टीएनपी डेस्क (TNP DESK): बचपन सभी का प्यारा होता है. लोग जब बड़े हो जाते हैं चाहे वह अमीर हो चाहे गरीब अपने बचपन को जरूर याद करते हैं. बचपन वह अमूल्य खजाना है जिसे ना तो रोका जा सकता है और न पैसे से दुबारा वापस पाया जा सकता है. इंसान चाहे अपनी उम्र के किसी भी दहलीज पर पहुंच जाए लेकिन अपने बचपन के सुनहरे पलों को जरूर याद करता है, क्योंकि एक बचपन ही ऐसा होता है जब आप सभी चिंताओं से मुक्त होकर अपने जीवन को बेधड़क होकर बिंदास तरीके से जीते हैं और फिर जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं तो आप इसको मिस करने लगते हैं.
आज का बचपन फोन में सिमटता जा रहा है
आजकल के बच्चे का बचपन काफी बदल गया है, छोटे-छोटे बच्चे गैजेट्स के सहारे जीते हैं, जिससे इनका मासूम बचपन बर्बाद हो रहा है, लेकिन आज हम 90 के दशक के बच्चों के बचपन के बारे में बात करेंगे, जब मोबाइल फोन नहीं था. उस समय बच्चे घर से निकलकर मैदानों में तरह तरह के गेम खेला करते थे. एक तरफ जहां आजकल के बच्चे मोबाइल में दिन भर घुसे रहते है, जिससे ना सिर्फ उनका आंख खराब होता, बल्कि वो समाज से कटते चले जाते है, और मानसिक तौर पर भी डिस्टर्ब होते है. वहीं कई बार बच्चे गूगल में कुछ ऐसा कुछ भी देख या पढ़ लेते है, जो उनकी उम्र में नहीं देखा जाना चाहिए, इस तरह उम्र से पहले किसी भी जानकारी को पाना बच्चों की मासूमियत को छिन रहा है.
आज भी 90 के दौर के टीवी सिरियल्स लोगों के दिल में बसे है
वहीं 90 के दशक के बच्चे मोबाइल की जगह टीवी देखखर अपना मनोरंजन किया करते थे. उस समय के टीवी शोज़ आज भी लोगों के जेहन में बसे हुए हैं, जिनका नाम सुनते ही उन्हें वह सुनहरा दौर याद आता है. 90 के दशक में दूरदर्शन पर एक से एक टीवी शोज आया करते थे. जिनमें शक्तिमान का नाम सबसे पहले लोगों की जुबान पर आता है. हमारे देश का पहला सुपरमैन शक्तिमान को ही माना जाता है. 90 के दशक के दौर में शक्तिमान का ऐसा क्रैज था कि बच्चे सारे काम को छोड़कर शक्तिमान देखने के लिए टीवी देखने बैठ जाते थे. शक्तिमान हर रविवार को दोपहर के 12 या 1 के बीच में टेलीकास्ट होता था. वहीं जूनियर जी, चंद्रकांता, शाकालाका बूमबूम, जस्सी जैसी कोई नहीं, सोन परी, शरारत और ना जाने कई ऐसे अच्छे शो जिसको याद करके आज भी मन गदगद हो जाता है.
90 का वो दौर जब बच्चे टीवी शोज के साथ एड को भी करते थे एंजॉय
आज हम हमारे पास स्मार्टफोन है जिसे हम जब चाहे जहां चाहे कुछ भी सर्च करके देख सकते हैं. यहां तक की हमारे पास ऐड स्किप करने का भी का विकल्प आता है, लेकिन 90 के दशक का दौर ऐसा था जब विज्ञापन को भी काफी ध्यान से देखा जाता था और उसे याद करके फिर बच्चे रिपीट भी किया करते थे. आज भी हमारे जेहन में 90 के दशक के दौर का वह विज्ञापन बसे हुए है. निरमा सर्फ, नीमा सैंडल साबुन का प्रचार आया करता था. ऐड में सोनाली बेंद्रे दिखती थी, वहीं इसके गाने भी काफी मजेदार थे. वही फेविकोल का प्रचार हो या फिर ठंडा मतलब कोका-कोला. वही बबलगम का प्रचार.ये वह सुनहरा दौर था जब बच्चे टीवी सीरियलों के साथ-साथ विज्ञापनों को भी एन्जॉय करते थे.