रांची(RANCHI): - पूर्ववर्ती राज्यपाल रमेश बैस के द्वारा स्थानीय नीति को लौटाये जाने के बाद अब नवनियुक्त राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन की ओर से सीएम हेमंत सोरेन को एक और झटका मिला है. इस बार राज्यपाल ने ओबीसी आरक्षण में विस्तार करने वाले विधेयक को वापस लौटा दिया है. इस प्रकार हेमंत सरकार की सभी विधेयकों को एक-एक कर लौटाये जाने की प्रक्रिया जारी है.
याद रहे कि स्थानीय नीति संबंधी विधेयक को वापस लौटाते हुए तात्कालीन राज्यपाल ने यह टिप्पणी की थी कि राज्य विधान मंडल को नियोजन के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है. और अब ओबीसी आरक्षण में विस्तार करने वाले विधेयक को अटॉर्नी जनरल जनरल आर वेंकटरमणी की इस टिप्पणी के साथ वापस लौटा दिया गया है कि मौजूदा विधेयक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लघंन है. सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी के अन्दर ही रखने का निर्देश दिया है. जबकि इस विधेयक में आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव था.
पहले ही टूट चुका है 50 फीसदी का अपर लिमिट
हालांकि यहां यह भी याद रखने की जरुरत है कि Ews आरक्षण को लागू होने के बाद पहले ही 50 फीसदी का अपर लिमिट टूट चुका है. Ews आरक्षण के बाद कई राज्यों में आरक्षण का दायरा पचास फीसदी के पार हो गया है. क्योंकि Ews आरक्षण से एक साथ सामान्य वर्ग को 10 फीसदी का आरक्षण दे दिया गया है.
विरोधियों का तर्क 10 फीसदी वाले सामान्य वर्ग को 10 फीसदी का Ews कोटा
यहां यह भी याद रहे कि Ews आरक्षण का विरोध करते समय यह तर्क भी दिया गया था कि किसी भी सामाजिक-आर्थिक समूह को आरक्षण देने के पहले उसकी सामाजिक आर्थिक स्थिति की समीक्षा की जाती है, उसके आंकड़े उपलब्ध करवाये जाते हैं, लेकिन Ews आरक्षण में इसका पालन नहीं किया गया, और सबसे बड़ी बात यह कि बगैर किसी जनगणना के सामान्य वर्ग की जनसंख्या का आकलन कैसे कर लिया गया? इसके विरोधियों का तर्क था कि बामुश्किल सामान्य वर्ग की आबादी 10 फीसदी है, इस 10 फीसदी हिस्से को पूरे 10 फीसदी का आरक्षण प्रदान कर दिया गया, जबकि पिछड़ा वर्ग जिसकी जनसंख्या करीबन 55 से 60 फीसदी आंकी जा रही है, उसे महज 27 फीसदी आरक्षण के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है.
हेमंत सरकार को मिल गया एक राजनीतिक हथियार?
माना जा रहा है कि पिछड़ा आरक्षण को वापस किये जाने को हेमंत सोरेन के द्वारा एक राजनीतिक मुद्दा बनाया जा सकता है, इसे भाजपा की पिछड़ा विरोधी राजनीति का एक उदाहरण बताया जा सकता है, और खासकर तब जब कि पिछड़ों के आरक्षण में यह कटौती पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी की सरकार में की गयी थी. हेमंत सोरेन के हाथों में भाजपा को घेरने का एक राजनीतिक हथियार मिला चुका है.