Ranchi-आखिरकार पूर्व सीएम हेमंत सोरेन के इस्तीफे के 26 घंटों के लम्बे अंतराल के बाद विधायक दल के नवनिर्वाचित नेता चंपई सोरेन को राजभवन की ओर से सरकार बनाने का न्योता मिल गया और इसके साथ ही सियासी गलियारों में तैरती कई किस्से-कहानियां और दावे अपने शबाब पर पहुंचने के पहले ही अपना दम तोड़ गयी, खास कर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के तमाम दावे और भविष्यवाणियां उनकी पूर्व की भविष्यवाणियों के समान भी इस बार एकबार फिर से बेसिर-पैर की बातें साबित हुई. लेकिन जैसे ही यह खबर सामने आयी कि काफी ना-नुकुर के बाद आखिरकार मन मानमार कर चंपई सोरेन को सरकार बनाने का न्योता भेजा चुका है और कल 12.15 बजे उनका शपथ ग्रहण समारोह सम्पन्न होगा, अब इस बहस का रुख इस ओर मुड़ता नजर आने लगा है कि क्या चंपई सोरेन हेमंत मंत्रिमंडल में शामिल चेहरे को लेकर ही आगे बढ़ेंगे या बदली सियासी जरुरत और सामाजिक हकीकत का ध्यान में रखते हुए कुछ नये चेहरों को भी स्थान मिलेगा और बड़ा सवाल यह कि क्या इस मंत्रिमंडल में चंपई की पसंद भी देखने को मिलेगी. हालांकि अभी तक खबर यह है कि आज की शपथ ग्रहण में चंपई के साथ कांग्रेस कोटे पूर्व संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम और राजद कोटे पूर्व श्रम मंत्री और रोजगार मंत्री सत्यानंद भोक्ता को शपथ दिलवाया जायेगा, और इसके साथ ही इस नयी सरकार के सामने दस दिनों के अंदर अंदर अपना बहुमत साबित करने की औपचारिकता पूर्ण करनी होगी. लेकिन इसके साथ खबर यह भी है कि बहुमत साबित करने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार में करते हुए कांग्रेस कोटे से दीपिका पांडेय सिंह और झामुमो कोटे के मुथरा महतो को इस मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया जा सकता है.
क्यों हो सकती है दीपिका पांडेय सिंह की इंट्री
दरअसल इस दावे के पीछे तर्क यह है कि दीपिका पांडेय जिस प्रकार मुखरता और प्रखरता के साथ हर संकट में हेमंत सरकार का बचाव करती रही हैं और मंत्री बनने के बाद गोड्डा और उसके आस पास के जिलों में जो उनकी सियासी ताकत में विस्तार होगा, उसका सीधा लाभ आने वाले दिनों में महागठबंधन को मिल सकता है.
मथुरा महतो पर दांव क्यों?
दूसरा नाम मथुरा महतो का है. इसमें कोई दो मत नहीं की मथुरा महतो आज के दिन झामुमो में एक मजबूत कुर्मी चेहरा है, उनके उपर कोई बड़ा दाग भी नहीं है, सियासी छवि उनकी काफी दुरुस्त रही है, जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं, और जबकि 2024 का महासंग्राम और उसके बाद विधान सभा का चुनाव सामने खड़ा है, इस कुर्मी चेहरे को आगे कुर्मी मतदाताओं को अपने पाले में लाने की रणनीति बनायी जा सकती है.
बसंत या सीता सोरेन की इंट्री क्यों
लेकिन इसके साथ ही अंदरखाने इस बात को लेकर भी रणनीति बन रही है कि बसंत सोरेन या सीता सोरेन में से किसी एक को सरकार में शामिल करवा कर सरकार में परिवार की मौजूदगी को बरकरार रखा जाय. लेकिन मुश्किल यह है कि बंसत सोरेन का नाम जिस तरीके से संताल खनन घोटाले में उछलता रहा है, उस हालत में मंत्रिमंडल में उनकी इंट्री के बाद भाजपा के हाथ एक नया मुद्दा मिल सकता है. रही बात सीता सोरेन की तो, जिस तरीके से बार-बार उनकी ओर से अपनी नाराजगी जाहिर की जाती रही है, और उनकी नाराजगी को औजार बना कर भाजपा हेमंत सरकार निशाना साधती रही है, सीता की सरकार में इंट्री कर उनकी नाराजगी को कम करने की कोशिश की जा सकती है.
4+