TNPDESK-मतपेटियों में बंद उम्मीदवारों की किस्मत जैसे-जैसे बाहर आ रही है, एकबारगी पंजे पर कमल अपना कहर दिखलाता नजर आ रहा है. मध्यप्रदेश जहां पिछली बार कांग्रेस ने अप्रत्याशित रुप से भाजपा को चुनावी दंगल में मात देकर सरकार बनाने में सफलता की थी, और माना जा रहा था कि इस बार भाजपा को इस खरीद फरोख्त के लिए मतदाताओं के गुस्से का सामना करना पड़ेगा, कांग्रेस इस बार मध्यप्रदेश में अपने पुराने प्रर्दशन से भी काफी दूर खड़ी नजर आयी. राजस्थान जहां हर पांच वर्ष पर रोटी बदलने की परंपरा है, एक बार फिर से उसी परंपरा के साथ चलता नजर आया, हालांकि अशोक गहलोत ने काफी अच्छा संघर्ष किया और सम्मानपूर्ण हार के साथ सत्ता से रुखस्त होते नजर आयें, लेकिन सबसे बुरी खबर छत्तीसगढ़ से निकलती नजर आ रही है, जहां अप्रत्याशित रुप से भूपेश बघेल को हार का सामना करना पड़ रहा है.
हार के साथ ही कांग्रेस को आयी इंडिया गठबंधन की याद
लेकिन, अब हार के इस बारुद के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे ने इंडिया गठबंधन की बैठक बुलाने का एलान किया है, लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस को इस हार के बाद ही इंडिया गठबंधन की याद क्यों आ रही है? चुनाव के बीच जब अखिलेश यादव के साथ ही दूसरी तमाम छोटी-छोटी पार्टियों के द्वारा गठबंधन की कोशिश की गयी तो कांग्रेस की प्रतिक्रिया बेहद अहंकार पूर्ण था, मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सीएम चेहरा माने जाने वाले कमलनाथ तो बेहद दंभ के साथ कौन अखिलेश-वखिलेश कहते नजर आये थें.
तब कांग्रेस को इन पांचों ही राज्यों में अपनी सरकार बनती नजर आ रही थी. और इसी दंभ में वह सपा, चन्द्रशेखर रावण की पार्टी आजाद समाज पार्टी को भाव देने के मूड में नहीं थी. उसका आकलन था कि कांग्रेस खुद अपने बूते इन राज्यों में भाजपा को मात देने में सक्षम है. हालांकि अखिलेश यादव मध्यप्रदेश से सट्टे महज 10 सीटों पर अपनी दावेदारी कर रहे थें, ठीक यही हालत राजस्थान में चन्द्रशेखर रावण की थी, चन्द्रशेखर रावण वहां पांच से दस सीट पर अपनी दावेदारी कर रहे थें, इसके साथ ही कई दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां भी कांग्रेस के साथ गठबंधन को इच्छुक थी. लेकिन वहां भी अशोक गहलोत किसी भी क्षेत्रीय पार्टी से गठबंधन के खिलाफ थें.
अखिलेश यादव ने करीबन सौ सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा किया
कांग्रेस के इसी रवैये के बाद जदयू-सपा ने मध्यप्रदेश के करीबन 100 सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया. दावा किया जाता है कि अखिलेश यादव के प्रति कमलनाथ का यह अंहकार पिछड़ी जातियों को भाजपा के पक्ष में जाने के लिए मजबूर कर दिया, मजे की बात यह रही कि शिवराज सिंह चौहान जैसे पिछड़ा चेहरा के सामने राहुल गांधी जातीय जनगणना और पिछड़ा कार्ड खेल रहे थें, दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के नेता अखिलेश यादव जैसे मजबूत पिछड़ा चेहरा को कौन अखिलेश-वखिलेश कह कर अपमानित कर रहे थें. इस हालत में पिछड़ी जातियों को भाजपा के पक्ष में जाना आश्चर्यजनक नजर नहीं आता. ठीक यही हालत चन्द्रशेखर रावण की भी रही, चन्द्रशेखर रावण ने भी राजस्थान के करीबन 50 सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया, और दावा किया जाता है कि दलित मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को अपने साथ लाने में कामयाब रहें. इस प्रकार जिस अखिलेश, चन्द्रशेखर रावण को सामने कर कांग्रेस जिस दलित पिछड़ी जातियों को अपने पाले में कर सकती थी, यही मतदाता उसके हाथ से फिसलते नजर आये और इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा
कमलनाथ ने ही भोपाल बैठक पर की थी आपत्ति
यहां ध्यान रहे कि बेंगलूरु में इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद इसकी तीसरी बैठक भोपाल में की जानी थी. लेकिन दावा किया जाता है कि इसका पूरजोर विरोध कमलनाथ के द्वारा किया गया. कमलनाथ इस बैठक को खतरे के संकेत के रुप में ले रहे थें, और लगातार सोफ्ट हिन्दुत्व का चेहरा बनने की कोशिश कर रहे थें, यानि जिस हिन्दुत्व के पिच पर भाजपा जिस चुनाव को ले जाना चाहती थी, कमलनाथ भी उसी की सवारी करते नजर आ रहे थें, ठीक यही हालत भूपेश बघेल की थी. अब सवाल यह है कि जब एक तरफ उग्र हिन्दुत्व का रथ वाहक बनकर भाजपा मैदान में उतर रही हो, तो इस सॉफ्ट हिंदुत्व की सवारी कौन करता, इसके विपरीत राहुल गांधी जातीय जनगणना और पिछड़ा कार्ड खेल कर भाजपा के उग्र हिंदुत्व का मुकाबला करने की रणनीति पर काम कर रहे थें, यानि कांग्रेस को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसे किस राह पर चलना है, पूरी कांग्रेस एक वैचारिक द्वन्द्व से झुलती नजर आ रही थी, इस प्रकार दो नावों की सवारी का जो हस्श्र होता है, कांग्रेस की भी वही दुर्गती हुई.
काग्रेंस के लिए इस हार का सबक क्या है?
इस हार का पहला संदेश तो यह है कि कांग्रेस को अपने पुराने ख्यालात से बाहर निकलना होगा, यदि कांग्रेस पिछड़ों के पोस्टर बॉयज पीएम मोदी के खिलाफ वैचारिकी तेज करनी है, उसे सिर्फ जातीय जनगणना और पिछड़ा कार्ड ही नहीं खेलना होगा, इसके साथ ही उसके पास पिछड़ा चेहरा भी होना चाहिए, लेकिन जमीनी हालत यह थी कि शिवराज सिंह जैसे मजबूत पिछड़ा चेहरा के सामने कांग्रेस की ओर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह बैटिंग कर रहे थें. कांग्रेस की असली चुनौती भाजपा नहीं, उसके अपने पुराने चेहरे हैं, जो बदली हुई परिस्थितियों में अपनी प्रासंगिता खो चुके हैं. उसे दलित और पिछड़ी जातियों के तमाम क्षत्रपों को अपने साथ सम्मानपूर्ण खड़ा करना होगा. इसमें चन्द्रशेखर रावण से लेकर जंयत चौधरी सहित दूसरे दलित पिछड़े क्षत्रपों की छोटी छोटी पार्टियां है. और सबसे जरुरी संदेश, कमलनाथ जैसे पुराने बोझ को डस्टबीन में डालना होगा.
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