रांची(RANCHI): स्वतंत्र भारत की पहली बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन के मुख्य शिल्पकार, महान भारतीय खगोल वैज्ञानिक और भौतिकीविद् मेघनाद साहा का आज जन्म दिन है. उनके दूसरे कई योगदानों में से एक महत्वपूर्ण योगदान दामोदर घाटी परियोजना भी है, बहुत हद यह उनका ब्रेन चाइल्ड माना जा सकता है. ध्यान रहे कि तब पूरा बंगाल हर साल बाढ़ की चपेट में आता था, और हुगली की इस सहायक नदी को बंगाल का शोक कहा जाता था.
हर साल हजारों की जान जाती थी, लाखों लोग घर बार छोड़ने पर विवश होते थें, लेकिन 1943 का बाढ़ बंगाल के इतिहास में प्रलयकारी था. पूरा बंगाल बाढ़ की इस विभीषिका से त्राहिमाम नजर आ रहा था, जिसके बाद पहली बार बंगाल को इस विभीषिका से मुक्ति दिलवाने का सपना देखा गया. और वर्ष 1948 में बाढ़ प्रबंधन की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए अमेरिका के टेनेसी वैली अथॉरिटी की तर्ज पर झारखंड में दामोदर घाटी परियोजना का सपना देखा गया.
आठ के बदले चार बांध से पूरा किया दामोदर घाटी परियोजना का काम
शुरुआती दौर में इसका प्रारुप तैयार करते हुए टेनेसी वैली अथॉरिटी के एक वरिष्ठ अभियंता डब्ल्यूएल वूर्डुइन दामोदर नदी पर कुल आठ बांध का प्रस्ताव दिया था, लेकिन बाद में मेघनाद साहा ने महज चार बांध के सहारे इस योजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा. इसमें पहला बांध तिलैया में बराकर नदी पर किया गया, इस पर 2000 किलोवाट के दो बिजलीघर स्थापित किए गए हैं. जिससे कुल चालीस हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचाई होती है. दूसरा बांध कोनार नदी पर है, इसकी कुल क्षमता 10 मेगावाट बिजली उत्पादन की है. इसी बांध से बोकारो स्टील प्लांट और बोकारो थर्मल पावर को पनबिजली और पानी मुहैया होता है, तीसरा बांध बराकर नदी पर स्थित मैथन बांध है. इसकी कुल बिजली उत्पादन क्षमता 60 मेगावाट की है और चौथा बांध पंचेत नदी पर स्थित है. 28 लाख हेक्टेयर को सिंचाई सुविधा प्रदान करती, इसकी कुल बिजली उत्पादन क्षमता 40 मेगावाट की है.
दामोदर घाटी परियोजना का कमांड क्षेत्र
जहां तक दामोदर घाटी के कमान क्षेत्र की बात है तो इसके तहत हजारीबाग, कोडरमा, चतरा, रामगढ़, पलामू, रांची, लोहरदगा, गिरिडीह, और दुमका का एक बड़ा एरिया आता है, जबकि पश्चिम बंगाल के छह जिले पूर्व बर्धमान, पश्चिम बर्धमान, हुगली, हावड़ा , बांकुरा और पुरुलिया भी इसके कमांड क्षेत्र का हिस्सा है.
बंगाल के एक बेहद वंचित परिवार में हुआ था जन्म
यहां बता दें कि भारत के इस प्रथम बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना का नींव रखने वाला मेघनाथ साहा का 6 अक्टूबर 1893 को शाओराटोली, ढाका (वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था. बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना के साथ ही साहा का भारतीय खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भी अहम योगदान है. साहा ने खगोल के क्षेत्र में देश विदेश में कई शोधों का प्रकाशन किया. जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई. आज जिस रुप में हम भारतीय कैलेंडर को देख रहे हैं, उसके निर्माण में भी साहा की अहम भूमिका है, उन्होंने कई प्रचलित पंचागों में सुधार किया. विभिन्न भारतीय पंचागों का विरोधाभास और विभिन्नताओं को समाप्त कर उसमें एकरुपता लाने का प्रयास किया.
सात-सात नोबेल पुरस्कार के लिए किया गया नोमिनेट
ध्यान रहे कि मेधनाथ साहा को सात-सात बार नोबेल पुरस्कार के लिए नोमिनेट किया गया था, बेहद ही गरीब परिवार और सामाजिक रुप से अभिवचिंत वर्ग से आने वाले साहा का 16 फरवरी 1956 को दिल का दौरा पड़ने के बाद देहांत हो गया. वह उन तारों की ओर निकल पड़े जिसके रहस्यों को सुलझाने में उन्होंने अपनी पूरी झोंक दी.