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World Environment Day: अभी भी चेत जाएं झारखंड में बहुत कुछ बाकी है, फिर पछताएंगे....

World Environment Day: अभी भी चेत जाएं झारखंड में बहुत कुछ बाकी है, फिर पछताएंगे....

रांची(RANCHI): ऊंचा, नीचा पहाड़ पर्वत ...नदी नाला ! जल, जंगल और जमीन की धरती झारखंड में लोगों ने  हमेशा ही पर्यावरण को महत्व दिया है. यहां चारों ओर हरियाली छाई रहती थी. जब भी कभी झारखंड का नाम लिया जाता है तो लोगों के जहन में जंगल, जलप्रताप और मीलों तक फैले वनक्षेत्र  की ही याद आती है. झारखंड में कई सारी नदियां, झरने, पहाड़ और ऐसे की सारे प्राकृतिक जीवन हैं जो झारखंड को खूबसूरत बनाते हैं. झारखंड का नाम सुनते ही सुहाने मौसम का ख्याल आता है. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में झारखंड की हरियाली धीरे-धीरे खत्म होते जा रही है. साथ ही यहां के मौसम का खुशनुमा एहसास भी खत्म हो रहा है.  पेड़ काटे जा रहे हैं, नदियां सूख रहीं हैं. लेकिन अभी भी समय है जब हम इसे बचा सकते हैं. आगे जानिये क्यों हम ऐसा कह रहे हैं. 

राजधानी रांची का हाल भी बदहाल

बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए रांची में चारों ओर तालाब दिख जाते थे.  वहीं पेड़ों की संख्या भी कम न थी आम, अमरुद, लीची और कटहल के बागीचे हुआ करते थे. 40 से 50 साल पहले तक गर्मियों की रात लोगों को चादर ओढ़कर सोना पड़ता था. यही सबब रहा कि अविभाजित बिहार में गर्मियों में पटना से राजधानी रांची शिफ्ट हो जाया करती थी. लेकिन विकास की अंधी दौड़ में न तालाब रहे, न ही पेड़-पौधे. जिसका असर तापमान पर पड़ा दूसरी ओर पर्यावरण संतुलन गड़बड़ाया.

अभी भी यूपी, बंगाल और बिहार से अधिक वन झारखंड में

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2021 के रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड का फॉरेस्ट कवर 29.76 प्रतिशत है. लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के कारण सबसे अधिक वनों की कटाई हुई है. यही कारण है कि झारखंड की हरियाली और ठंडक गुम होते जा रही है. यहां कुल 11 नदियां हैं लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि नदियां भी सूख रही हैं. यहाँ पहले सैकड़ों बागान हुआ करते थे, जो अब गायब हो रहे हैं. आलम ये है कि जो झारखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सुनहरे मौसम के लिए जाना जाता था आज उस झारखंड की फिज़ाएं बदली-बदली लगने लगी है.  अगर ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नहीं जब जल और जंगल की ये धरती बंजर और रेगिस्तान ना बन जाएं. क्योंकि पेड़ काटे जा रहे हैं, पहाड़ों की कटाई हो रही है, बालू उठाव के कारण नदियां सूखने के कगार पर हैं.   

कैसे बचाएंगे पर्यावरण को 

झारखंड में एक आंकड़े के मुताबिक 109.73 वर्ग किलोमीटर मीटर वन क्षेत्र की बढ़ोतरी हुई है लेकिन 10108 वर्ग किलोमीटर भूमि पेड़ विहीन हो गई है.  पेड़ों की लगातार कटाई हो रही है. ऐसे में वन भूमि क्षेत्रों में घने जंगल कम होते जा रहे हैं और प्रदूषण बढ़ रहा है

प्रदूषण को लेकर देश ही नहीं, विदेश में भी चिंताएं हैं. नियम, कायदे कानून तो बना दिए जाते हैं, सरकार कायदा कानून बनाकर अपने को निश्चित कर लेती है लेकिन वह कानून जमीन पर किस हद तक उतरा है इसकी कभी कोई जांच नहीं होती. प्लास्टिक पर पाबंदी इसका उदाहरण के रूप में गिना जा सकता है. पहले भी प्लास्टिक का प्रचलन था और आज भी है.

आज 5 जून को अमूमन बारिश होती थी .लोग पेड़ पौधे लगाते थे लेकिन आज जिस हिसाब से गर्मी है, ऐसे में पेड़ पौधे अगर लगेंगे भी तो कितने बचेंगे, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है. कम से कम हम अपने लिए नहीं भी तो आने वाली पीढ़ी के लिए तो कुछ सोचे....

Published at:05 Jun 2025 06:05 AM (IST)
Tags:Jharkhand news World environment day World environment day 2025Environment day
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