टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-हम अगर आज महफूज हैं, तो सरहद पर सीना तान कर खड़े उन जवानों की वीरता की बदौलत, जिसने सर पर कफन बांधकर हमे सुरक्षित रखने का बीड़ा उठाते आ रहें है. चाहे 1965 , 1971 और कारगिल की जंग हो, देश की आन, बान और शान के खातिर हमारे वीर जवानों ने गोली खाने की परवाह किए बगैर हिन्दुस्तान की हिफाजत की. ,देश के इतिहास में ऐसे कई फौजी हुए, जिसने सीमा पर लड़ते-लड़ते जान दे डाली , लेकिन, देश के सर को कभी झुकने नहीं दिया. दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए और बुरी नजर रखने वालों की आंखे नोच डाली. अपने बलिदान और बहे रक्त से, जो इतिहास उन्होंने लिखा, उसके पन्ने हरदम उनकी वीरता की कहानी कहते नहीं थकते हैं, और सलामी देते हैं. आज हम उन्हीं शेरों में से एक परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद का जिक्र करेंगे, जिनके शौर्य, साहस और समपर्ण के सामने पाकिस्तानी फौजे भी जंग के मैदान में खौफजदा हो गयी औऱ अमेरिका को भी अपनी बहादुरी और जज्बे का कायल बना दिया.
पाकिस्तान से 1965 की जंग
कौन भूल सकता है 1961 में पाकिस्तान के साथ जंग को, जिसने सीमा पर नापाक हरकते की थी. जिसका जवाब भारतीय सेना ने डटकर दिया था. और ऐसा सबक सिखाया था कि पाकिस्तान बार-बार सीधे जंग करने की हिमाकत ही नहीं करता है . 1965 की जंग के हीरो थे अब्दुल हमिद, कम उम्र के इस जवान ने देश के प्रति ऐसा प्यार था औऱ जंग के मैदान में पाकिस्तानी फौज के सामने ऐसा जुनून और साहस पेश किया कि, वह आज भी वीरता की मिसाल पेश करता है . यूपी के गाजियाबाद के धामूपुर गांव में 1 जुलाई को जन्मे अब्दुल हमीद पंजाब के तरनातारण जिले के केमकपण सेक्टर में तैनात थे . दस दिन पहले ही वह छुट्टी पर घर आए थे . लेकिन, पाकिस्तान से बढ़ते तनाव के बीच वापस युद्ध के मैदान पर लौटें.
अब्दुल हमीद की बहादुरी
1965 की लड़ाई में पाकिस्तान ने उस समय अमेरिकन पैटन टैंकों से जंग में उतरा था . पाक फौजियों ने खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला बोल दिया . ऐसा कहा जाता है कि उस वक्त ये अमेरिकन टैंक अपराजेय थी, जिसका कोई तोड़ औऱ जवाब नहीं था. अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर, 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी. उसी दौरान उन्होंने अमेरिकन टैंकों की आवाजे सुनाई दी और देख लिया . मौके की नजाकत को देखते हुए हमीद गन्ने की खेत में छुप गए .
आठ पाकिस्तानी टेंक को उड़ाया
वह इंतजार कर रहे थे कि पाकिस्तानी टैंक उनके रिकॉयलेस गन की रेंज में आए और वो दुश्मनों के टैंक को मिट्टी में मिला दें , बाद में ऐसा ही हुआ. उस दौरान अब्दुल के साथ ड्राइवर की सीट पर उनका एक साथी भी साथ मे था . उनके साथी ने बताया कि जैसे ही टैंक उनकी रेंज में आया, उन्होंने फायरिंग करते हुए एक साथ चार पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त कर दिया. इसके बाद 10 सितंबर को उन्होंने तीन औऱ टेंक को अपनी गन से ही परखच्चे उड़ा दिया . उनकी बहादुरी के चर्चे आर्मी हेडक्वार्टर पहुंची औऱ परमवीर चक्र देने की सिफारिश की गई. सात टेंकों को धवस्त करने के बाद पाकिस्तानी सेना की नजर अब्दुल हमीद पर पड़ी. चारो तरफ से फायरिंग के दौरान भी अब्दुल ने पाकिस्तान सेना के आठंवीं टेक को भी नेस्तानाबुत कर दिया. हालांकि, वो युद्द के मैदान में वरगति को प्राप्त हो गये. उनकी शहादत औऱ बहादुरी के चर्चे देश में ही नहीं दुनिया में भी छ गई .लोग इस अदभुत सैनिक के साहस को सलाम करने लगें .
मरणोपरांत मिला परमीवर चक्र
अब्दुल हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग ने अब्दुल हमीद के नाम से डाक टिकट जारी किया, जिसमें उनकी तस्वीर थी. जो रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार नजर आ रहे हैं.
अमेरिका में भी वीरता की चर्चा
वीर अब्दुल हमीद की बहादुरी से अमेरिका भी दंग रह गया था . अमेरिका बार-बार इस चिज को लेकर हैरान था कि आखिर अजेय माने जाने वाली टैंक को एक साधरण दिखने वाली रिकॉयलेस गन से कैसे ध्वस्त किया जा सकता है. अमेरिका ने अपने अजेय टैंक की दोबारा समीक्षा की थी. हालांकि, आज भी अमेरिका के लिए ये एक पहेली बनी हुई है.
बेहद कम उम्र में देश के लिए सरहद पर प्राण को न्योछावर करने वाले अब्दुल हमीद एक नजीर है. जो आने वाले पीढ़ियों के लिए प्रेरणा देगी औऱ देश के प्रति मर मिटने का जज्बा औऱ जूनुन पैदा करते रहेगी. ऐसे वीर विरले ही पैदा होतें है , हमरा देश औऱ देशवासी धन्य हैं, जहां परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद पैदा हुए.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह