टीएनपी डेस्क(TNP DESK): देश में बढ़ती महंगाई और बेरोगजारी पर अपनी खरी-खोटी सुनाते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि देश में बेरोजगारी का कारण हमारी ओछी मानसिकता है. इसी ओछी मानसिकता के कारण हम केवल नौकरियों की पीछे भागते हैं, हममें श्रम को तुच्छ समझने की भावना बैठ गयी है और यही हमारी बेरोजगारी का कारण है.
शारीरिक श्रम को हेय दृष्टि से देखना घातक
उन्होंने कहा कि हम शारीरिक श्रम को हेय दृष्टि से देखने के आदि हो चुके हैं, जबकि कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता, हर काम का उतना ही सम्मान है. साथ ही उस कार्य को करने वालों का भी. हमें अपनी धारणा बदलनी होगी. शारीरिक श्रम के प्रति हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा. काम शारीरिक श्रम की हो या बुद्धि कौशल की दोनों को समान महत्व देना होगा.
नौकरी खोजने की होड़ से बचना होगा
लेकिन आज जिसे देखो वह नौकरी के पीछे भाग रहा है. पूरी दुनिया में नौकरियों की एक सीमा है. कोई भी देश अपने सभी नागरिकों को नौकरी नहीं दे सकता. सरकारी नौकरी तो 10 फीसदी से ज्यादा लोगों को दी ही नहीं जा सकती. दूसरी नौकियां भी अधिक से अधिक 20 फीसदी होगी. लेकिन हमारी खोज तो नौकरियों की है. हम स्वरोजगार की ओर बढ़ना ही नहीं चाहते. एक पान का दुकान चलाने वाला भी लाखों कमा सकता है, कमा रहा है. हमें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा.
देश में कौशल की कोई कमी नहीं
उन्होंने कहा कि देश में कौशल की कोई कमी है, सवाल सिर्फ उसका सम्मान करने का है. हमारे समाज में स्वार्थ की भावना कुछ ज्यादा हो गई और हम दूसरे के काम को सम्मान देना बंद कर दिए. और आगे चलकर इसकी वजह से अस्पृश्यता की समस्या पैदा हो गयी. मोहन भागवत ने बीआर अम्बेडर की प्रशंसा करते हुए कहा कि अम्बेडर ने अस्पृश्यता की समस्या को झेला, लेकिन किसी दूसरे धर्म को अपनाने की बजाय बौद्ध धर्म को अपनाना बेहतर समझा, क्योंकि बौद्ध धर्म भी भारतीय धर्म ही .
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार