दुमका(DUMKA):लोकसभा चुनाव 2024 की रणभेरी आज बज जाएगी. तमाम राजनीतिक दल चुनावी समर में कूदने के लिए अपनी तैयारी पूरी कर चुकी है. एक तरफ बीजेपी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जीत की हैट्रिक लगाकर तीसरी बार दिल्ली की गद्दी पर आसीन होने के लिए रणनीति बना रही है, तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए ताबड़तोड़ मेहनत कर रही है.झारखंड का संथाल परगना प्रमंडल पर बीजेपी और इंडिया गठबंधन दोनों की नजर है. झामुमो का गढ़ कहे जाने वाले संथाल परगना में बीजेपी लोकसभा के तीनों सीट पर जीत का परचम लहराने को बेताब दिख रही है, तो झामुमो राजमहल के साथ साथ दुमका सीट जीत कर खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस पाना चाहती है.इस सब के बीच सवाल उठता है कि क्या सचमुच संथाल परगना प्रमंडल झामुमो का गढ़ है या फिर महज यह किंवदंती है?
बीजेपी ने सुनील सोरेन पर भरोसा जताते हुए उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है
इस सवाल का जबाब तलाशने के लिए हम आपको पहले बताते है दुमका लोकसभा सीट का विभिन्न वर्षो में हुए लोक सभा चुनाव परिणाम को. वर्ष 1980 में पहली बार दुमका लोकसभा सीट से झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन चुनाव जीतकर सांसद बने थे. वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में शिबू सोरेन अपनी सीट नहीं बचा पाए. वर्ष 1980 के बाद शिबू सोरेन 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 के चुनाव में जीतकर संसद भवन पहुंचे थे.1998 में बीजेपी ने इस सीट पर सेंधमारी की और बाबूलाल मरांडी शिबू सोरेन को पराजित कर सांसद बने. जीत हार का अंतर 12556 रहा. वर्ष 1999 के चुनाव में भी बीजेपी के बाबूलाल मरांडी इस सीट से विजेता घोषित किए गए. वर्ष 2019 में एक बार फिर झामुमो को पराजय का सामना करना पड़ा और बीजेपी प्रत्याशी सुनील सोरेन ने दिसोम गुरु शिबू सोरेन को 47590 मतों से पराजित कर सांसद बने. एक बार फिर बीजेपी ने सुनील सोरेन पर भरोसा जताते हुए उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है, जबकि इंडिया गठबंधन की तरफ से अभी तक प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं हुई है. 2014 के चुनाव में मोदी लहर का बीजेपी को भरपूर फायदा मिला विधानसभा की बात करें तो दुमका जिला में कुल 4 विधानसभा क्षेत्र हैं. जिसमें दुमका, जामा, और शिकारीपाड़ा सीट पर झामुमो का कब्जा है, जबकि जरमुंडी सीट से कांग्रेस के बदले पत्रलेख विधायक चुने गए हैं. वर्तमान में एक भी सीट पर बीजेपी के विधायक नहीं है. इन आंकड़ों के बावजूद कभी बीजेपी संथाल परगाना प्रमंडल की सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी. प्रमंडल के 6 जिलों में कुल 18 विधानसभा सीट है. इसमें 7 सीट अनुसूचित जनजाति और एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. राज्य गठन के बाद 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में संथाल परगना की 18 सीटों में से 7 सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था, जबकि झामुमो सिर्फ 5 सीटों पर थी.उस वक्त दो सीट कांग्रेस के खाते में, दो निर्दलीय और एक-एक सीट पर राजदऔर जदयू ने जीत दर्ज की. 2009 के चुनाव में परिणाम कुछ अलग नजर आया। इस चुनाव में बीजेपी दो सीट पर सिमट गई वहीं झामुमो 10 सीटों पर विजयी होकर संथाल परगना की सबसे बड़ी पार्टी बनी. इसके अलावा दो सीट जेवीएम, 2 सीट राजद, एक सीट कांग्रेस और एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई. 2014 के चुनाव में मोदी लहर का बीजेपी को भरपूर फायदा मिला. इस चुनाव में 8 सीट (जिसमें जेवीएम के रणधीर सिंह को मिलाकर) जीत कर बीजेपी संथाल परगाना प्रमंडल में दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को संथाल में एक बार फिर बड़ा झटका लगा
इस चुनाव में झामुमो चार सीटों के नुकसान के साथ 6 सीटों पर सिमट गई. वहीं कांग्रेस तीन और जेवीएम को एक सीट से संतोष करना पड़ा. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को संथाल में एक बार फिर बड़ा झटका लगा. बीजेपी चार सीटों पर सिमट गई, जबकि झामुमो ने वापसी करते हुए 9 सीटों पर कब्जा जमाया. प्रदीप यादव को मिलाकर कांग्रेस ने भी संथाल परगना में बेहतर प्रदर्शन किया और 5 सीट अपनी झोली में डालने में सफल रही. इसके बावजूद संथाल परगना प्रमंडल के कुछ विधानसभा सीट पर आज भी बीजेपी जीत के लिए तरस रही है. जिसे संथाल परगाना प्रमंडल को झामुमो और सोरेन परिवार का गढ़ कहा जाता है, उस संथाल परगना की जनता ने समय-समय पर शिबू सोरेन उनकी पत्नी रूपी सोरेन, बेटे दुर्गा सोरेन और हेमंत सोरेन को भी दरकिनार कर चुकी है.
झामुमो राजमहल के साथ दुमका सीट अपनी झोली में करने के लिए रणनीति बना रही है
आज शाम तक वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो जाएगा. किस चरण में दुमका सीट पर मतदान होगा यह भी पता चल जाएगा. आनेवाले समय में इंडिया गठबंधन भी अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर देगी. फिलहाल बीजेपी का मकसद संथाल परगना प्रमंडल के तीनों लोकसभा सीट पर कब्जा जमाते हुए झमुमो मुक्त संथाल परगना बनाने का है. वहीं झामुमो राजमहल के साथ-साथ दुमका सीट अपनी झोली में करने के लिए रणनीति बनाने में जुट गई है. प्रजातंत्र में जनता मालिक होती है. जनता किसके सिर विजय का ताज पहनती है यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि यहां का मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है.
रिपोर्ट-पंचम झा