टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- सियासत के पलटू राम, पलटू चाचा और न जाने कितने नाम-उपनाम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर पैबंद है. सियासी गलियारों में नीतीश क्या सोचते हैं औऱ कब क्या कर देंगे ये किसी को पता नहीं रहता है. कभी बीजेपी और कभी राजद के साथ झुलते रहते हैं. उनकी इधर-उधर और करवटों से सियासत तो हलकान होती ही है. इसके साथ ही जिसको झटका देते हैं, इसके करंट से वो दल भी कुछ दिन तक सकते में आ जाता है. अब चर्चा तेज है कि नीतीश आरजेडी के साथ अपना गठबंधन तोड़, एकबार फिर भाजपा के साथ गले मिलाने वाले हैं. एक बात ये भी गौर फरमाने वाली रही है कि, पाला बदलने वाले नीतिश चाहे राजद में जाए या फिर बीजेपी में.उनकी मुख्यमत्री की कुर्सी बरकरार रहती है.
आगे बिहार की राजनीति में क्या होता है, ये तो देखने वाली बात है. अगर नीतीश बाबू फिर पलटी मारते हैं, तो फिर असर राजद के साथ इंडिया गठबंधन पर भी होगा. क्योंकि, बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलकर नीतीश ने ही देश भर में मशाल जलायी थी और सभी दलों को एकजुट कर दिल्ली की सत्ता से भाजपा को बेदखल करने में जुटे थे. अगर देखा जाए तो पलटी का इतिहास कोई नया नहीं है , इससे पहले भी उनकी पलटियां सियासत में तूफान मचाते रही है. इसमे कोई नई बात नही है. लेकिन, सवाल यहां है कि लोकसभा चुनाव की तारीख के एलान होने में ज्यादा वक्त नहीं बचा हुआ है. ऐसे में उनकी पलटी से लाजमी है कि एक बड़ा फर्क बिहार की राजनीति में होगा .
खैर आगे क्या होगा ये तो वक्त की बात है. लेकिन, अगर नीतीश कुमार की पलटी के पन्ने पलटे तो आपको बहुत कुछ आभास हो जाएगा, कि आखिर क्यों इन्हें पलटू चाचा और पलटू राम बोला जाता है. चलिए जान लेते हैं. अगर बिहार की राजनीति को देखे तो पिछले तीन दशक में भाजपा,राजद और जेडीयू के ईर्द गिर्द ही सियासत घूमती रही. इसमे सबसे ज्यादा वक्त तक नीतीश कुमार ही बिहार की बागडोर संभाले रखा .
लालू को नीतीश ने की थी मदद
ध्यान रहे कि नीतीश कुमार की मदद से लालू प्रसाद ने राम सुंदर दास को हटाकर 1990 में मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि, बाद में दोनों के रिश्तों में तल्खी आई थी . इस खटास के चलते 1994 में उन्होंने तत्कालिन जनत दल से अलग हो गये थे और जार्ज फर्नाडीस के साथ समता पार्टी का गठन किया था. 1995 चुनाव में वामदलों के साथ चुनाव लड़ा. लेकिन, उतनी सफलता नहीं मिली. इसके बाद सीपीआई से अलग हटकर एनडीए से हाथ मिला लिया था. भाजपा के साथ उनका रिश्ता लंबा चला और 2010 विधानसभा चुनाव तक चलता रहा. इस चुनाव में एनडीए को बड़ी जीत मिली थी. बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन नीतीश 2012 में नरेन्द्र मोदी का कद बढ़ने से असहज महसूस होने लगे थे. अंदर ही अंदर इतने बेचैन हो उठे की गठबंधन तोड़ 2014 लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का एलान कर दिया. जिसमे उनकी पार्टी को सिर्फ 2 सीट ही मिली. जिसके बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री पद भी छोड़ दिया . बाद में लालू प्रसाद के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सीएम बनें. इसके बाद हुए चुनाव में बीजेपी को झटका लगा, क्योंकि महागधबंधन को बड़ी सफलता मिली.
2017 में महागधबंधन से हुए अलग
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार हमेशा मुख्यमंत्री बनें रहे. उनकी पलटी 2017में देखने को मिली. जब महागठबंधन में ही तमाम तरह की खामियां दिखने लगी . डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का IRCTC घोटाले में नाम आया, इसके बाद नीतीश बाबू ने 'अंतरआत्मा' की आवाज सुनते हुए महागठबंधन खत्म कर दिया और सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के तुरंत बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए और गठबंधन करके सरकार बना ली.
2022 में भाजपा से फिर हट गये
लगातार लालू परिवार के खिलाफ बोलने वाले नीतीश कुमार ने अचानाक फिर पलटी मार दी और भाजपा से अलग होकर आरजेडी,कांग्रेस और वाम दल के साथ मिल गये. खुद सीएम बने रहें और तेजस्वी को डिप्टी सीएम बना दिया. अब चर्चा फिर एनडीए में लौटने की हो रही है .नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर को देखने से तो साफ मालूम होता है कि सुशासन बाबू सत्ता की चाबी हाथ में रखते हुए, समय-समय पर मौका देखकर पलटी मारते रहे हैं. अगर इस बार भी करवटे बदलते हैं, तो कोई नई बात नहीं होगी. इसमे सबसे बड़ा नुकसान तो इंडिया गठबंधन को होगा, जिसकी अगुवाई कर मशाल नीतीश बाबू ने ही जलाई थी.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह