Dumri By-Election: अमूमन लोकसभा या विधान सभा के लिए नामांकन दाखिल होते ही राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के दौरे तेज हो जाते हैं, अपने-अपने आधार मतों की किलेबंदी को और भी धारदार बनाने की मुहिम तेज कर दी जाती है, लेकिन इसके विपरीत डुमरी उपचुनाव में वह उत्साह और जीत का जजबा देखने को नहीं मिल रहा.
सत्ता पक्ष के लिए घातक हो सकता है सहानुभूति की लहर की सवारी
हालांकि सीएम हेमंत ने नामांकन के दिन एक चुनावी सभा कर इंडिया गठबंधन की जीत का दावा पेश कर दिया, लेकिन बावजूद इसके सत्ता पक्ष डुमरी उपचुनाव को बहुत ज्यादा गंभीरता के लेता हुआ दिखलाई नहीं पड़ रहा, जीत के लिए जोर लगाने के बजाय वह टाईगर जगरनाथ महतो की लोकप्रियता और उनकी मौत के कारण उमड़ी सहानुभूति की लहर पर सवारी करता हुआ वह कुछ ज्यादा ही दिख रहा है. आज के दिन इंडिया गठबंधन का कोई बड़ा चेहरा वहां कैम्प करता हुआ नजर नहीं आ रहा, हालांकि यह सीट झामुमो के खाते की है, और यह इलाका झामुमो का गढ़ माना जाता है, लेकिन कई बार राजनीति में अप्रत्याशित नतीजे भी सामने आते रहे हैं, और जरुरी नहीं है कि सहानुभूति की लहर हर बार जीत की दहलीज तक पहुंचा ही दें. सहानुभूति की लहर अपने जगह तो ठीक है, लेकिन उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए भी खून-पसीना बहाना होता है, आज सत्ता पक्ष की ओर से डुमरी विधान सभा में वह खून-पसीना बहता नजर नहीं आता.
सुदेश महतो को जीत की जिम्मेवारी सौंप कर मस्त है एनडीए खेमा
हालांकि यही स्थिति एनडीए खेमा की भी है. हालत यह है कि जब डुमरी में एनडीए की उम्मीवार यशोदा का नामांकन हो रहा था, तब सुदेश महतो के साथ वहां भाजपा का कोई बड़ा चेहरा खड़ा नहीं था. इस महत्वपूर्ण मौके पर खुद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल डुमरी से दूर भोगनाडीह में अपनी संकल्प यात्रा का सिंहनाद कर रहे थें. और मजे की बात यह है कि बाबूलाल के संकल्प यात्रा में भी भाजपा का कोई पुराना चेहरा मौजूद नहीं था, इस हालत को देख कर लगता है कि भाजपा ने ना सिर्फ डुमरी की सीट को आजसू के हवाले किया है, बल्कि उसकी जीत और हार की जिम्मेवारी भी सुदेश महतो के कंधों पर छोड़ दिया है.
डुमरी उपचुनाव में जीत के साथ ही आजसू बन सकती है भाजपा की नई मुसीबत
लेकिन यहां जो बात गौर करने वाली है, वह यह है कि रामगढ़ विधान सभा उपचुनाव में जिस प्रकार सुदेश महतो ने सिर्फ अपने बुते चार-चार उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद एनडीए गठबंधन को जीत का तोहफा दिया था, यदि सुदेश महतो ने उसी प्रर्दशन को एक बार फिर से डुमरी में दुहरा दिया तो झारखंड में भाजपा का राजनीतिक संकट खत्म होने के बजाय और भी विस्तार ले लेगा, इस जीत के बाद ना सिर्फ सुदेश महतो का कद आसमान छुने लगेगा, बल्कि भाजपा सुदेश महतो के पीछे चलने को भी मजबूर हो जायेगा.
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