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गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान, जानें इसके पीछे की अनसुनी कहानी

गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान, जानें इसके पीछे की अनसुनी कहानी

टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : अभी पितृपक्ष चल रहा है. पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने का ये पर्व 2 अक्टूबर तक चलेगा. अगर पिंडदान की बात की जाए तो देशभर में कुल 55 जगहों को बहुत महत्‍वपूर्ण माना गया है, लेकिन बिहार के ‘गयाजी’ का नाम पहले आता है. लोग अपने पितरों के तर्पण के लिए गया को चुनते थे. लेकिन जानने वाली बात है कि लोग ऐसा क्यों करते है? तो आइए जानते हैं गयाजी में पिंड दान करने के पीछे की कहानी.

जानें गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान

पुराणों की मानें तो लिखा है कि अगर गया जाकर पिंडदान किया जाए, तो पितरों की 21 पीढ़ियां मुक्‍त हो जाती हैं. कहा जाता है कि गयाजी में सबसे पहले भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने यहीं आकर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था. धार्मिक मान्यता है कि भगवान हरि यहां पितृ देवता के रूप में निवास करते हैं. जिस कारण इस जगह को पितृ तीर्थ भी कहा जाता है. गया के महत्व के कारण हर साल लाखों लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने यहां आते हैं.

गयाजी में पिंडदान से 108 कुलों को मिलता है मोक्ष

देश-विदेश से तीर्थयात्री पितृ पक्ष के दौरान गयाजी में पिंडदान और तर्पण करने आते हैं.  वहां की ऐसी मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से 108 कुलों और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इससे उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है.

जानें गया धाम की कहानी

गया धाम की कथा गयासुर नामक राक्षस से जुड़ा है. जिसने भगवान विष्णु को तपस्या करके प्रसन्न किया था. तपस्या पूर्ण होने पर उसने भगवान से वरदान मांगा कि "मेरा शरीर देवताओं से भी अधिक पवित्र हो जाए. जो कोई भी मेरे शरीर को देखे या स्पर्श करे, वह पाप मुक्त हो जाए". भगवान विष्णु ने गयासुर को यह वरदान दिया. इसके बाद स्थिति बदल गई. लोग जमकर पाप करने लगे और बदले में गयासुर के दर्शन करते. ऐसे में यहां पाप बढ़ता ही गया.

जब देवता इससे परेशान हो गए तो वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे. भगवान विष्णु गयासुर के पास पहुंचे और कहा कि मुझे यज्ञ करने के लिए धरती पर सबसे पवित्र स्थान चाहिए. गयासुर ने कहा कि प्रभु मुझसे अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है. मैं धरती पर लेट जाऊंगा, आप यज्ञ कीजिए. गयासुर के लेटने पर उसका शरीर 5 कोस तक फैल गया. जब यज्ञ प्रारंभ किया गया तो यज्ञ के प्रभाव से गयासुर का शरीर कांपने लगा. तब भगवान विष्णु ने वहां एक शिला रख दी. जिसका नाम प्रेतशिला वेदी रखा गया. भगवान विष्णु ने गयासुर के इस बलिदान से प्रभावित होकर यह वरदान दिया कि जो भी यहां आकर अपने पितरों के लिए पिंडदान करेगा, उसके 21 पीढ़ियों के पूर्वजों को मुक्ति मिल जाएगी.

 

 

डिस्क्लेमर: ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है. यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए उत्तरदायी नहीं है. किसी भी जानकारी के लिए इस क्षेत्र के विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

 

Published at:24 Sep 2024 05:19 PM (IST)
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