धनबाद(DHANBAD): शहर की सड़कों पर आवारा पशु, कभी किसी की जान ले लेते हैं तो कभी ट्रैफिक को जाम कर देते हैं. बाजार जाने वालों को दौड़ा भी देते हैं, नतीजा होता है कि लोग गिर कर चोटिल हो जाते हैं. अलग-अलग इलाके में पशुओं के आकार और प्रकार के हिसाब से लोगों ने उनका नामकरण भी कर दिया है. बाहुबली और भल्लालदेव जैसे नाम रखे गए हैं. शुक्रवार को ही एक रिक्शा चालक की साड़ ने जान ले ली. इसके पहले भी इस तरह की घटनाएं हुई है. अभी हाल ही में धनबाद के बरटांड़ के एक सोसाइटी के गार्ड को साड़ ने गेंद की तरह उछाल दिया था, संयोग से उनकी जान बच गई. बाजार का इलाका हो अथवा मोहल्ले की सड़क, सब जगह के लोग इन आवारा पशुओं से परेशान हैं. बाहुबली और भल्लालदेव नाम के आकार-प्रकार के साड़ जिस इलाके से गुजरते हैं, भगदड़ मच जाती है.
लोग डर से भागते है और हो जाते हैं चोटिल
दरअसल, लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते हैं और गिर कर चोटिल हो जाते हैं. जब कोई घटना होती है तो हल्ला होता है लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं होती. इन आवारा पशुओं के कारण सड़क जाम तक हो जाती है, ट्रैफिक पुलिस लाचार दिखने लगती है. सड़क पर आवारा पशु दुर्घटनाग्रस्त भी हो जाते हैं, कई सामाजिक संस्थाएं इनका इलाज भी करती हैं लेकिन आखिर कितने पशुओं का इस तरह से इलाज होगा. जिला प्रशासन अथवा नगर निगम के पास भी यह आंकड़ा नहीं होगा कि रोज कितनी दुर्घटनाएं इन आवारा पशुओं के कारण होती है. धनबाद जिले में पशुओं की टैगिंग की कोई व्यवस्था नहीं है. यह भी एक बड़ा कारण है कि खटाल वाले पशुओं के सूख जाने के बाद अथवा उनके बच्चों को सड़क पर छोड़ देते हैं, नतीजा है कि सड़क पर आवारा पशुओं की संख्या बढ़ती जा रही है.
इस गंभीर मुद्दे पर किसने क्या कहा
इस पूरे मामले में जब पशु प्रेमी राणा घोष से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ी समस्या है और इस पर अगर तुरंत नियंत्रण नहीं पाया गया तो यह समस्या आगे और बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि पशुओं की टैगिंग नहीं होने के कारण यह समस्या अधिक है. आवारा पशुओं को दफनाने के लिए जिले में कहीं जगह भी चिन्हित नहीं है. वहीं, एकल के अध्यक्ष रोहित का कहना है कि जिले में कहीं भी गोचर के लिए जमीन की व्यवस्था नहीं है. हालांकि खतियान में हर जिले में गोचर जमीन होती है लेकिन धनबाद में इसे अधिक्रमित कर लिया गया है. उन्होंने कहा कि उन लोगों का अभियान है कि आप पशुओं को आवारा ना छोड़े, उन्हें एकल को सुपुर्द कर दें. उसके बाद गौशाला सहित अन्य स्थानों पर पशुओं के रखरखाव की व्यवस्था की जाएगी.
वहीं, समाजसेवी मधुरेंद्र कुमार का कहना है कि आवारा पशुओं पर संपूर्ण रूप से रोक तो संभव नहीं है, क्योंकि सड़क से पशुओं को हटाया जाएगा और फिर पशु आ जाएंगे. इसकी मुख्य वजह उन्होंने पशुओं की टैगिंग नहीं होना ही बताया. उन्होंने कहा कि पशुपालन सचिव सहित अन्य अधिकारियों से उन्होंने अनुरोध किया है और इसका कोई समाधान निकाला जाए.
रिपोर्ट : शाम्भवी सिंह/संतोष, धनबाद