टीएनपी डेस्क(TNP DESK): नेपाल प्लेन हादसे में 72 यात्रियों और क्रू मेम्बरों की मौत के बाद नेपाल सहित भारत में शोक की लहर है. यहां बता दें कि यति एयरलाइंस का दो इंजन वाला एटीआर 72 विमान काठमांडू से पोखरा जा रहा था. लेकिन लैंडिंग से चंद मिनट पहले पहाड़ी से टकराकर क्रैश हो गया. विमान में 68 यात्री और चार क्रू मेम्बर थें. विमान में 15 विदेशी नागरिक भी सवार थे. इसमें पांच भारतीय, चार रूसी, दो कोरियाई के अलावा आस्ट्रेलिया, फ्रांस, अजेंटीना, इजराइल के एक-एक नागरिक भी सवार थें. इस दु:खद हादसे के बाद नेपाल में राष्ट्रीय शोक की घोषणा की जा चुकी है,पूरा राष्ट्र मर्माहत है. इसी विमान की को-पायलट थी अंजू खतिवड़ा.
बतौर को-पायलट अपने अंतिम उड़ान पर थी अंजू खतिवड़ा
कहा जाता है कि नियति ने किसके हिस्से कौन सी कहानी लिखी है, यह कोई नहीं जानता, उसकी स्क्रिपट को नियत वक्त के पहले पढ़ पाना नामुमकिन है. कुछ ऐसा ही हुआ को-पायलट अंजू खतिवड़ा के साथ, अंजू खतिवड़ा उस हादसे वाले विमान की को-पायलट थी. बतौर को-पायलट यह उनकी अंतिम उड़ान थी, बस कुछ ही पलों की बात थीं, इधर विमान इस जमीन पर लैंड करता और उधर अंजू का को-पायलट से कैप्टन बनने का सपना साकार हो जाता. अंजू का सपना आसमान चूम लेता. लेकिन नियति को अंजू का सपना पूरा करना मंजूर नहीं था. विमान के क्रैश होते ही अंजू का सपना भी क्रैश हो गया. हादसे में अंजू की मौत हो गयी.
को-पायलट रहते ही अंजू के पति दीपक पोखरेल की हुई थी मौत
अब इसे नियति की क्रूरता नहीं तो क्या कहा जाय कि अंजू के पति दीपक की मौत भी वर्ष 2006 में बतौर को-पायलेट ही हुई थी. 26 जून 2006 ही वह दिन था, जब क्रू मेंबर सहित 10 सहयात्रियों के साथ अंजू के पति दीपक की मौत हुई थी.
काश नियति ने इतनी बेरहमी नहीं दिखलाई होती
अब सब कुछ खत्म हो चुका है, हम नियति के फैसले पर सवाल तो नहीं उठा रहें है, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि शायद नियति को कुछ मानवीय होने की जरुरत थी. इंसानी संवेदनाओं को समझने की जरुरत थी, सपनों को इस प्रकार तार-तार करने के पहले एक बार विचार की जरुरत थी. लेकिन काश यह सब कुछ होता. हम कर भी क्या सकते हैं, हम तो एक इंसान है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार, रांची