बिहार(BIHAR): बीमार लालू प्रसाद यादव अभी पटना में है. अब वह पहले की तरह तेज और चटकदार नहीं बोल पाते है. शरीर भी उनका कमजोर हो गया है, लेकिन तेज दिमाग के लालू प्रसाद राजनीति के माहिर खिलाड़ी रहे हैं. यह बात अलग है कि विपक्षी एकता के लिए नीतीश कुमार और उनके पुत्र तेजस्वी यादव, जो आगे बढ़े हैं, इसके पीछे कहीं ना कहीं लालू प्रसाद यादव का ही दिमाग है. लालू प्रसाद यादव जयप्रकाश आंदोलन की उपज है. उसके बाद उन्होंने बिहार में एमवाई समीकरण यानी मुस्लिम और यादव पर भरोसा किया. बिहार के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय रेल मंत्री तक पहुंचे. लेकिन परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है. एक समय के बाद शरीर की काया कमजोर होने लगाती है. फिर किसी की भी सक्रियता थम जाती है. लालू प्रसाद यादव के साथ फिलहाल यही हो रहा है. लालू प्रसाद यादव ने अपने ठेठ भोजपुरी भाषा में बोलकर बिहार की राजनीति पर एकछत्र राज किया.
भूरा बाल साफ़ करने का नारा अभी लोग भूले नहीं होंगे
कभी तेल पिलावन रैली तो कभी सतुआ बांध रैली तो कभी किसी अन्य रैली के बहाने लोगों को हमेशा एकजुट करते रहे. एमवाई समीकरण पर तो काम किया ही लेकिन दलितों को बूथ तक पहुंचाने का लाभ भी लालू प्रसाद ने खूब उठाया. नतीजा हुआ कि चुनाव जीते रहे. अपने ठेठ अंदाज के कारण किसी को भी वह अपनी ओर आकर्षित करने के माहिर खिलाड़ी रहे है. उनकी बोली ,उनका स्टाइल को भी लोगों ने खूब पसंद किया. लालू प्रसाद ने ही भूरा बाल साफ करने का नारा दिया यानी भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ को साफ़ करने की बात की. यह बात भी सही है कि लालू प्रसाद जिस वक्त राजनीतिक उफान पर थे, उस समय इन जातियों की राजनीतिक कद काठी को कम कर दिया था. अगड़ी जातियों की आकांक्षाओं को धूल धुसरित कर दिया था. चारा घोटाले में जब उनकी जेल यात्रा शुरू हुई तो अपना उत्तराधिकारी अघोषित रूप से उन्होंने अपने छोटे बेटे तेजस्वी को सौंप दिया. 2015 के विधानसभा चुनाव में तो वह मंत्र देते रहे लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव अकेले पड़ गए. हालांकि राजद का परफॉर्मेंस बहुत अच्छा रहा.
तेजस्वी यादव की सोच पिता से थोड़ी अलग दिखती है
यह अलग बात रही कि भाजपा और नीतीश कुमार ने मिलकर सरकार बना ली. लेकिन तेजस्वी के नेतृत्व में राजद ने सरकार बनाने के आंकड़े को छूने की कोशिश जरूर की. हालांकि लोग बताते हैं कि तेजस्वी यादव सिर्फ एमवाई समीकरण के बजाय सभी जातियों को साथ लेकर राजनीति करना चाहते है. उनकी सोच लालू प्रसाद से थोड़ी अलग दिखती है. देखना होगा आगे तेजस्वी कौन सी राह पकड़ते है. फिलहाल तो नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार में महागठबंधन की सरकार चला रहे हैं और वह उप मुख्यमंत्री है. बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार चाहे जो भी कहते रहे, लेकिन एक घड़ा उन्हें पीएम मैटेरियल बताता रहा. सवाल यह उठता है कि लालू प्रसाद क्या अभी भी बिहार के राजनीति के लिए प्रासंगिक हैं अथवा उनके मंत्रों से शिक्षा लेकर तेजस्वी यादव कोई नई राह पकड़ेंगे, इसका परीक्षण भी 2024 में ही हो जाएगा, जब देश में लोकसभा के चुनाव होंगे.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो