टीएनपी डेस्क (TNP DESK): झारखंड का गौरव जपला सीमेंट फैक्ट्री वक्त के साथ खाख में मिल गई, फैक्ट्री की जगह सिर्फ जंगल और झाड़ बच गए है. जब से फैक्ट्री बंद हुई कई चुनाव हुए, लेकिन बदहाली दूर नहीं हुई. वायदे तो बड़े बड़े किये गए लेकिन परिणाम जीरो ही निकला. 2014 में खुद प्रधनमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी और केंद्रीय नेता राजनाथ सिंह ने फैक्ट्री को शुरू कराने की घोषणा की थी. लेकिन दो बार केंद्र की सत्ता में काबिज होने बाद भी किसी ने इसकी सुध नहीं ली. अब तो जनता भी कहने लगी "वादा तो वादा होता है"अब फिर चुनाव आया गया तो फिर नेता फैक्ट्री की जमीन पर उद्योग लगाने की बात कहते दिख सकते है.
2014 में जपाल सीमेंट फैक्ट्री चालू करने का किया था वादा
बात 2014 की है जब देश में लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर चली रही थी. बड़ी-बड़ी घोषणा की गई, घोषणाओ में सबसे बड़ा वादा जपला सीमेंट फैक्ट्री भी शामिल था. जब चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी डाल्टनगंज में सभा कर रहे थे. तब उन्होंने जपला सीमेंट फैक्ट्री को चालू कराने की हुंकार भरी. फिर हुसैनाबाद में राजनाथ सिंह ने वादा किया कि राज्य और केंद्र की सत्ता में भाजपा आई तो सीमेंट फैक्ट्री चालू हो जाएगी. इससे यहां के लोगों की बेरोजगारी दूर होगी, फिर क्या सरकार तो एनडीए की ही बनी राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास और देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ले लिया. लेकिन नई सरकार अपने पुराने वादे भूल गई. अब बारी थी 2019 के लोकसभा चुनाव की, एनडीए के राजनाथ सिंह ने वही पुराने वादे दोहराए, लेकिन हालात ढाक के तीन पात ही रहे और तब तक फैक्ट्री नीलाम हो गई. यहां मोदी की गारंटी फेल साबित हुई.अब फिर चुनाव का माहौल है.नेता पहुंच रहे है फिर और एक बार फैक्ट्री की खाली पड़ी जमीन पर हरियाली के सपने दिखाएं जाएंगे
चुनावी मुद्दा बनती है जपला सीमेंट फैक्ट्री
दरअसल जपला सीमेंट फैक्ट्री हर चुनाव में मुद्दा बनती थी. जब भी चुनाव का समय आता तो नेता अपने वादों का पिटारा लेकर पहुंच जाते. इस वादे में सबसे ज्यादा चर्चा सीमेंट फैक्ट्री की होती थी. लेकिन आखिर में साल 2020 में जपला सीमेंट फैक्ट्री का मुद्दा ही खत्म हो गया. कोर्ट के आदेश के बाद इसे नीलाम कर दिया गया. पटना हाई कोर्ट ने जपला सीमेंट फैक्ट्री को 13 करोड़ 56 लाख रुपये में नीलाम करने का आदेश दिया. जिससे मजदूरों का बकाया दिया जा सके. जपला सीमेंट 28 मई 1992 बंद हुई थी. इसके बाद से ही यह चुनावी मुद्दा बन कर रह गई. किसी ने भी शुरू कराने के दिशा में कोई ठोस पहल नहीं किया. साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड एक नया राज्य बन गया. फिर उम्मीद लोगों में जागी की अब अलग राज्य मिल गया तो दिल बदल जाएंगे. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा से लेकर मधु कोड़ा ने फैक्ट्री का निरीक्षण किया. फिर शिबू सोरेन की सरकार आई उसके बाद से इसकी चर्चा भी कहीं नहीं हुई.