रांची(RANCHI): झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने साल 2021 को नियुक्ति वर्ष घोषित किया था. इस घोषणा के साथ हजारों-लाखों नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं के चेहरे खिल उठे थे. लेकिन जब यह स्टोरी लिखा जा रहा है तब साल 2022 के आखिरी महीने का आखिरी सप्ताह चल रहा है. बावजूद इसके सरकार ने कितने बेरोजगारों को नौकरी दी और सरकार कितने खाली पद भर सकी है ये अपने आप में सोचने योग्य बात है. वहीं, सरकार ने लगभग 14 हजार सरकारी रिक्त पदों को भरने के लिए आवेदन लिए, हजारों की संख्या में बेरोजगार युवाओं ने फार्म भरा और परीक्षा की तैयारी में लग गए. लेकिन उन्हें क्या पता था कि सरकार राजनीतिक पार्टियों से राजनीति करते-करते छात्रों की करियर के साथ राजनीति करने लगेगी. दरअसल, ये बाते क्यों की जा रही हैं इसके पीछे भी कई वजह है. इस स्टोरी में हम आपको उस वजह के बारे में बतायेंगे.
खाली पदों को सरकार ने नियोजन नीति 2021 से जोड़ा
बता दें कि राज्य सरकार ने लगभग 14 हजार खाली पदों के लिए अलग-अलग विभागों से भर्ती निकाली थी. सरकार ने सभी पदों पर नियोजन नीति 2021 लागू कर दिया. जिस नियोजन नीति को बाद में झारखंड हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि नियोजन नीति 2021 असंवैधानिक है और यह समानता के अधिकार के खिलाफ है. कोर्ट ने जैसे ही नियोजन नीति को रद्द किया वैसे ही सभी नियुक्ति और रिक्त पदों पर परीक्षा होने से पहले ही रोक दिया गया.
क्या थी राज्य की नियोजन नीति 2021
दरअसल, हेमंत सोरेन की सरकार ने नियोजन नीति-2021 बनायी थी. इसमें यह प्रावधान था कि थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में सामान्य वर्ग के उन्हीं लोगों की नियुक्ति हो सकेगी, जिन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा झारखंड से पास की हो. जिसे रांची हाई कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है और कहा है कि यह समानता के अधिकार के खिलाफ है.
विधि विभाग ने सरकार को पहले ही चेताया था
बता दें कि राज्य सरकार जब नियोजन नीति 2021 बना रही थी. तब ही विधि विभाग ने सरकार को बताया था कि यह समानता के अधिकार के खिलाफ है. विधि विभाग ने सरकार को बताया था कि यह नीति आर्टिकल 14 और आर्टिकल 16 का उल्लंघन करता है. इसके बावजूद सरकार ने इसे सदन से पास कराया और नौजवानों के साथ खिलवाड़ किया.
विधानसभा में अमित मंडल और विनोद सिंह ने भी उठाया था सवाल
बता दें कि सरकार सदन में जब नियोजन नीति पेश कर रही थी तब भी भाजपा विधायक अमित मंडल और माले विधायक विनोद सिंह ने सवाल खड़े किए थे. दोनों ने कहा था कि सरकार को इसे एक बार फिर देखने की जरूरत है. यह समानता के अधिकार का उल्लघंन करता है.