Patna-मुम्बई बैठक के बाद पटना लौटे नीतीश कुमार की राजनीतिक सक्रियता अचानक से काफी तेज होती दिख रही है, वह लगातार अपने मंत्रियों से संवाद कायम कर रहे हैं, सुबह-सुबह अशोक चौधरी के साथ मंत्री सुमित कुमार सिंह के आवास गुफ्तगू और दोपहर होते होते लालू से मुलाकात. जिसके बाद राजधानी पटना के सियासी गलियारे में कयासों का दौर शुरु हो गया, और तरह-तरह के आकलन किये जाने लगे.
हालांकि तेजस्वी यादव की उपस्थिति में लालू यादव के क्या बात हुई, इसका खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन इस बात का दावा जरुर किया जा रहा है कि बहुत जल्द बिहार में कोई बड़ा सियासी उलटफेर होने वाला है और सीएम नीतीश की अति सक्रियता इसी ओर संकेत कर रहा है. इस दावे का आधार यह है कि जिस प्रकार से मुम्बई बैठक में पांच-पांच कमेटियों का गठन किया गया, और उन कमेटियों में शरद पवार से लेकर हेमंत सोरेन को स्थान मिला, लेकिन नीतीश कुमार किसी भी कमेटी का हिस्सा नहीं बनें. जबकि इस विपक्षी गठबंधन के वह प्रमुख शिल्पकार हैं. जब विपक्षी गठबंधन के प्रति कांग्रेस के अन्दर भी एक प्रकार की उलझन थी, अरविंद केजरीवाल से लेकर शरद पवार और ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव को एक साथ खड़ा करने को असंभव राजनीतिक टास्क माना जा रहा था, तब नीतीश कुमार ना सिर्फ लोगों से मुलाकात कर रहे थें, बल्कि देश के तमाम नेताओं को इस बात का भरोसा दिला रहे थें कि यदि वह एकजुट होने में कामयाब हो गयें तो भाजपा को 100 सीटों से नीचे-नीचे सलटाया जा सकता है, और अब जब वह गठबंधन साकार हो गया, उसकी तीन-तीन सफल बैठकों का आयोजन हो गया, अलग अलग कमेटियों का गठन हो गया, लेकिन विपक्षी एकता के उस शिल्पकार का चेहरा वहां दिखलायी नहीं देता, क्यों?
पहला आकलन
और इसी क्यों का जवाब की तलाश में पटना के राजनीतिक गलियारों में कयासों का दौर जारी है, दावा किया जा रहा है कि इसकी एक वजह तो यह हो सकती है कि जल्द ही अब तक लंबित मंत्रिमंडल विस्तार को अंतिम रुप दिये जाने की तैयारी की जा रही है, क्योंकि पटना बैठक के बाद खुद राहुल गांधी ने यह सवाल उठाया था, जिसके जवाब में राहुल गांधी ने लालू की ओर इशारा करते हुए कहा था कि सब कुछ इन पर निर्भर करता है, जब यह तय कर देंगे, सब कुछ हो जायेगा, तो क्या नीतीश कुमार उसी मंत्रिमंडल विस्तार को अंतिम रुप देने से पहले लालू की सहमति लेने के लिए गये थें.
दूसरा दावा कितना सच
लेकिन दूसरा दावा यह है कि सीएम नीतीश कुमार का किसी भी कमेटी का हिस्सा नहीं बनना इस बात का संकेत हैं कि उन्हे कोई अहम जिम्मेवारी सौंपी जाने वाली है. और वह पीएम फेस घोषित किये जा सकते हैं, या उन्हे इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाया जा सकता है, स्वाभाविक तौर पर तब उनकी सक्रियता तेज होगी और बिहार के लिए किसी चेहरे को सामने लाना होगा, साफ है कि वह चेहरा तेजस्वी होंगे, तब क्या यह माना जाय कि बहुत जल्द तेजस्वी की ताजपोशी होने वाली है, इस संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता और पहली संभावना की तुलना में इसके चांस कुछ ज्यादा है.
तीसरी संभावना पर भी चर्चा तेज
लेकिन इसके साथ ही एक तीसरी संभावना पर भी चर्चा चल रही है, वह है यूपी के अखाड़े में सीएम नीतीश की इंट्री, दावा किया जा रहा है कि 2014 के लोकसभा का चुनाव नीतीश कुमार यूपी के फूलपुर लोकसभा से लड़ने वाले हैं. कुर्मी बहुल फूलपुर में यादव मतदाताओं की भी बड़ी आबादी है, और वैसे ही लालू यादव का देश की राजनीति में एक अलग पहचान है, यदि यूपी के अखाड़े में लालू की इंट्री होती है, तो ना सिर्फ यह नीतीश को मजबूती देगा, बल्कि अखिलेश को भी ताकत प्रदान करेगा. और खासकर तब जब लालू की सेहत दिन पर दिन निखरता नजर आ रहा है, और वह बेहद सधे अंदाज में मोदी को अपने निशाने पर ले रहे हैं, मुम्बई की गलियों में जिस प्रकार से लालू के देखने सुनने की भीड़ उमड़ी उसके बाद साफ हो गया कि अभी भी राष्ट्रीय राजनीति में लालू का क्रेज बरकरार है, तो क्या सीएम नीतीश यूपी के अखाड़े की रणनीति को फाइनल करने से पहले बड़े भाई लालू का आशीर्वाद लेने गये थें, फिलहाल यह सभी आकलन है, और इसकी अंतिम परिणति क्या होती है, इसके लिए अभी हमें कुछ इंतजार करना होगा. वैसे भी तमाम असमानताओं के बावजूद लालू नीतीश में एक बात की बड़ी समानता है कि दोनों अपने पत्ते अंतिम अंतिम समय तक बचा कर रखते हैं, और इस मामले में तो नीतीश कुख्यात है.