रांची(RANCHI)- जैसे जैसे 2024 का महासमर नजदीक आता जा रहा है, राजनीतिक दलों की बेचैनियां बढ़ती जा रही है, हर दल अपने-अपने तरीके से जीत के गुणा-जोड़ा में व्यस्त है. एक तरफ सीएम हेमंत ने सरना धर्म कोड और पेसा कानून का मुद्दा उछाल कर अपनी सामाजिक किलेबंदी को दुरुस्त करने का सियासी पासा फेंक दिया है, तो दूसरी ओर आजसू की सहयोगी पार्टी के मुखिया बाबूलाल संकल्प यात्रा के बहाने हाट-बाजारों की खाक छान रहे हैं, अपनी खोई राजनीतिक जमीन और पहचान को पुनर्स्थापित करने का जुगाड़ बिठा रहे हैं, तो वहीं इन सबसे अलग आजसू आज से तीन दिवसीय महाधिवेशन की शुरुआत करने जा रही है.
झारखंड के भविष्य का ब्लू प्रिंट तैयार करने का दावा
दावा किया जा रहा है कि तीन दिनों तक चलने वाले इस महाधिवेशन में झारखंड के करीबन 32 हजार गांवों के साथ ही देश-विदेश से करीबन एक लाख प्रतिनिधियों का महाजुटान होगा और इस दरम्यान झारखंड के जमीनी मुद्दों का समाधान के लिए गहन मंथन का दौर चलेगा. नवनिर्माण की रुप रेखा तैयार की जायेगी, इसमें विभिन्न आईआईटी, आईआईएम, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों के प्रोफेसरों की हिस्सेदारी रहेगी. इन विशेषज्ञों के विचारों को एकरुप कर आने वाले झारखंड के भविष्य का ब्लू प्रिंट तैयार किया जायेगा.
अहम होगा सामाजिक न्याय और राजनीतिक भागीदारी का सवाल
लेकिन चर्चा का मूल विषय सामाजिक न्याय और राजनीतिक भागीदारी का होगा. हालांकि झारखंड आंदोलन का औचित्य, झारखंडी युवाओं की चुनौतियां, स्थानीयता एवं नियोजन नीति, स्वशासन एवं महिला सशक्तिकरण, भूमि, कृषि एवं सिंचाई, खनन और उद्योग, पर्यावरण और पर्यटन, झारखंड की भाषा, संस्कृति और शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थितियों पर भी गहन चर्चा होगा.
क्या सामाजिक न्याय और राजनीतिक भागीदारी के सवाल पर आगे बढ़ने का जोखिम लेगी आजसू
लेकिन जैसा की मूल विषय से स्पष्ट है कि चर्चा का मूल बिन्दू सामाजिक न्याय और राजनीतिक भागीदारी का होगा. और यहीं से यह सवाल उठता है कि क्या सामाजिक न्याय और राजनीतिक भागीदारी के सवाल को उछाल कर आजसू मूलवासियों की राजनीतिक भागीदारी के सवाल पर कोई अहम निर्णय लेने का जोखिम उठायेगी?
आदिवासी दर्जे की मांग में फंस सकती है भाजपा
ध्यान रहे कि आजसू का मूल जनधार कुड़मी-महतो मतदाताओं के बीच रहा है, और इनकी मुख्य मांग आदिवासी दर्जे की रही है, जिसकी लड़ाई यह लम्बे समय से लड़ते रहे हैं, और यह लड़ाई सिर्फ झारखंड तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पड़ोसी राज्य बंगाल और ओड़िशा में भी यह मांग गुंज रही है, और इसका समाधान राज्य सरकार के स्तर से नहीं होना है, फैसला केन्द्र की सरकार को लेना है, जहां अभी उसकी ही सहयोगी पार्टी भाजपा की सरकार है, तब क्या यह माना जाय कि इस महाधिवेशन के इसकी अनुंगूज भी सुनने को मिलेगी? और यदि इस महाधिवेशन से इस संबंध में कोई प्रस्ताव पारित किया जाता है तो भाजपा भी इससे अछूता नहीं रहेगा.
क्या लोकसभा चुनाव में अपने हिस्से सीटों की संख्या बढ़ाने पर अड़ सकती है आजसू
या फिर यह सब सिर्फ राजनीतिक शिगुफेबाजी है. आजसू महज अपनी ताकत को उस स्थिति तक पहुंचाना चाहती है, जिससे कि 2024 के पहले वह भाजपा के साथ सौदेबाजी की हैसियत में हो. लोकसभा की चन्द और सीटें उसके हाथो में आ जाय और विधान सभा में उसकी संख्या करीबन एक दर्जन सीटों तक पहुंच जाये, और यदि यही होना है तो यह सामाजिक न्याय और राजनीतिक भागीदारी के सवाल को नेपथ्य में डालने के समान होगा. फिलहाल उसके लिए तीन दिनों का इंतजार करना होगा.
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