टीएनपी डेस्क (TNP DESK): जाते जाते ये साल हर साल की तरह कुछ खट्टी तो कुछ मीठी यादें देकर जा रहा है. इस बीतते हुए साल के अब कुछ ही दिन शेष रह गए है. ऐसे में नए साल का स्वागत करने के लिए जहां एक ओर सब तैयार है वहीं हर बार की तरह न्यू ईयर से पहले क्रिसमस फेस्टिवल ने भी वातावरण में अपनी छटा बिखेर दी है. झारखंड की राजधानी रांची में भी क्रिसमस को लेकर लोगों में बहुत उत्साह और धूम है. वहीं रांची के विभिन्न गिरजाघर में भी रविवार देर शाम के बाद सोमवार सुबह में भी विशेष प्रार्थना सभा आयोजित की गई. जिसमें ईसाई धर्म को लोग भारी संख्या में सम्मिलित हुए. इस मौके पर लोगों ने बालक यीशु के दर्शन कर गिरजाघर में कैंडल जलाया. कई जगहों पर रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन हो रहा और लोग अपने प्रभु यीशु के जनम दिवस को धूमधाम से मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.
प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन सद्भाव व प्रेम के साथ पूरी दुनिया में मनाया जाता है
क्रिसमस के पर्व पर प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन सद्भाव व प्रेम के साथ पूरी दुनिया में मनाया जाता है. वैसे तो ये ईसाई धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, लेकिन समय के साथ इसे हर धर्म और वर्ग के लोग बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं. क्रिसमस के दिन लोग एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं और केक काटकर क्रिसमस का आनंद उठाते हैं. इस त्योहार में केक और गिफ्ट के अलावा एक और चीज का विशेष महत्व होता है, वह है क्रिसमस ट्री. हर साल क्रिसमस के पर्व पर लोग घर में क्रिसमस ट्री लगाते हैं. रंग-बिरंगी रोशनी और खिलौनों से इसे सजाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्रिसमस पर्व मनाने का इतिहास क्या है कब शुरू हुआ इस तरह केक कट कर क्रिसमस मानना और कौन है सेंटा क्लाज़ आइए हम बताते है .
क्यों मानते हैं क्रिसमस
क्रिसमस, सामान्य रूप से, ईसा मसीह के जन्म के रूप में मनाया जाता है. लेकिन वास्तविक अर्थों में यह आध्यात्मिक जीवन की सच्चाई का प्रतीक है. जब ईसा मसीह का जन्म हुआ था, तब दुनिया नफरत, लालच, अज्ञानता और पाखंड से भरी हुई थी. उनके जन्म ने लोगों के जीवन को बदल दिया. उन्होंने उन्हें आध्यात्मिकता, पवित्रता और भक्ति के महत्व के बारे में सिखाया और बताया कि कैसे वे अपने जीवन को बेहतर के लिए बदल सकते हैं. क्रिसमस का त्योहार हमें दिखाता है कि ज्ञान और प्रकाश से भरा जीवन दुनिया के कोने-कोने में फैले अंधेरे को दूर कर सकता है. यीशु मसीह ने लोगों को सिखाया कि वे केवल अपनी आध्यात्मिकता को जागृत कर सकते हैं यदि वे इसकी खोज करते हैं. उन्होंने उन्हें एक विनम्र और सरल जीवन जीने और सांसारिक सुखों की इच्छा को त्यागने की शिक्षा दी, क्योंकि संतुष्टि भीतर से आती है न कि उन चीजों से जिन्हें हम बाहर खोजते हैं
पहली बार कब मनाया गया क्रिसमस
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि क्रिसमस 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिन्हें लोग ईश्वर का पुत्र मानते हैं. क्रिसमस शब्द क्राइस्ट मास से आया है. लेकिन ईसा मसीह की वास्तविक जन्म तिथि कोई नहीं जानता. ईसाई धर्म के अस्तित्व की पहली तीन शताब्दियों तक, ईसा मसीह का जन्मदिन या क्रिसमस बिल्कुल भी नहीं मनाया गया था. विद्वानों के अनुसार पहला साल जब 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया गया था, वह रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के समय 336 ईस्वी में था. यहां तक कि बाइबिल में भी ईसा मसीह के जन्म के सही दिन का जिक्र नहीं है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर हम इसे 25 दिसंबर को ही क्यों मनाते हैं. 25 दिसंबर को ही क्रिसमस क्यों मनाया जाता है, इसे लेकर अलग-अलग थ्योरी हैं. एक प्रसिद्ध ईसाई परंपरा के अनुसार 25 मार्च को मैरी को बताया गया कि वह एक विशेष बच्चे को जन्म देंगी. 25 मार्च के नौ महीने बाद 25 दिसंबर है. इसलिए, 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाने के लिए एक दिन के रूप में चुना गया था. हालांकि, चर्च के अधिकारियों ने 25 दिसंबर को क्रिसमस समारोह के लिए तारीख के रूप में नियुक्त किया क्योंकि वे चाहते थे कि यह शैतान और मिथ्रा को सम्मानित करने वाले मौजूदा बुतपरस्त त्योहारों के साथ मेल खाए.