दुमका(DUMKA): लोक सभा चुनाव 2024 की प्रक्रिया चल रही है. देश में कुल 7 जबकि झारखंड में चार चरणों मे मतदान होना है. अंतिम चरण में 1 जून को मतदान होगा जिसमें झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के कुल 3 लोक सभा सीट पर मतदान होगा जिसमें दुमका, गोड्डा और राजमहल सीट शामिल है।.
कांग्रेस आलाकमान ने माना दीपिका को मजबूत प्रत्याशी
तीनों सीट पर भाजपा द्वारा प्रत्याशी के नामों की घोषणा पहले ही की जा चुकी थी, लेकिन इंडी गंठबंधन को अपने प्रत्याशी के चयन में काफी माथा पच्ची करनी पड़ी. सबसे ज्यादा मशक्कत गोड्डा सीट को लेकर हुई. चौथी बार सांसद बनने के लिए मैदान में उतरे भाजपा के निशिकांत दुबे के सामने कांग्रेस को मजबूत पहलवान की दरकार थी. कई दावेदार सामने थे. प्रदीप यादव, फुरकान अंसारी और दीपिका पांडेय सिंह के नाम के साथ ही कई तरह के कयास लगाए गए. आखिरकार गोड्डा के महगामा से कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह पर पार्टी से भरोशा जताया.
गोड्डा टू देवघर वाया दुमका उठी मांग, पुनर्विचार करे आलाकमान
दीपिका पांडेय सिंह के नाम की घोषणा होते ही कांग्रेस का गुटबाजी सतह पर आ गया. कल तक सभी दावेदार यही कहते नजर आ रहे थे कि पार्टी आलाकमान जिसे टिकट दे सभी मिलकर उसे जिताने का कार्य करेंगे क्योंकि सबका मकशद बस एक ही है भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे को पराजित करना. लेकिन दीपिका के नाम की घोषणा के साथ ही पार्टी के अंदर विरोध के स्वर उभरने लगे. अपने पिता के लिए फील्डिंग कर रहे जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी पार्टी आलाकमान के फैसले से सहमत नहीं है. पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव की प्रतिक्रिया अभी तक सामने नहीं आयी है. लेकिन बुधवार को गोड्डा, दुमका और देवघर में कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं में नाराजगी भी देखने को मिली. गोड्डा में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और केंद्रीय नेतृत्व के नाम जिला अध्यक्ष को ज्ञापन सौपकर फैसले पर पुनर्विचार की मांग की. देवघर में भी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने भी यही मांग की जबकि गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में शामिल दुमका जिला के जरमुंडी और सरैयाहाट प्रखंड के कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी बदले की मांग की अन्यथा दोनों प्रखंड के कार्यकर्ताओं द्वारा सामूहिक रूप से पार्टी से त्यागपत्र देने की धमकी भी दी. कुल मिलाकर कहें तो कांग्रेस के अंदर की राजनीति गरमा गई है
दीपिका को प्रत्याशी बनाते ही हर तरफ विरोध क्यों!
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर दीपिका का विरोध क्यों हो रहा है. नाम की घोषणा के पहले जब कांग्रेस के तमाम दावेदार कह रहे थे कि पार्टी जिसे टिकट दे मकशद बस एक ही है भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे को हराना तो अब क्या हो गया. नाम की घोषणा होते ही पार्टी के समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं का मकशद बदल गया. क्या इस विरोध को देखते हुए आलाकमान अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी? क्या सचमुच पार्टी ने दीपिका को टिकट देकर भाजपा को वॉक ओवर दे दिया?
निशिकांत के माइंड गेम में उलझी कांग्रेस या सोच समझ दिया प्रत्याशी
सवाल कई हैं जिसका जबाब 4 जून को ही मिल पायेगा। लेकिन सबसे अहम सवाल क्या निशिकांत के माइंड गेम में उलझी कांग्रेस या सोच समझ कर किया गया प्रत्याशी का चयन? हम ऐसा सवाल इस लिए कर रहे है क्योंकि दुमका में गोड्डा के भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे ने कुछ दिन पूर्व एक बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस प्रदीप यादव को या फिर झामुमो गोड्डा लोकसभा से अपना प्रत्याशी देती है तो वे गोड्डा में अपना चुनाव प्रचार नहीं करेंगे. देवघर में बैठ कर चाय नाश्ता करेंगे और जीत का प्रमाणपत्र लेने गोड्डा जायेगें. राजनीति के जानकार इसे निशिकांत का माइंड गेम करार दे रहे हैं. एक पक्ष का मानना है कि निशिकांत दुबे इस तरह का बयान देकर कांग्रेस आला कमान तक यह मेसेज पहुचाना चाहते थे कि प्रदीप यादव उनके सामने नहीं टिकने वाले क्योंकि कई बार दंगल में वे प्रदीप को पटकनी दे चुके हैं. जबकि बदले राजनीतिक हालात में प्रदीप यादव सशक्त दावेदार थे और कांग्रेस आलाकमान निशिकांत दुबे के माइंड गेम में उलझ गयी. वही दूसरे पक्ष का मानना है कि निशिकांत दुबे पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरा के साथ अपने विकास कार्य को लेकर अपनी जीत सुनिश्चित मान रहे हैं. प्रदीप और निशिकांत के बीच हमेशा से 36 का आंकड़ा रहा है और प्रदीप के खिलाफ निशिकांत दुबे हमेशा से खुलकर बयानबाजी करते रहे हैं. प्रदीप यादव पर यौन शोषण के आरोप का मामला उनके प्रत्याशी बनने में सबसे बड़ी बाधक बनी. इस स्थिति में पार्टी आलाकमान ने दीपिका पांडेय सिंह को मजबूत दावेदार मानकर मैदान में उतारा है.
निशिकांत और दीपिका के बीच सोशल मीडिया पर चलते रहता है वार
बात दीपिका पांडेय की करें तो सोशल मीडिया पर दीपिका और निशिकांत के बीच वार चलते रहता है. महगामा विधायक रहते हुए वो गोड्डा लोक सभा में हमेशा सक्रिय नजर आती है. ससुर अवध बिहारी सिंह की विरासत को लेकर चल रही दीपिका विधान सभा में समय समय पर प्रखर वक्ता के तौर पर जनमुद्दों को लेकर अपनी ही सरकार को घेरने से पीछे नहीं रहती. शुरू से ही जुझारू तेबर के साथ कांग्रेस की समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर जानी जाती है. लेकिन जिस प्रकार उनको प्रत्याशी बनाये जाने पर पार्टी के अंदर विरोध के स्वर उभरने लगे हैं उसे देखते हुए दीपिका की राहें आसान नहीं लगती. भाजपा के कद्दावर नेता निशिकांत दुबे के खिलाफ रण में उसे ना केबल विपक्षी बल्कि अपनों से भी चुनौती मिलने लगी है. पार्टी के अंदर गुटबाजी समाप्त करना ना केवल दीपिका बल्कि प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष भी एक चुनौती है. देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी इस गुटबाजी को कैसे समाप्त करती है अन्यथा निशिकांत दुबे को पराजित करने का कांग्रेस का सपना दिवास्वप्न ही साबित होगा
रिपोर्ट: पंचम झा