पटना(PATNA)-कैलाशपति मिश्र की 100वीं जयंती पर पटना पहुंचे भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक बार फिर से क्षेत्रीय पार्टियों को राष्ट्र के विकास में बाधक होने का राग अलापा है. उन्होंने कहा है कि क्षेत्रीय महत्वाकांओँ को सामने लाकर इस तरह की पार्टियों का निर्माण किया जाता है, लेकिन इसकी अंतिम परिणति परिवारवाद के रुप में सामने आती है. आज देश की सभी क्षेत्रीय पार्टियां किसी ना किसी परिवार के चंगुल में हैं, इनका होना देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है और हमें भारतीय राजनीति से इन पार्टियों के अस्तित्व को समाप्त करना होगा.
हालांकि जब जेपी नड्डा क्षेत्रीय दलों की भूमिका पर सवाल खड़ा कर रहे थें, तब उनके निशाने पर इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियां थी. वह राजद, सपा, जदयू, तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी सहित इंडिया गठबंधन की पार्टियों को विकास की सबसी बड़ी बाधा बता रहे थें.
एनडीए गठबंधन की पार्टियों के प्रति भी भाजपा का यही रवैया
लेकिन जानकारों का मानना है कि खुद एनडीए गठबंधन की पार्टियों के प्रति भी भाजपा और नड्डा का रवैया यही हैं. पीएम मोदी और अमित शाह के रुप में जब से भाजपा को नया खेवनहार मिला है. भाजपा की सोच अटल आडवाणी के दौर से पूरी तरह बदल चुकी है, जिन क्षेत्रीय दलों का हाथ पकड़ कर दो सीटों वाली भाजपा ने देश के अलग अलग हिस्सों में अपनी जमीन को तैयार किया, सत्ता में आते ही सबसे पहले उन्ही दलों को अपना ग्रास बनाया. इंडिया गठबंधन के अस्तित्व में आने के पहले तक एनडीए की कोई बैठक भी नहीं हो रही थी, अटल आडवाणी के दौर में जिस एनडीए का अपना संयोजक और एजेंडा होता था, पिछले नौ वर्षों तक उसकी एक बैठक भी नहीं हुई. इस नये दौर में एनडीए का मतलब केवल भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी रह गया.
एनडीए में सहमति और असहमति के विकल्प पर लग चुका है ताला
लेकिन जैसे ही इंडिया गठबंधन सामने आया, भाजपा के अन्दर एक बार फिर से सियासी पार्टनरों की खोज शुरु हो गयी, और मृत प्राय एनडीए को एक बार फिर से नये कलेवर में सामने लाने की कोशिश की गयी. लेकिन एनडीए की उस कथित मीटिंग में भी सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी बोलते रहें और दूसरे दलों के नेता सुनते रहें, एनडीए का यह नया अवतार अटल आडवाणी के उस स्वरुप से बिल्कुल अलग था, जहां हर सहयोगी दलों की बात सुनी जाती थी, उनका अपना एजेंडा और नेता होता था. और सबसे बड़ी बात सहमति और असहमति का विकल्प और उसके प्रति सहनशीलता होती थी.
नयी भाजपा की भाषा बोल रहे हैं जेपी नड्डा
सियासी जानकारों का मानना है कि जेपी नड्डा इसी नयी भाजपा की भाषा बोल रहे हैं. यह सिर्फ उनकी सोच नहीं है, बल्कि इसके पीछे अमित शाह और पीएम मोदी की रणनीति है. जिसका खामियाजा आज नहीं तो कल एनडीए घटक में शामिल दलों को भी उठाना होगा. वह दिन दूर नहीं जब शिवसेना, अकाली दल और खुद जदयू की तरह इनके अस्तित्व को समाप्त करने का षडयंत्र रचा जायेगा. कभी ये तमाम दल एनडीए का मजबूत घटक होते थें, लेकिन आज इन दलों जो हैसियत हैं, और ये राजनीति के जिस कगार पर खड़े हैं, उससे सुदेश महतो, जीतन राम मांझी, उपेन्द्र कुशवाहा और चिराग पासवान की पार्टियों को सबक सीखने की जरुरत है.
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