पटना(PATNA): - दिल्ली में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं से मुलाकात कर वापस लौटे सीएम नीतीश ने बाबा साहेब अम्बेडकर की 132वीं जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में इस बात की घोषणा कर दी है कि अब विपक्ष की एकता कोई दूर की कौड़ी नहीं है, जिसको लेकर तंज कसा जाये. विपक्षी एकता का यह सपना अब कुछ ही कदम की दूरी पर इंतजार कर रहा है, बस कुछ थोड़ी सी औपचारिकता ही पूरी की जानी है, बस कुछ ही सवालों का हल तलाशा जाना है और कुछ सवालों को दरकिनार किया जाना है और जिसके बाद 2024 के महासमर में पीएम मोदी के मुकाबले एक मजबूत और संगठित विपक्ष खड़ा होगा. एक ऐसा विपक्ष होगा जिसके पास चेहरा भी होगा और नीयत भी. जिसके दामन पर ना कोई साम्प्रदायिकता का दाग होगा और ना किसी कॉरपोरेट घराने का मुहर.
उन्होंने कहा कि एक बार चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही पूरे देश में उनकी यात्रा की शुरुआत हो जायेगी. हालांकि उनके द्वारा बार-बार पीएम पद की किसी भी दावेदारी से इंकार किया गया, और यह साफ करने की कोशिश की गयी कि उनका इरादा तो सिर्फ विपक्ष को एकजूट करने का है.
राजनीति में कुछ भी निस्वार्थ नहीं होता
लेकिन राजनीति में कुछ भी निस्वार्थ नहीं होता, हर राजनेता की अपनी राजनीतिक महात्वाकांशा होती है, और इसमें कोई बुराई भी नहीं है. भले ही नीतीश कुमार भी इससे इंकार करते रहे हो, लेकिन जिस प्रकार से आज जदयू कार्यालय में अम्बेडकर जयंती पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, भीम संदेश छापे गयें, पोस्टरवाजी की गयी, साफ है कि भीम राव अम्बेडर के बहाने नीतीश कुमार की नजर भी बिहार के 15 फीसदी दलितों की आबादी पर भी है, यह कार्यक्रम बाबा साहेब के बहाने समाज के सबसे वंचित तबके को एक राजनीतिक संदेश देने की कोशिश है. और यह इस बात का भी संकेत है कि उनकी राजनीतिक की धारा क्या होने वाली है. हालांकि यह सच्चाई भी है कि काफी लम्बे समय तक भाजपा जैसी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाते और चलाते रहे सीएम नीतीश की अपनी छवि हमेशा बेदाग रही, उन्होंने कभी भी अपने दामन साम्प्रदायिकता का दगा लगने नहीं दिया, और ना कभी सामाजिक न्याय के रास्ते से भटकना मंजूर किया.
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