रांची(RANCHI)- ईडी की तफ्तीश में सेना जमीन घोटाले की परतें जैसे-जैसे खुल रही है, वैसे-वैसे कई हैरत अंगेज कारनामें सामने आ रहे हैं. अब तक भूमाफियाओं को निशाने पर लेती आ रही ईडी के निशाने पर इस बार जमीन से जुड़े अधिवक्ता हैं. अब तक इस मामले में रांची के पूर्व आयुक्त आईएएस छवि रंजन, कारोबारी अमित अग्रवाल और जमीन खरीददार दिलीप घोष, सत्ता के गलियारे में हनक रखने वाले प्रेम प्रकाश के साथ ही करीबन आधा दर्जन भूमाफियाओं की गिरफ्तारी हो चुकी है, लेकिन अब ईडी की नजर उन अधिवक्ताओं पर भी टेढ़ी होने लगी है, जिनके द्वारा फर्जी दस्तावेजों का सहारा लेकर सेना की इस जमीन का असली रैयत तैयार किया जा रहा था.
दरअसल ईडी ने अब जमीन का असली रैयत होने का दावा करने वाले जयंत करनाड के वकील हिमांशु मेहता से भी पूछताछ शुरु कर दी है. ईडी कार्यालय में बुधवार के दिन अधिवक्ता हिमांशु मेहता से लम्बी पूछताछ की गयी.
असली रैयत होने का दावा करने वाले जयंत करनाड का दावा
दावा किया जाता है कि ईडी के सवालों में उलझकर जयंत करनाड ने यह स्वीकार कर लिया था कि सेना की जमीन का असली रैयत का होने का दावा करने के लिए उससे हिमांशु मेहता की ओर से सम्पर्क साधा गया था, हिमांशु मेहता ने तब कहा था कि यदि तुम हमारे बताये रास्ते पर चलते रहो तो यह जमीन तुम्हारे नाम हो सकती है, बदले में तुम्हे कुछ रुपये खर्च करने पड़ेंगे, जयंत कारनाड का दावा है कि वह हिमांशु मेहता के इस ऑफर को ठुकरा नहीं सका और उसकी बातों में आ गया और आंख मुंद कर उसके बताये रास्ते पर चलता रहा. मामला कोर्ट में गया और आखिरकार हिमांशु मेहता ने कोर्ट में यह साबित कर दिखाया कि सेना की इस जमीन का असली मालिक जयंत करनाड है, हालांकि इसके एवज में उसे अच्छी खासी रकम भी चुकानी पड़ी.
आजादी के पहले से इस जमीन पर है सेना का कब्जा
बता दें कि सेना का इस जमीन पर कब्जा भारत की आजादी से पहले से ही था, सेना ने इस जमीन को बीएम लक्षमण राव से किराये पर लिया था, इसके एवज में भारतीय सेना हर माह लक्षमण राव को 417 रुपये का भुगतान करती थी, भारत की आजादी के ठीक पहले 1946 में बीएम लक्षमण राव की मृत्यु हो गयी, जिसके बाद यह राशि उनके बेटे बीएम मुकुंदराव को दी जाने लगी, लेकिन वर्ष 1998 में बीएम लक्षमण राव की भी मृत्यु हो गयी. बीएम लक्षमण राव की मृत्यु के बाद सेना ने उसके असली मालिक की तलाश शुरु कर दी, लेकिन काफी जांच-पड़ताल और छानबीन के बाद भी सेना को उसके असली रैयक का पता नहीं चल सका, जिसके बाद सेना ने नोटिस छपवाया, इसे लोगों के बीच वितरित किया, ताकि असली रैयत की पहचान हो सके.
यहीं से शुरु होती है साजिशों की कहानी
लेकिन यहीं से शुरु हो गयी साजिशों की कहानी, नोटिस छपने के बाद अधिवक्ता हिमांशु कुमार मेहता ने जयंत करनाड से संपर्क साधा. तब तक जयंत कारनाड के पास जमीन का उत्तराधिकारी होने का कोई कागजात नहीं था, लेकिन हिमांशु दस्तावेज दर दस्तावेज तैयार करता गया. इन्ही फर्जी दस्तावेजों के सहारे उसने कोर्ट में जयंत को असली मालिक सिद्ध कर दिया, और इसके साथ ही सेना के उपर किराये का दावा ठोक दिया.
कोर्ट के फैसले के बाद जयंत करनाड को सेना ने किया 50 हजार रुपये का भुगतान
कोर्ट के आदेश के बाद सेना ने जयंत कारनाड को 1998 से 2008 तक किराये के रुप में 50 हजार 874 रुपये का भुगतान किया. बड़ी बात यह है कि ईडी की पूछताछ में जयंत के पास जमीन का उत्तराधिकारी होने का कोई दस्तावेज नहीं था.
अब शुरु हुआ असली खेल
ध्यान रहे कि कोर्ट के फैसले के बाद हिमांशु अब जमीन की सौदेबाजी में लग गया, और उसने जयंत को आगे कर वर्ष 2019 में उक्त जमीन को 14 खरीददारों के नाम 2.55 करोड़ में बेच दिया. इसमें से 1.29 करोड़ रुपये उसने कई खातों में हस्तांतरित कर दिया, प्राप्त जानकारी के अनुसार इस राशि में से हिमांशु कुमार मेहता के खाते में 1.20 करोड़, मंजूश्री पात्रा के खाते में ढाई लाख, श्रेष्ठ मेहता के खाते में ढाई लाख और पी. देव के खाते में चार लाख का भुगतान हुआ. अब ईडी इन खाते दारों की जांच में जुट गयी है, किसी भी इन खाते दारों को ईडी का बुलावा आ सकता है.
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