दुमका(DUMKA): सावन का पावन महीना चल रहा है. यह महीना शिव उपासना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. यही वजह है कि देश के तमाम शिवालयों में शिव भक्तों की भीड़ उमड़ रही. प्रत्येक दिन देश विदेश से श्रद्धालु देवघर के बाबा बैद्यनाथ और दुमका के बाबा बासुकीनाथ पर जलार्पण कर रहे हैं.
सुल्तानगंज से शुरू होती है कांवर यात्रा
कांवर यात्रा शिव भक्ति का एक माध्यम है. देवघर और बासुकीनाथ धाम की कांवर यात्रा काफी प्राचीन है. इसकी शुरुआत बिहार के सुल्तानगंज से होती है. जहां उत्तरवाहिनी गंगा में डुबकी लगाने के बाद शिव भक्त दो जल पत्रों में गंगा जल भरकर कांवर यात्रा की शुरुआत करते हैं. लगभग 105 किलोमीटर पदयात्रा के बाद देवघर पहुंच कर एक जलपात्र से कामना लिंग बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण करते हैं.
बासुकीनाथ धाम पहुंच कर पूरी होती है यात्रा
देवघर में बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण के बाद शिव भक्तों के कांवर यात्रा का अगला और अंतिम पड़ाव बाबा बासुकीनाथ धाम होता है. कुछ यात्री पैदल तो कुछ बस या ट्रैन से बासुकीनाथ धाम पहुंचते हैं. पवित्र शिवगंगा में आस्था की डुबकी लगाकर फौजदारी बाबा पर जलार्पण करते हैं. इस तरह शिव भक्तों की कांवर यात्रा पूरी होती है.
देवघर में लगाते हैं अर्जी, बासुकीनाथ धाम में होती है फल की प्राप्ति
बासुकीनाथ धाम पंडा धर्म रक्षणि सभा के महामंत्री संजय झा बताते है कि बासुकीनाथ धाम में जलार्पण के बगैर यात्रा अधूरी मानी जाती है. उनका कहना है कि एक जलपात्र से देवघर स्थित कामना लिंग पर जलार्पण कर शिव भक्त अपनी अर्जी लगाते हैं. दूसरी जलपात्र से बासुकीनाथ धाम में जलार्पण करने के बाद ही यात्रा पूरी होती है. उनका तर्क है कि बासुकीनाथ धाम को सर्वोच्च न्यायालय या फौजदारी दरवार कहा जाता है. न्यायालय में सुनवाई के वक्त न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य माना जाता है. इसलिए फौजदारी बाबा पर जलार्पण के बाद ही कांवर यात्रा पूर्ण मानी जाती है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
नागेश नाथ कहें या बासुकीनाथ या फिर फौजदारी दरबार, शिव भक्तों की आस्था प्राचीन काल से ही बासुकीनाथ धाम पर अटूट रही है. यही वजह है कि देश विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं.
रिपोर्ट: पंचम झा