Tnp desk:- लोकसभा चुनाव के करीब आने से अब सीट शेयरिंग और उम्मीदवारों की चर्चाएं तेज होने लगी है. हर जगह इसी को लेकर तरह-तरह की बाते, मनमुटाव और बगावत तक देखने को मिल रही है. बिहार में इंडिया गठबंधन में अभी सीट बंटवारों को लेकर कोहराम मचा हुआ है. ठीक इसी तरह दो धड़ों में बंट चुकी लोक जनशक्ति पार्टी, जो की एनडीए की सहयोगी है. आपस में हाजीपुर सीट को लेकर लड़ रही है. चाचा पशुपति पारस औऱ भतीजे चिराग पासवान दोनों हाजीपुर सीट पर दावा ठोंक रहे हैं. हालांकि, किसके खाते में सीट जायेगी, अभी तक साफ नहीं है. क्योंकि अभी तक एनडीए में सीट बंटवारे पर कोई सहमति नहीं बनीं है. लेकिन, हाजीपुर सीट को लेकर चाचा-भतीजे की जुबानी जंग देखने को मिलती रही है.
पशुपति पारस ने ठोका दावा
हाजीपुर सीट को लेकर घमासान चाचा-भतीजे में काफी समय हो रहा है. एकबार फिर इसकी चर्चा औऱ दावे किए जा रहे हैं. राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया पशुपति पारस ने फिर इस पर अपनी दावेदारी ठोकी है. उनका ताल ठोक के कहना था कि 'हाजीपुर सीट मेरी है' इसे उनसे कोई छीन नहीं सकता है. इधर चिराग पासवान भी इस सीट पर दावा कर रहे हैं. सोमवार को ही पटना आए चिराग से चाचा पशुपति पारस के हाजीपुर सीट के दावा जताने पर मुस्कुरा कर जवाब दिया. उन्होंने कहा कि हाजीपुर सीट किसे मिलेगी यह केन्द्रीय नेतृत्व तय करेगा.
रिकॉर्ड 8 बार दिवंगत रामविलास पासवान बनें हैं सांसद
अगर देखा जाए तो अभी तक सीट बंटवारे की औपचारिक बातचीत भी शुरू नहीं हुई है. लेकिन बिहार में एनडीए में शामिल दल अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुटे हैं. मालूम हो कि चिराग पासवान के पिता दिवंगत रामविलास पासवान हाजीपुर सीट से सबसे ज्यादा रिकॉर्ड आठ बार सांस चुने गये हैं. उनके निधन के बाद ही इस सीट को लेकर दो खेमे में बंटी लोजपा अपनी-अपनी दावेदारी जता रही है. 1977 से अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हाजीपुर लोकसभा सीट पर रामविलास पासवान का दबदबा रहा है. वे यहां दस बार चुनाव लड़े थे, जिसमे 8 बार जीत दर्ज की.
आपातकाल से पहले कांग्रेस का रहा दबदबा
हाजीपुर लोकसभा सीट पर आपातकाल से पहले कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा था . 1952 से 1971 तक हुए 4 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपना परचम फहराया और 4 बार चुनाव में जीत दर्ज की थी. 1952, 1957 और 1962 में कांग्रेस के टिकट पर राजेश्वर पटेल लगातार तीन बार कांग्रेस से सांसद चुने गए थे. आपातकाल के बाद कांग्रेस सिर्फ यहां एक बार ही जीत दर्ज कर सकी थी. 1984 में कांग्रेस के राम रतन राम ने रामविलास पासवान को हराया था.