रांची(RANCHI)- झामुमो से होते हुए भाजपा तक सफर कर राजनीतिक वनवास झेलते रहे पूर्व सांसद सूरज मंडल को बीपी मंडल की जयंती की पर लालू पर टिप्पणी करना महंगा पड़ गया और काफी हो हंगामें के बाद आखिरकार उन्हे माफी मांगनी पड़ी. हंगामा खड़ा होते देख कर सूरज मंडल ने यह कह कर माफी मांगी की उनका इरादा किसी को आहत पहुंचाने का नहीं था, बल्कि वह उस समय के राजनीतिक हालत को समझाने की कोशिश कर रहे थें, जब लालू यादव राजनीति में संघर्ष कर रहे थें, चूंकि हम सभी दलित-पिछड़ों और आदिवासी समाज के आते हैं, और हमारा ध्येय इन वर्गों की राजनीतिक-सहभागिता को बढ़ाने का है, यही कारण है कि उनके राजनीति के प्रारम्भिक जीवन में हम सब उनकी मदद करते थें, लेकिन जब वह राजनीतिक रुप से सक्षम हो गये, उनका कद बढ़ा और वह बिहार जैसे सूबे के मुखिया बन कर सामने आये तब उनकी भाषा बदली नजर आने लगी, और हद यह हो गयी कि उनके द्वारा अलग झारखंड राज्य का विरोध किया जाने लगा, लालू यादव ने यहां तक कह दिया कि अलग झारखंड राज्य का निर्माण हमारी लाश पर होगा. हमारी कोशिश महज लालू की इसी बदलती राजनीति को समझाने की थी.
यहां बता दें कि मंडल कमीशन के मुखिया बीपी मंडल के जन्म दिन पर दुमका में उनकी जयंती मनाई जा रही थी और इस अवसर पर बड़ी संख्या में पिछड़े और वंचित वर्ग के नेताओं का जमावड़ा हुआ था, इसी दरम्यान पूर्व सांसद सूरज मंडल ने लालू प्रसाद से लेकर दिशम गुरु तक अपनी टिप्पणी कर दी और उनकी राजनीति पर सवाल खड़े करने लगे, जिसका व्यापक विरोध शुरु हो गया, और मौके पर मौजूद पूर्व विधायक संजय प्रसाद यादव, पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा के प्रधान महासचिव अमरेंद्र यादव, प्रमोद यादव सहित दूसरे कई पिछड़ा वर्ग के नेता भड़क उठे और कुर्सियां पटकी जाने लगी.
राजनीतिक बियावान से बाहर निकले की कोशिश करते दिख रहे हैं सूरज मंडल
यहां याद रहे कि सूरज मंडल काफी अर्से से राजनीतिक बियावान में फंसे हैं, उन्हे हार के बाद हार का सामना करना पड़ा रहा है, कभी शिबू सोरेन का दायां हाथ माने जाने वाले सूरज मंडल ने इस बीच में कई राजनीतिक दलों का सफर किया है, यहां तक जिस भाजपा को वह कभी गाली देते नहीं थकते थें, आखिरकार उन्होंने भाजपा का दामन थाम पर अपन राजनीतिक वनवास को खत्म करने की कोशिश की, लेकिन वहां भी उनका साथ नहीं जमा और आखिरकार वह भाजपा को अलविदा कह बाहर निकल गयें, हालांकि गाहे बेगाहे वह अभी भी पीएम मोदी की प्रशंसा करते नजर आते हैं, लेकिन बदली राजनीति में अब भाजपा उन्हे भाव देती नजर नहीं आती है, खासकर जिस प्रकार सूरज मंडल के द्वारा निशिकांत दुबे और दूसरे वैसे नेताओं को निशाना बनाया जाता है, जिसकी पृष्ठभूमि गैर झारखंडी की है, भाजपा उनकी राजनीति के साथ खड़ी नहीं होना चाहती. आज भी सूरज मंडल भाजपा की राजनीति से गैरझारखंडी नेताओं की विदाई के पक्षधर है. उनकी कोशिश अब झारखंड की राजनीति में बाहरी भीतरी विवाद को हवा देकर संताल के इलाके में अपनी कमजोर पड़ती जड़ों को एकबार फिर से मजबूत करने की है.
खैर विवाद बढ़ता देखकर सूरज कार्यक्रम स्थल से बाहर निकल गयें, लेकिन इतना जरुर कहा कि वह आगे भी पिछड़ों और आदिवासी समाज की लड़ाई को लड़ते रहेंगे और बीपी मंडल ने जिस लड़ाई का श्रीगणेश किया था, उसकी आवाज बने रहेंगे.
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