टीएनपी डेस्क(TNP DESK): अक्सर सुनने में आता है कि राज्यपाल की भूमिका उन राज्यों में कथित रूप से विवादों में रही है, जहां केंद्र की सत्ता में काबिज दल की सरकार नहीं होती है यानी एक एलाइनमेंट की सरकार अगर केंद्र और राज्य में नहीं हो तो उस राज्य में राज्यपाल की भूमिका कभी कभार विवादों में रही है. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी की है जिसको लेकर यह चर्चा एक बार फिर से शुरू हो गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना मामले में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है कि राज्यपाल को राजनीतिक पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए. राज्यपाल को अपने संवैधानिक प्रमुख का दायित्व गरिमा के साथ निभाना जाना चाहिए.
राज्यपाल ने क्या कहा था
सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने महाराष्ट्र की शिवसेना के मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. वैसे कोर्ट ने कहा कि यह कोई आदेश नहीं है बल्कि महज टिप्पणी है. मालूम हो कि शिवसेना में फूट के कारण उत्पन्न स्थिति के दौरान राज्यपाल की ओर से कहा गया था कि शुरुआत में ही बेमेल गठबंधन हुआ और सरकार ऐसे दलों ने बना ली जिनका चुनाव पूर्व कोई गठबंधन था ही नहीं. इस पर कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल को इस तरह के पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद से राजनीतिक चर्चा तेज
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है कि इसे 7 जजों की बेंच को भेजा जाए या नहीं. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद से राजनीतिक चर्चा तेज हो गई है.भाजपा विरोधी दलों का कहना है कि उन राज्यों में जहां गैर भाजपा सरकार है,वहां राज्यपाल के माध्यम से केंद्र की एनडीए सरकार कुछ न कुछ राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए प्रयास करती रहती है.
उल्लेखनीय है कि झारखंड जैसे राज्य में पूर्व राज्यपाल रमेश बैस पर सत्तारूढ़ दलों ने भाजपा के इशारे पर काम करने का कथित रूप से गंभीर आरोप लगाया था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के माइनिंग लीज मामले से जुड़े लिफाफे आजतक नहीं खुल पाए. लेकिन इसको लेकर राजनीति खूब हुई और आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे. सत्ता पक्ष के लोग राजभवन पर आरोप लगाने से पीछे नहीं हटे. अब झारखंड के नए राज्यपाल (मनोनीत) सीपी राधाकृष्णन रांची आ गए हैं.