टीएनपी डेस्क: आज कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि है. दीपावली से एक दिन पहले यानी कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर नरक चतुर्दशी मनाया जाता है. नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है. नरक चतुर्दशी आज बुधवार को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट शुरू होगा और अगले दिन 31 अक्टूबर गुरुवार की दोपहर 3 बजकर 52 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा करने का विधान है. साथ ही नरक चतुर्दशी की रात यम का दीपक जलाया जाता है. मान्यता है कि नरक चतुर्दशी की रात यम का दीपक जलाने से अकाल मृत्यु का भय नहीं होता. लेकिन क्या आप जानते हैं ठीक दिवाली से एक दिन पहले ही क्यों नरक चतुर्दशी मनाई जाती है और यमराज की ही क्यों पूजा की जाती है.
नरक चतुर्दशी की कथा
पुराणों के अनुसार, एक बार नरकासुर नामक एक राक्षस ने तीनों लोकों में अपना आतंक मचा रखा था. मनुष्यों से लेकर ऋषि-मुनि और देवता भी इस राक्षस के अत्याचारों से परेशान थे. ऐसे में एक दिन नरकासुर ने 16,100 स्त्रियों का हरण कर लिया. जिसके बाद नरकासुर से मुक्ति पाने के लिए इंद्रदेव भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और उनसे राक्षस के तांडव को खत्म करने के लिए मदद मांगी. ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण इंद्रदेव की बात सुन असुर का वध करने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ निकल गए.
सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण की सारथी बनी और उनकी सहायता से ही श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर दिया. असुर का वध करने के बाद श्रीकृष्ण ने सभी कन्याओं को आजाद कर दिया. वहीं, जिस दिन भगवान कृष्ण ने असुर का वध किया था उस दिन कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी. इसलिए तब से हर सालकार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर नरक चतुर्दशी मनाया जाता है. जिसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है.
नरक चतुर्दशी पर क्यों निकाला जाता है यम का दीपक
पुराणों के अनुसार, एक दिन मृत्यु के देवता यमराज अपने यमदूत से एक सवाल किया कि क्या कभी किसी के प्राण हरते वक्त तुम्हें दुख हुआ है? ऐसे में यमदूत ने जवाब देते हुए कहा कि एक बार हुआ है. आगे यमदूत ने बताया कि, जब राजा हेमराज के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ था तभी ऋषियों ने भविष्यवाणी की थी कि राजा का पुत्र अल्पायु है. इसकी मृत्यु ठीक इसके शादी के चर्र दिन बाद ही हो जाएगी. ऐसे में ऋषियों की बात सुन राजा हेमराज ने अपने पुत्र को अपने मित्र राजा हंस के यहां भेज दिया. राजा हेमराज के मित्र ने उनके पुत्र की अच्छे से देखभाल की और उनका लालन-पालन किया. लेकिन जब राजा हेमराज का पुत्र बड़ा हो गया तो वह एक दिन एक राजकुमारी से मिला. जिसके बाद दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया. भविष्यवाणी के अनुसार, विवाह करते ही चार दिन बाद राजकुमार की मृत्यु होनी थी. ऐसे में चार दिन बाद हमने राजकुमार के प्राण प्राण हर तो लिए लेकिन उसके बाद उसकी पत्नी, पिता और माता का विलाप देख हमें बहुत दुख हुआ था.
यमदूत ने अपनी कहानी सुनाने के बाद यमराज से पूछा कि, क्या ऐसा कोई तरीका नहीं है कि किसी की अकाल मृत्यु को टाला जा सके? ऐसे में यमदूत के सवाल का जवाब देते हुए यमराज ने कहा कि, जो भी मनुष्य कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात को दक्षिण दिशा में मेरे या मेरे यमदूतों का ध्यान करते हुए दीपक जलाएगा उसे या उसके परिवार को कभी भी अकाल मृत्यु का डर नहीं होगा. तब से ही हर साल कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यम का दीपक जलाने का विधान है.