टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : वैसे तो बिहार की राजनीति में पलटू राम का तमगा नीतीश कुमार के नाम है. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी इस खेल के माहिर खिलाड़ी माने जाते है. अगर उनकी राजनीतिक सफर को टटोला जाए, तो अपनी उलटबासी में वह अपने नेता सीएम नीतीश को भी पीछे छोड़ते नजर आते है. उनकी प्रतिबद्धता कभी एक खेमें के प्रति नहीं रहती. हालांकि तमाम उलटबांसियों के बावजूद वह अपने आप को दलित राजनीति का चेहरा बताने में पीछे नहीं रहते.
कल तक जिस जितने राम मांझी को एनडीए का मजबूत स्तंब माना जा रहा था. वह जीतन राम मांझी जातीय जनगणना का आकड़ा सामने आने के बाद एक बार फिर से पाला बदले नजर आ रहे. दरअसल इस चर्चा की शुरूआत उनका नीतीश कुमार के साथ बंद कमरे में मुलाकात से होती है. जैसी यह खबर बाहर आई बिहार की राजनीति में सियासी भुचाल की स्थिति पैदा हो गई. और इसे भाजपा के सियासत को दहरा झटका माना गया.
ध्यान रहे कि तमाम मान मनुअल के बावजूद मुकेश सहनी एनडीए का हिस्सा नहीं बने औऱ अब तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर 2024 में पीएम मोदी की विदाई का ऐलान कर दिया. भाजपा अभी उस झटके से बाहर भी नही निकली थी. की इधर जीतेन राम मांझी भी आंख दिखलाते नजर आने लगे. यहां हम बता दें कि मुकेश सहनी का दावा है कि सहनी औऱ उसकी उप जातियों को मिला कर सहनी जाती का वोट करीबन 9 फिसदी हो जाता है. इधऱ जीतने राम मांझी मुशहर औऱ भुमिया जाती के आबादी को जोड़ते हुए 5 फिसदी मतो पर दावा कर रहे है.
यदि इन दोनों के दावों को सही माना जाए तो कुल मिला कर 14 फीसदी मत भाजपा से खिसकता नजर आ रहा है. लेकिन यहां यह बताना भी जरूरी है कि जीतन राम मांझी की तरफ से अभी किसी भी प्रकार की घोषणा नहीं कि गई है. जानकारो का मानना है कि यह गुत्थी इतनी आसान भी नहीं है. बहुत संभव है कि जातीय आकड़े के सामने आने के बाद जीतन राम मांझी एक सुनियोजत योजना के तहत नीतीश से मुलाकात कर भाजपा को यह राजनैतिक संकेत देने की कोशिश कर रहे हो कि बिहार की सियासत में उनको कम आंकना भाजपा की बढ़ी भूल हो सकती है. क्योंकि बंद पिटारा अब खुल चुका है औऱ उनके पास 5 फीसदी मतो का मजबूत जनाधार है और इस बदली हुई सियासत में उन्हे सिर्फ एक सीट पर समेट देना भाजपा की राजनीति भूल है.