कि इस बार पूर्व सीएम हेमंत के द्वारा दुर्गा दास रचित भारत का संविधान, मशहूर पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा की पुस्तक शोषण, संघर्ष और शहादत और अभिजीत कुमार बनर्जी लिखित पूवर इकोनॉमिक्स की मांग की गयी है. आज इन्ही तीन किताब को लेकर कल्पना सोरेन बिरसा मुंडा कारा जाने वाली है. अब देखना होगा कि इन पुस्तकों के पाठ से हेमंत को झारखंडी समाज की अस्मिता और उसकी चुनौतियों को समझने में कितनी मदद मिलती है. उनकी जिंदगी में कितना बदलाव आता है. हौसला और कितना धारदार होता है, और वह जब इस कालकोठरी से बाहर आते हैं, वह संघर्ष की कौन की इबारत लिखते हैं.
आप इसे भी पढ़ सकते हैं-
4+