टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-चुनाव के करीब आते ही, वो चिजे और मंजर देखने को मिलती है. जो लोगो के आंखों के सामने भरोसा ही नहीं हो पता. दुश्मनी भूलकर लोग दोस्त बन जाते है. रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने लगती है. सबकुछ मानो बीते दिनों की बात बन गई हो. चिराग पासवान और चाचा पशुपतिनाथ पारस के बीच बयानबाजी को ही देख लीजिए, किस कदर एक दूसरे की बाल की खाल खींचने पर उतारू हो जाते थे. लेकिन, आंखों में गुस्सा औऱ बगावती तेवर सबकुछ खत्म हो गया.
चिराग ने चाचा पशुपति के छुए पैर
NDA की बैठक में जब चाचा पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान आमने-सामने हुए तो. चिराग ने संस्कार दिखाते हुए झुककर उनके पैर छु लिया. बदले में पशुपति कुमार पारस ने भी उसे गले लगा लिया. चाचा-भतीजे के बीच अनबन और लड़ाई आगाज तब शुरु हो गया था. जब पशुपति पारस ने लोक जनशक्ति पार्टी को तोड़ दिया था . चार सदस्य वाले पारस गुट को लोकसभा में मान्यता भी मिल गई. लोजपा के कोटे वाले केन्द्र में मंत्री का पद चिराग के चाचा पशुपति पारस ने झटक लिया. हालांकि, इसके बाद चिराग ने एनडीए से नाता तो तोड़ लिया था. लेकिन दिल नहीं तोड़ पाए थे. वे खुद को पीएम नरेन्द्र मोदी का हनुमान बताते रहें.
बीजेपी के लिए क्यों जरुरी बनें चिराग
बेशक पशपुति पारस ने लोजपा मे बगावत कर खुद को पार्टी का असली वारिस घोषित कर चार सांसदों को भी जोड़ लिया . केन्द्रीय मंत्री भी बन गये. लेकिन, बीजेपी चिराग को दरकिनार कर खतरा नहीं मोल ले सकती . वह बिहार की सियासात औऱ उसकी जमीनी हालात को अच्छी तरह से समझती है. वह चिराग की अहमियत औऱ हाल के दिनों में उनकी जनसभा में उमड़ी भीड़ से वाकिफ है . उसे पता है कि अगर पासवान मतदाता दिवंगत रामबिलास पासवान की राजनीतिक विरासत का असली वारिस चिराग में ही अपना अक्स देखने लग गई, तो फिर पशुपति नाथ पारस खुद ब खुद दरकिनार हो जायेंगे. बिहार में बीजेपी 40 लोकसभा सीट पर पूरी रणनीति औऱ तैयारी के साथ उतरना चाहती है. वो कोई भी खामी नहीं छोड़ना चाहती, क्योंकि इसबार उसके साथ जेडीयू नहीं है. इसलिए चाचा-भतीजे में सुलाह करने की सलाह दी गई . इसके लिए केन्द्रीय मत्री नित्यानंद राय ने चिराग औऱ पशुपति से बात भी की. लेकिन पार्टी के विलय पर बात नहीं बनीं.
हाजीपुर सीट को लेकर किचकिच
हाजीपुर सीट पर रामविलास पासवान लड़ते रहे थे. इस बार बेटे चिराग ने यहां से लड़ने का एलान कर चाचा पशुपति पारस को भड़का दिया. वर्तमान में पारस इसी हाजीपुर से सांसद है. लाजमी है कि चाचा-भतीजे में गुस्सा परवान चढ़ेगा ही. चाचा परास ने चिराग से कहा दिया था कि वाकई हाजीपुर इतना पसंद था, तो जमुई से चुनाव क्यों लड़े. हालांकि, बीजेपी ने दोनों से मिल बैठकर इस पर समाधान करने की नसीहत दी और किसी भी तरह की बयानबाजी से परहेज करने की हिदायत दी है. भाजपा का साफ कहना है कि सिर्फ गिनती के लिए सीटें नहीं देगी, बल्कि कोई भी सीट चर्चा करने के बाद ही दी जाएगी. एनडीए में शामिल जो भी घटक दल है. भाजपा सीट उसी को देगी, जिसमे जीत सुनिश्चित हो.
लोकसभा चुनाव के दिन नजीदक आते ही जा रहे है, सारे लड़ाई-झगड़े और कलह खत्म कर एनडीए पूरी ताकत के साथ इस बार मैदान में उतरेगी. क्योंकि इस बार का विपक्ष भी पहले की तुलना में कहीं ज्यादा एकजुट औऱ ताकतवर नजर आ रहा है . यहां NDA का मुकाबला I.N.D.I.A से है . लिहाजा, लाजमी है कि चाचा-भतीजे की यह लड़ाई हर हाल में खत्म करवायेगी, क्योंकि किचकिच से NDA का ही नुकसान है.
रिपोर्ट-शिवपूजन सिंह