रांची(RANCHI)- पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर दूर बेनीसागर नामक गांव में पांचवी शताब्दी में वैदिक अध्यय का केन्द्र होने के अवशेष प्राप्त हुए हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खुदाई में यहां से सैकड़ों ऐसी कलाकृतियां बरामद हुई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि इस इलाके में पांचवी शताब्दी में सुव्यवस्थित मानव निवास था.
पुरातात्विक स्मारकों की सूची शामिल हुआ बेनीसागर
माना जा रहा है कि बेनीसागर के अवशेषों का अध्ययन से कई नयी जानकारियां सामने आ सकती है. तत्काल पुरातत्ववेत्ताओं के द्वारा इन अवशेषों का अध्यय़न किया जा रह है. इसमें मुख्य रुप से मूर्तियां और पत्थर की विभिन्न आकृतियां हैं. दावा किया जा रहा है कि इन अवशेषों के अध्ययन में अभी कई वर्ष लग सकते है, यह बेहद श्रमसाध्य और खर्चीला है. एएसआई ने तत्काल बेनीसागर में देश की सबसे प्रमुख पुरातात्विक स्मारकों की सूची में शामिल कर लिया है.
तीन सौ मीटर चौड़ा और 340 मीटर लम्बा तालाब
यहां बता दें कि एक तीन सौ मीटर चौड़ा और 340 मीटर लम्बा एक तालाब भी मिला है, इसी तालाब के नाम पर इस गांव का नामाकरण बेनीसागर किया गया है. स्थानीय किवदंतियों के अनुसार इस तालाब का निर्माण किसी बेनु नामक राजा ने करवाया था. बेनुसागर पर पहली नजर 1840 में एक ब्रिटिश सेना अधिकारी कर्नल टिकेल की पड़ी थी. कर्नल टिकेल को पुरातात्विक अवशेषों रुचि थी.
1875 में इतिहासकार जे.डी.बेगलर ने किया दौरा
कर्नल टिकेत से प्राप्त जानकारियों के आधारपर 1875 में इतिहासकार जे.डी.बेगलर ने इसका दौरा किया और कई मूर्तियों को खोज निकाला. इस मूर्तियों के आधार पर उनका दावा था कि यहां सातवीं शताब्दी में मानव आबादी निवास करती थी. बाद में इतिहासकार केसी पाणिग्रही ने 1956 में इस पर एक शोध पत्र प्रकाशित करवाया था. आखिरकार एक लम्बे अंतराल के बाद एएसआई ने 2003 में यहां खुदाई का कार्य प्रारम्भ करवाया. इस खुदाई में एएसआई को तालाब के पास से दो पंचायतन मंदिर परिसरों, सूर्य, भैरव, लवलीश, अग्नि, कुबेर आदि की मूर्तियां बरामद हुई.
शैववाद का केन्द्र होने का दावा
कुछ जानकारों का मानना है कि बेनीसागर वैदिक अध्ययन का केन्द्र था, यहां चारों वेदों की शिक्षा दी जाती थी, इस स्थान से प्राप्त मूर्तियों के मैथुन दृश्य से इस बात का भी अंदाजा लगाया जाता है कि यहां यौन शिक्षा भी दी जाती थी. समाज में खुलापन था, और यौन शिक्षा वर्जित नहीं थी. जबकि कुछ इतिहासकारों का दावा है कि बेनीसागर में तंत्रवाद और शैववाद की शिक्षा दी जाती थी, उनका दावा है कि यह पूरा इलाका शैववाद के प्रभाव में था.
ओडिशा की रेखा देउला वास्तुकला की झलक
इस बीच एपी कॉलेज, मयूरभंज के इतिहास विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अजय रावत ने दावा किया है कि यह इलाका ओडिशा से सटा है, कई दशकों तक यहां वहां के राजाओं के द्वारा शासन किया गया है, यही कारण है कि यहां से प्राप्त मूर्तियों और मंदिरों में ओडिशा की प्रचलित रेखा देउला वास्तुकला की झलक मिलती है.
एक किलोमीटर दूर जाती है पत्थर की आवाज
सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन यहां से वर्ष 2009-10 और 2019-20 में अग्नि, गणेश, महिषासुर मर्दनी, सूर्य, ब्रह्मा, शिरोचेदक, भैरव, लकुलीश, यमुना, शिवलिंग की मूर्तियां बरामद हुई है, इन सभी मूर्तियों और अवशेषों को बेनीसागर में निर्मित संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है. इसके साथ ही यहां कई पुरानी इमारतों के अवशेष भी हैं. इन इमारतों में स्नानागार होने का भी दावा किया जाता है. जबकि मंदिर परिसर करीबन 50 एकड़ में फैला है. मंदिर के पास एक विशाल पत्थर है, जिसे दूसरे पत्थर से टकराने पर घंटी की आवाज आती है. जिसकी आवाज एक किलोमीटर दूर तक जाती है.
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