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बिहार में जारी घमासान के बीच अब राजद ने दी प्रेमचंद का ‘ठाकुर का कुंआ’ पढ़ने की नसीहत, कहा दिल की गहराइयों में उतरती है यह कहानी

बिहार में जारी घमासान के बीच अब राजद ने दी प्रेमचंद का ‘ठाकुर का कुंआ’ पढ़ने की नसीहत, कहा दिल की गहराइयों में उतरती है यह कहानी

पटना(PATNA)- जब से राजद सुप्रीमो लालू यादव ने सार्वजनिक रुप से आनन्द मोहन और चेतन्य आनन्द को कम अक्ल करार देते हुए अपना शक्ल देखने की सलाह दी है. राजद खुले रुप से मनोज झा के समर्थन में बैंटिग करता नजर आने लगा है.

इसकी झलक राजद के उस ट्वीट में मिलती है, जिसमें बगैर इस विवाद का जिक्र किये लोगों से महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की सुप्रसिद्ध रचना ‘ठाकुर का कुंआ’ पढ़ने की सलाह दी गयी है. अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर राजद ने लिखा है कि “ठाकुर का कुंआ”- लोकप्रिय कहानीकार एवं विचारक मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है. समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती यह यथार्थवादी कहानी संवेदनशील आम आदमी के दिल की गहराई तक उतर जाती है. सबको यह कहानी पढ़नी चाहिए.

इस ट्वीट में सबसे अधिक गौर करने वाली लाईन ‘संवेदनशील आम आदमी’ है, साफ है कि राजद अब इस कहानी को बड़े कैनवास पर दिखलाने की कोशिश कर रही है, वह इस कहानी के माध्यम से सामाजिक संवेदना पर नये विमर्श की शुरुआत चाहती है. ताकि वंचित समाज के हक और उसकी राजनीतिक-सामाजिक सहभागिता को सियासी विमर्श का हिस्सा बनाया जा सके.   

यहां ध्यान कि मुंशी प्रेमचंद ने कफन, पूस की रात, गोदान सहित दर्जनों कहानियों के माध्यम से तात्कालीन सामाजिक यथार्थ को बड़े ही जादुई अंदाज में उकेरा था. उनके विचारों में गांधीवाद की झलक मिलती थी. दावा किया जाता है कि जिस सामाजिक बदलाव की कोशिश राजनीति के क्षेत्र में राष्ट्रपिता गांधी कर रहे थें. साहित्य के क्षेत्र में उसी बदलाव की जंग प्रेमचंद लड़ रहे थें.

सियासी विमर्श के केन्द्र में ओमप्रकाश वाल्मिकी और प्रेमचंद की वापसी

मनोज झा के पाठ पर छिड़े विवाद का अंत चाहे जो हो, लेकिन इस पाठ के बहाने ओमप्रकाश वाल्मिकी और प्रेमचंद अब विमर्श के केन्द्र में लौटते दिखने लगे हैं. और पहली बार राजनेताओं को सामाजिक बदलाव में साहित्य और साहित्यकारों की भूमिका भी समझ में आने लगी है.

खास बात यह है कि जिस सामाजिक संत्रास की पीड़ा दलित चेतना से लैस ओमप्रकाश वाल्मिकी को आजादी के तीन दशकों के बाद हुआ, और अपनी कविताओं के माध्यम से उस संताप को उजागर किया, कथित उच्च समाज से आने वाले मुंशी प्रेमचंद ने उसी पीड़ा को ओमप्रकाश वाल्मिकी से करीबन चार दशक पहले अभिव्यक्त किया था. लेकिन दुखद तथ्य यह भी है कि मुंशी प्रेमचंद से लेकर ओमप्रकाश वाल्मिकी और आज मनोज झा तक सामाजिक विभेद का वह दर्द समाप्त नहीं हुआ, और आज चार-चार दशक के बाद भी उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता बरकरार है.       

  

 

Published at:30 Sep 2023 03:56 PM (IST)
Tags:Amidst the controversy over Omprakash Valmiki's 'Thakur Ka Kuan' now RJD advised to read Premchand's 'Thakur Ka Kuan' said that this story goes to the depths of the heartbihar news bihar trending news
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