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पूरे देश में 'महाशिवरात्रि' की धूम, आईए जानते है शिव-पार्वती के विवाह की पूरी कहानी  

पूरे देश में 'महाशिवरात्रि' की धूम, आईए जानते है शिव-पार्वती के विवाह की पूरी कहानी  

Tnp desk:- भगवान भोलेनाथा की महिमा और उनकी भक्तों पर कृपा तो अपरंपार रही है. कहा जाता है कि भोले पर एक लौटा जल डाल देने से भी प्रसन्न हो जाते हैं. महाशिवरात्रि शिव उपसाना का बेहद ही शुभ दिन माना जाता है. शैवालयों में भक्तों की भीड़ और आदिदेव के प्रति उमड़ी श्रद्धा एक समर्पण दिखाता है. महाशिवरात्रि को शिव और पार्वती के विवाह का दिन भी माना जाता है. इसे लेकर कई कुवांरी लड़कियां भी शंकर के द्वार पर पहुंचकर योग्य वर की मुराद मांगती हैं. इस दिन शिव की बारत भी शाम में निकलती है , जो बड़े धूमधाम और हर्सोउल्लास से मनाया जाता है. शाम में इनकी बारती आकर्षण का केन्द्र रही है. 

महाशिवरात्रि की कहानी 

चलिए शिवपुराण के मुताबिक महाशिवरात्रि के उस कहानी के बारे में जानते है, कि कैसे भोलेनाथ का विवाह हुआ था और कितनी मुश्किलें आई थी. बताया जाता है कि ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष जब एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया , तो इसके लिए तीनो लोक मे अतिथियों को न्योता भेजा. लेकिन, अपने जमाई भगवान भोले शंकर को नहीं बुलाया. क्योंकि शिव के अलबेला और मस्तमौला स्वभाव तनिक भी नहीं भाता था. 
जब शिव की पत्नी और दक्ष की बेटी सती को मालूम पड़ा तो यज्ञ में जाने की इच्छा जतायी. लेकिन, भोलेनाथ बिना आमंत्रण के जाने को तैयार नहीं थे. हालांकि, सती यज्ञ में अकेले गई. वह जैसे ही सभागृह पहुंची तो अपने पति शिव की निंदा सुनाई दी , अपनी बेटी को देखकर भी राजा दक्ष नहीं रुके . सती ने कई बार समझाने की कोशिश भी की . लेकिन उनके पिता ने एक भी नहीं सुनी . आखिरकार अपने पति शिव के अपमान को सती बर्दाश्त नहीं की और यज्ञ स्थल पर बने अग्निकुंड में कूद गई. इस दुखद समाचार को लेकर नंदी कैलाश पर्वत पहुंचे तो भगवान भोलेनाथ बचाने के लिए यज्ञस्थल पर पहुंचे. लेकिन, तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था. गुस्से में कैलाशपति ने सति का जला हुआ शरीर उठाकर तांडव करने लगे . महापुराण के अनुसार जिस दिन शिव ने तांडव किया था . वह फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चुतर्दशी (चौदहवी) तिथि थी, जिसके बाद महाशिवरात्रि मनाई गई. इस दिन को शिव की रात भी बोली जाती है. 

इस दिन हुआ था शिव-पार्वती का विवाह 

शिवपुराण के अनुसार, इसी रात शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. इस दिन भी फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चुतर्दशी (चौदहवी) तिथि थी,दरअसल, सती के शोक में भगवान शिव गहन समाधि में चले गए थे और ध्यानमग्न हो गए. उनके ध्यान को कोई तोड़ ही नहीं पाता. भगवान विष्णु और ब्रह्मा भी सारे जतन करके हार गए. शिव के ध्यानार्थ होने से सृष्टि का संचालन भी बाधित होने लगा. देवतागणों के बीच चिंता का विषय बन गया था कि आखिर भगवान शिव का ध्यान तोड़ने के लिए क्या जाए? इधर, हिमालय की बेटी के रूप में सती का पुनर्जन्म होता है, उनका नाम पार्वती रखा गया , वह शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या करती है. 

शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या 

हालांकि, भगवान भोलेनाथ को शिव जी को पाना इतना आसान नहीं था जिसके लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या शुरू की. पार्वती की तपस्या से तीनों लोक में हाहाकार मच गया और बड़े-बड़े पर्वत भी डगमगाने लगे. पहले शिव ने पार्वती को तपस्या करने से रोक दिया. लेकिन अन्य देवताओं के सहारे पार्वती  शिव का मन जीत लेती है. फिर एक विशाल समारोह में शिव-पार्वति का विवाह हुआ. इस दिन शिव जी भूत-प्रेतों की बारात लेकर पहुंचे थे. शिव जी का श्रृंगार बारातियों ने ही किया था.उस दिन शंकर भस्म से श्रृंगार किए हुए बारात में पहुंचे थे और उन्होंने हड्डियों की माला पहनी हुई थी. भगवान शिव की ऐसी अनोखी बारात देखकर सभी डर गए और हैरान रह गए. पार्वती की माता मैनावती शिवजी के इस रुप को देखकर विवाह करने से साफ इंकार कर दिया था.  बाद में माता पार्वती के निवेदन पर शिवजी दूल्हे के रुप में तैयार होकर आए, उनके दिव्य रुप को देखकर सभी हैरान रह गए. जिसके बाद पार्वती की माता मैनवती भी शादी के लिए राजी हो गयी . इस शादी में भूत-प्रेत, सभी देवता, सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी और सभी बारातियों की मौजूदगी में शिव-पार्वती का विवाह पूरा हुआ
हर साल मनाये जाने वाला शिवरात्रि कुआंरी लड़कियों के लिए खास माना जाता है. इस दिन भगवान भोलेनाथ की बड़े विधिविधान पूजा करती हैं.ताकि शिव के समान वर मिले. हर शिवालयों में खासकर भीड़ देखने को मिलती है, 

Published at:08 Mar 2024 06:58 PM (IST)
Tags:Shiva-Parvati's marriageJharkhand Mahashivratri celebration Mahashivratr shiv parvati celebration Mahashivratri shiv parvati puja vidhi Mahashivratri puja 2024 Shiv Parvati Marraige story
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