TNP DESK-राजनीति के इस तीखे खेमेबंदी के दौर में भी नितिन गडकरी की पहचान उन नेताओं में की जाती है, जो सच बयानी से पीछे नहीं हटते. सच बयानी की इसी आदत के कारण उन्हे कई बार अपनी ही पार्टी के निशाने पर आना पड़ता है. यह वही गडकरी है, जिन्होंने कुछ दिन पहले यह बयान देकर सनसनी फैला दिया था कि उन्हे फीता काटने, फोटे खिंचवाने और अपना बड़ा-बड़ा कट आउट लगाने का कोई शौक नहीं है. इस बार के लोकसभा चुनाव में वह एक पम्पलेट भी नहीं छपवायेंगे, जिसे हमारे काम पंसद होगा, वह वोट देगा, जिसे नहीं देना होगा नहीं देगा.
ध्यान रहे कि नितिन गडकरी का यह बयान तब आया था, जब पूरे देश में प्रधानमंत्री की छवि को लेकर एक बहस छिड़ी हुई थी, प्रधानमंत्री मोदी को फोटोजीवी बतलाया जा रहा है, इस बात का दावा किया जा रहा था कि एक नल का भी फीटा काटना हो तो पीएम मोदी किसी और मंत्री को सामने आने नहीं देते, उनके साथ किसी मंत्री की फोटे आ जाय, किसी और का चेहरा उनके मुकाबले में सेंट्रल फ्रेम में दिख जाय, तो उनके अन्दर एक डर दिखने लगता है, उस दौर में ग़डकरी इस बात की घोषणा कर करते हैं कि वह आने वाले चुनाव में किसी तरह का प्रचार से दूर रहेंगे, पोस्टर के बजाय अपने काम के आधार पर वोट मांगना पसंद करेंगे.
विपक्ष के बजाय भाजपा की आंतरिक राजनीति की ओर था गडकरी का इशारा
अब वही गडकरी एक बार फिर से चर्चा में हैं, ताजा मामला राजस्थान से जुड़ा है, जहां एक चुनावी प्रचार के दौरान उन्होंने कहा कि घोड़े को घास नहीं गदहे खा रहे च्वयनप्राश, नितिन गडकरी का यह बयान सामने आना था कि इस पर चर्चा तेज हो गयी कि आज की राजनीति का गदहा कौन है. कौन है वह गदहा जो बगैर योग्यता के देश की छाती पर मूंग दल रहा है.
पीएम मोदी की ताजपोशी के साथ ही हाशिये पर खड़े नजर आ रहे हैं गडकरी
जानकारों का दावा है कि गडकरी का कटाश यदि विपक्ष के किसी नेता पर होता तो उन्हे नाम लेने में दिक्कत नहीं होती, उनका इशारा भाजपा के ही किसी बड़े नेता की ओर है, दावा किया जा रहा है कि जिस प्रकार के दिल्ली की गद्दी पर पीएम मोदी के अवतरण के बाद उन्हे हाशिये पर ढकलने की कोशिश की गयी है, नीति निर्धारक समितियों से उन्हे चलता किया गया है, और विभाग दर विभाग छीनते हुए उनके कद को छोटा करने की कोशिश की गयी है, उसके कारण उनके अन्दर एक नाराजगी है और जैसे जैसे देश में विपक्षी गठबंधन का विस्तार होता जा रहा है, उसकी ताकत में इजाफा हो रहा है, ना सिर्फ गडकरी बल्कि भाजपा के करीबन आधा दर्जन नेताओं के सूर बदलते नजर आने लगे हैं, इसमें उसी राजस्थान की बसुंधरा राजे सिंधिया भी है, और मध्यप्रदेश से उमा भारती भी. दावा तो शिवराज सिंह चौहान के बारे में भी किया जा रहा है, दावा किया जा रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में जैसे ही भाजपा 250-240 के आसपास सिमटता है, जो बगावत आज छुपे और घुमावदार शब्दों में किया जा रहा है. वही बगावत तब खुले शब्दों में किया जायेगा, और उस हालत में पीएम मोदी की वापसी नामुमिकन होगा.
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