Ranchi- लोकसभा चुनाव के बीच कोल्हान में ईचा डैम का मामला तूल पकड़ने लगा है, बांध विरोधी संघ ने इस बांध को आदिवासी समाज की अस्मिता और सामाजिक सांस्क़ृतिक पहचान को खत्म करने की साजिश करार देते हुए झामुमो से सवाल दागा है कि आखिरकार आदिवासी समाज को इस विनाशकारी डैम से मुक्ति कब मिलेगी. कब अंतिम रुप से इसके निर्माण पर रोक लगाने की घोषणा की जायेगी. आखिर कब तक आदिवासी समाज के गर्दन पर विस्थापन की तलवार लटकती रहेगी.
झारखंड सरकार और भाजपा से अपना रुख साफ करने की मांग
बांध विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे शिवशंकर कालुंडिया ने झारखंड सरकार के साथ ही भाजपा से इस मुद्दे पर अपना रुख साफ करने की मांग करते हुए कहा कि दो दशक से इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटी सेंकी दा रही है, लेकिन मुद्दे अंतिम समाधान नहीं खोजा जा रहा है. आखिरझामुमो को इस बांध पर रोक लगाने के लिए और कितना वक्त चाहिए.
मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने की थी समीक्षा की बात
यहां याद रहे कि अभी हाल ही में मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने इस परियोजना को लेकर समीक्षा की बात की थी, जिसके बाद डूब एरिया में आने वाले गांवों से विरोध की खबर सामने आयी थी. ग्रामीणों का दावा था कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी झामुमो ने बांध पर रोक लगाने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब उसके ही मंत्री इसकी समीक्षा की बात कर रहे हैं, इसका साफ मतलब है कि झामुमो अपने स्टैंड में बदलाव कर रही है. इधर झामुमो की मजबूरी यह है कि यह केन्द्र सरकार की योजना है, और फिलहाल केन्द्र में भाजपा की सरकार है, जब तक केन्द्र की सत्ता में बदलाव नहीं आता, इस पर रोक लगाना संभव नहीं है. केन्द्र सरकार के द्वारा बार बार इसकी प्रगति रिपोर्ट मांगी जा रही है. इस हालत में ईचा डैम झामुमो मोर्चा के गले की हड्डी बनती नजर आ रही है.
वर्ष 2014 में केन्द्र सरकार की मिली थी मंजूरी
याद रहे कि वर्ष 2014 में केन्द्र सरकार की स्वीकृति के बाद इसके डीपीआर और डिजाइन को मंजूरी प्रदान कर दिया गया था. दावा किया जाता है कि इस बांध के निर्माण से करीबन 85 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचित होगी. लेकिन इसके साथ ही चाईबासा जिले के प्रखंड राजनगर, चाईबासा एवं तांतनगर के करीबन 87 गांव डूब एरिया में भी शामिल हो जायेगा, यानि इन गांवों के आदिवासियों को विस्थापन का शिकार होना पड़ेगा, आदिवासी समाज इसी आधार पर इसका विरोध कर रहा है. ईचा-खरकाई बांध विरोधी संघ से जुड़े बीर सिंह बिरूली ने कहा है जिस प्रकार हेमंत सरकार ने बांध निर्माण पर रोक लागने का आदेश जारी किया था, उससे आदिवासी समाज के बीच यह आशा बंधी की जल्द ही इस परियोजना को अंतिम रुप से रद्द करने की खबर सामने आयेगी, लेकिन मंत्री मिथिलेश ठाकुर के बयान से आदिवासी समाज अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है.
मुख्यमंत्री रहते अर्जुन मुंडा ने भी की थी शिलान्यास की कोशिश
यहां यह भी बता दें कि अर्जुन सिंह मुंडा ने भी मुख्यमंत्री रहते इस डैम निर्माण के लिए शिलान्यास की कोशिश की थी, लेकिन आदिवासी समाज के विरोध के कारण अपना कदम वापस खिंचना पड़ा था, जिसके बाद रघुवर दास के शासन काल में इसे पूरा करने की कोशिश की गयी, लेकिन उस वक्त भी आदिवासी समाज के द्वारा इसका जबरदस्त विरोध हुआ.
ईचा डैम के कारण कोल्हान से साफ हुआ था भाजपा का सूपड़ा
दावा किया जाता है कि इस बांध के कारण ही कोल्हान में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था और जबकि बांध का विरोध करने के कारण झामुमो को इसका सियासी लाभ मिला था, लेकिन इस बार झामुमो पर भी वादाखिलाफी का आरोप लग रहा है. इस हालत में देखना होगा कि झामुमो को सियासी नुकसान होता है या फिर वक्त विस्थापितों को कोई सकारात्मक संदेश देकर इस आग को बुझाने की कोशिश की जाती है.
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